किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जो मेहनत का साथ नहीं छोड़ते। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं हाल ही में बांग्लादेश के खिलाफ डेब्यू करने वाले भारतीय क्रिकेटर कुलदीप सेन जिन्होंने अपनी मेहनत से भारतीय टीम में जगह बनाई हैं। मध्य प्रदेश के रीवा के रहने वाले कुलदीप के पिता हेयर सैलून में काम करते हैं। बचपन से ही उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। घर के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे, प्रैक्टिस करने की जगह तक नहीं थी। लेकिन फिर भी कुलदीप ने कभी हार नहीं मानी। वह फटे हुए मोज़े की गेंद बनाकर और कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल में आने वाली मोगरी से मैच की प्रैक्टिस करते थे। लेकिन अब उन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत से भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई है। आइए जानते हैं उनके जीवन की प्रेरक कहानी

बचपन से ही किया संघर्ष

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के छोटे से गांव 'हरिहरपुर' के गरीब परिवार में जन्में कुलदीप सेन के सपने शुरू से ही बड़े थे। उनके घर के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। उनके पिता हेयर सैलून में काम करते थे और मां घर में रहती थी। जितनी कमाई होती थी वो घर के राशन के लिए पर्याप्त नहीं थी। ऐसे में अच्छी शिक्षा पाना और अपने सपनों को पूरा करना कुलदीप के लिए बहुत मुश्किल था। कुलदीप को बचपन से ही क्रिकेट खेलने में रूचि थी। 8 साल की उम्र से ही उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। पहले वो बतौर बल्लेबाज अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन बाद में कोच के कहने पर उन्होंने तेज गेंदबाजी शुरू की।

फटे मोज़े के साथ करते थे प्रैक्टिस

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो कुलदीप के पास बॉल तक खरीदने के पैसे नहीं थे। वो फटे हुए मोज़े की गेंद बनाकर और कपड़े धोने वाली मोगरी से प्रैक्टिस करते थे। क्रिकेट सीखने के लिए ना पैसे थे ना कोई पैसे देने वाला। लेकिन उन्होंने अपनी परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके। साल 2011-12 तक कुलदीप अपने गांव के बेस्ट बॉलर बन गए थे। लेकिन उनके पिता को पता नहीं था कि उनका बेटा क्रिकेटर है। इसी बीच कुलदीप डिस्ट्रिक्ट लेवल क्रिकेट टूर्नामेंट के लिए सेलेक्ट हो गए थे, मगर मुकाबले में शामिल होने के लिए उन्हें दूसरे शहर में जाना था और वहां जाने के लिए भी कुलदीप के पास किराए के पैसे नहीं थे। किराए के पैसे के लिए जब कुलदीप ने मां से 500 रुपए मांगे तो उन्होंने पिता से पैसे देने को कहा। कुलदीप के पिता ने पहले खूब डांट लगाई और फिर जेब से 500 रुपए निकालकर देते हुए कहा कि 'जीतकर ही आना'।

कड़ी मेहनत के जरिए बनाई पहचान

कुलदीप ने दिन रात मेहनत करते हुए कई टूर्नामेंट खेले मगर जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रहे थे, उनके खर्चे भी बढ़ते जा रहे थे। उनके आगे बढ़ने में उनके करीबियों का भी अहम रोल था। उनके दोस्त हमेशा उनकी मदद करते थे। कुलदीप को क्रिकेट कोचिंग लेने के लिए फीस की जरूरत थी मगर कोच एरिल एंथनी ने उन्हें फ्री में ट्रेनिंग दी, कुलदीप के पास जूते नहीं थे तो पूर्व क्रिकेटर ईश्वर पांडे ने उन्हें अपने स्पाइक्स दिए। कुलदीप हर रोज़ 12 किमी साइकल चलाकर रीवा स्टेडियम में प्रैक्टिस करने के लिए आते थे।

क्रिकेट छोड़ने का बना लिया था मन

कुलदीप भारतीय टीम में जगह बनाने का सपना देख ही रहे थे कि इसी बीच कोरोना आ  गया। सब कुछ बंद हो गया।  उनके टूर्नामेंट बंद हो गए, प्रैक्टिस भी कम हो गई। घर की सेविंग्स नहीं बचीं। ऐसे में कुलदीप के मन में यह ख्याल आया कि क्रिकेट छोड़कर आम नौकरी कर ली जाए। तब उनके कोच ने उन्हें हिम्मत दी और प्रैक्टिस जारी रखने को कहा।

आईपीएल के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट में किया डेब्यू

कोच के हौसला बढ़ाने के बाद कुलदीप ने अपनी प्रैक्टिस जारी रखी। कोरोना काल के बाद उनके प्रदर्शन को देखते हुए आइपीएल सीज़न 15 में राजस्थान की टीम में उनका सेलेक्शन हो गया। राजस्थान रॉयल्स ने उन्हें 20 लाख रुपए में खरीद लिया। कुलदीप ने आईपीएल मैचों में शानदार प्रदर्शन कर कई विकेट अपने नाम किए। इसी के दम पर कुलदीप को भारतीय टीम में जगह मिली है। कुलदीप को न्यूजीलैंड के खिलाफ तीन वनडे मैचों की सीरीज में पहली बार टीम इंडिया में जगह मिली थी। लेकिन उन्हें डेब्यू करने का मौका नहीं मिला। हाल ही में उन्हें बांग्लादेश के लिए चुना गया और पहले मैच में उनका डेब्यू हुआ। अपने पहले ही मैच में कुलदीप ने लोगों का दिल जीत लिया। पहले मैच में उन्हें 5 ओवर डालने को मिले, इन 30 गेंदों में कुलदीप ने 2 विकेट चटकाए और 37 रन दिए और सभी को दिखा दिया की उनमें कितनी ज्यादा प्रतिभा है।

कुलदीप आज इंटरनेशनल क्रिकेटर के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं। एक छोटे से गांव से निकलकर विश्व क्रिकेट में अपनी जगह बनाना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा। उन्होंने परिस्थितियों का सामना करते हुए आज अपनी सफलता की कहानी लिखी है। वो आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।