कहते हैं कि, “मन में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो, तो इंसान बुरी से बुरी परिस्थिति में भी सफलता की राह खोज लेता है”। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है और इस बात को प्रमाणित कर दिखाया तमिलनाडू के प्रेम गणपति ने।

मूलरुप से तमिलनाडू के तूतीकोरिन के रहने वाले प्रेम का जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। गरीबी की वजह से वो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे। लेकिन अपनी आजीविका चलाने के लिए मुंबई आये, तो यहाँ उनके साथ लूट हो गयी। उसके बाद एक बेकरी पर बर्तन धोने का काम किया।

नाम: प्रेम गणपति
जन्म: 1973, तूतीकोरिन तमिलनाडू
शिक्षा: 10वीं
कंपनी: डोसा प्लाजा


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इन सभी परेशानियों का सामना करते हुए प्रेम ने कड़ी मेहनत की और डोसा प्लाज़ा के नाम से अपना एक ब्रांड स्थापित किया।

जानिए प्रेम गणपति की संघर्ष से सफलता तक की कहानी –

जब 10वीं के आगे नहीं कर पाए थे पढ़ाई

प्रेम गणपति का जन्म 1973 में तमिलनाडू के तूतीकोरिन में एक गरीब परिवार में हुआ था। प्रेम के परिवार में उनके और माता पिता के अलावा उनके 6 भाई बहन भी थे। उन्होंने जैसे तैसे 10वीं की पढ़ाई पूरी की, लेकिन गरीबी के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। तब परिवार के पालन पोषण में हाथ बंटाने के लिए चेन्नई में 250 रुपये की नौकरी कर ली, जिसे वे अपने घर भेज दिया करते थे।

दोस्त ने ही दे दिया था धोखा

साल 1985 में आयी फिल्म “आखिर क्यों” का एक गाना दुश्मन न करे दोस्त ने जो काम किया है, काफी मशहूर हुआ था। कुछ ऐसा ही हुआ प्रेम के साथ भी, जब उनके दोस्त ने ही उन्हें धोखा दे दिया था।

एक दिन एक परिचित ने उन्हें मुंबई चलने को कहा और 1200 रुपये प्रतिमाह की नौकरी दिलाने का वादा किया। प्रेम जानते थे कि उनके घरवाले इस बात के लिए कभी राजी नहीं होंगे, इसलिए वे घर पर बिना बताये अपने परिचित के साथ मुंबई के लिए निकल पड़े। जब वे बांद्रा रेलवे स्टेशन पर उतरे, तब उनके पास 2000 रुपये थे। उस समय प्रेम सिर्फ 17 साल के थे, उस परिचित ने उन्हें धोखा दे दिया और उनके रुपये उठाकर वहां से भाग गया।

17 वर्षीय प्रेम के पास घर लौटने के भी पैसे नहीं थे, ऐसे में उन्होंने वहीं अपनी किस्मत को आज़माने का निर्णय लिया।

मुंबई में अभी और संघर्ष करना था

जब उनके पास वापस जाने के पैसे नहीं थे, तब मुंबई में रहना प्रेम की मज़बूरी हो गयी थी। उन्होंने यहाँ अपने लिए कुछ काम तलाशने की कोशिश की, अगले ही दिन उन्हें माहिम की एक स्थानीय बैकरी में बर्तन धोने का काम मिल गया। इस काम के लिए उन्हें 150 रुपये प्रतिमाह मिलते थे, अगले 2 सालों तक प्रेम अलग अलग रेस्टोरेंट्स में काम करते रहे।


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इस तरह हुई डोसा प्लाज़ा की शुरुआत

प्रेम तमिलनाडु के रहने वाले थे, जिसके कारण उन्हें डोसा बनाना आता था। 1992 में प्रेम ने इडली डोसा बनाने के लिए किराये पर एक ठेला लिया और साथ ही 1000 रुपये में बर्तन, एक स्टोव और डोसे बनाने का सामान ख़रीदा। इनको लेकर वे वाशी रेलवे स्टेशन पर चले गए।

वहां आने जाने वाले छात्रों को प्रेम के बनाये हुए इडली डोसा बहुत पसंद आये और धीरे धीरे वे मशहूर हो गए और उन्हें हर महीने 20 हजार रुपये का लाभ होने लगा।

1997 में उन्होंने 5000 रुपये प्रतिमाह की दुकान किराये पर ली और 2 लोगों को नौकरी पर रखा। उनकी इस दुकान का नाम था - प्रेम सागर डोसा प्लाज़ा। उनकी इस दुकान पर कई सारे स्टूडेंट्स आते थे, प्रेम की उनसे अच्छी दोस्ती हो गयी थी।

प्रेम ने इन स्टूडेंट्स से लैपटॉप चलाना सीखा और इंटरनेट पर डोसे की कई सारी रेसिपीज़ सीखी। जल्द ही प्रेम ने 20 तरह के डोसे अपने कस्टमर्स को खिलाये।

2002 तक आते आते डोसा प्लाज़ा का प्रतिमाह का टर्नओवर 10 लाख रुपये हो गया।

2005 तक प्रेम ने 104 तरह के डोसे लांच कर दिए और 27 डोसे का इनका ट्रेडमार्क है। आज पुरे भारत में इनके 45 आउटलेट्स हैं। आज ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी इनके 5 आउटलेट हैं।

प्रेम ने यह साबित कर दिया है कि इंसान अगर ठान ले, तो किसी भी संघर्ष का सामना कर जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।


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