सिविल सर्विसेज की परीक्षा में पास होकर अपना करियर बनाने का सपना बहुत सारे स्टूडेंट्स देखते हैं लेकिन सभी का सपना पूरा नहीं हो पाता।
कई बार ऐसा होता है कि उनके हालात और संसाधनों की कमी कई बार उनकी राह का रोड़ा बन जाते हैं। लेकिन केरल के रहने वाले शिहाब ने इन मुश्किलों को अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने दिया, सालों तक अनाथालय में रहने के बाद भी उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा को पास किया और स्टूडेंट्स की प्रेरणा बने।
नाम: | मोहम्मद अली शिहाब |
जन्म: | 15 मार्च 1980 |
यूपीएससी रैंक: | 226 वीं रैंक |
जो भी स्टूडेंट्स सिविल की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं उनके लिए शिहाब की कहानी बहुत प्रेरणादायी साबित होगी।
कौन है Mohammad Ali Shihab?
शिहाब का जन्म 15 मार्च 1980 को हुआ था, उनके पिता का नाम कोरोट अली और माता का नाम फातिमा था। उनका एक बड़ा भाई और और तीन बहनें हैं। शिहाब का जीवन उस वक्त बदल गया जब 10 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। सभी चारों बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई जो उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण काम था। सभी बच्चों का जीवन सही से बीते इसीलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों को अनाथालय में भेज दिया जिसके बाद शिहाब को अपने जीवन के अगले 10 साल अनाथालय में ही बिताने पड़े।
पढ़ाई और मेहनत से शिहाब ने बदली अपनी जिंदगी
शिहाब के जीवन का लक्ष्य था पढ़ाई के जरिए अपने भविष्य को बदलना, अनाथालय में रहते रहते उन्होंने अपनी पढ़ाई पर खास ध्यान दिया। जिसके बाद यूपीएससी सिविल परीक्षा पास करने के लिए मेहनत करना शुरू किया। इस कोशिश में पहले दो बार उनके हाथ निराशा ही लगी लेकिन तीसरी बार में वो सफल हुआ, साल 2011 में यूपीएससी परीक्षा पास की और ऑल इण्डिया 226 रैंक हासिल की।
यूपीएससी के अलावा पास की 21 अन्य सरकारी परीक्षाएं
शिहाब जब अनाथालय में रह रहे थे तब से ही वो पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। इस दौरान जब उन्हें अपनी हायर एजुकेशन के लिए पैसों की सख्त ज़रूरत थी। तब उन्होंने सरकारी एजेंसी की तैयारी शुरू की, यहां पर खास बात ये रही कि शिहाब ने एजेंसी की तरफ से आयोजित होने वाली परीक्षाओं में एक या दो नहीं बल्कि पूरी 21 परीक्षाओं को पास किया।
इसके बाद उन्होंने साल 2004 में वन विभाग, जेल वॉर्डन और रेलवे टिकट परीक्षक जैसे पदों पर भी काम किया है। मोहम्मद अली शिहाब आज कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं क्योंकि अनाथालय की विषम परिस्थितियों में रहते हुए भी उन्होंने पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दिया और उसे ही अपनी ताकत बनाया और अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल भी किया।
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