ज़िंदगी कब, किसे और कैसे फर्श से अर्श तक का सफर तय करा दे पता ही नहीं चलता। एक छोटा से कारोबार जिसे जाने अनजाने में अपने जीवन की पूर्ति के लिए शुरू किया गया था किसे पता था कि एक दिन वो मसालों का किंग MDH एक ब्रांड बन जाएगा। MDH मसाले का स्वाद जो मारवाड़ी घराने से शुरू हुआ, आज  उसे भारत और पाकिस्तान की सरहदे भी नहीं मिटा पाई।  यह motivational story है मसालों के शंहशाह कहे जाने वाले स्वर्गीय श्री धर्मपाल गुलाटी जी की। जिनके मसालों का लुत्फ भारत और पाकिस्तान के सात अंग्रेजी हुकुमत ने भी भरपूर उठाया। स्वर्गीय श्री धर्मपाल गुलाटी ने, एक बैलगाड़ी से छोटे मसाले की शुरूआत की थी जिसे चंद पुडियो में बांधकर इनके परिवार वाले बेचा करते थे।  यह काम तो बस जीवन-व्यापन करने के उद्देश्य से शुरु किया गया था किसी को भी यह नहीं पता था कि एक आजीविका के रुप में किया गया काम सदियों तक एक बड़ी पहचान बन जाएगा।

एमडीएच मसाले के बारे में ऐसा कोई नहीं होगा जिसे ना पता हो। आज इसका स्वाद घर-घर तक पहुंच गया है। लोग इसे डाले बिना खाना नहीं बनाते। शादी हो या पार्टी एमडीएच मसाले हर जगह अपने स्वाद की खुशबू छोड़ आते हैं।  तांगा चलाकर अपने मसालों को बेचने वाले स्वर्गीय श्री धर्मपाल गुलाटी ने, विभाजन से पहले इसकी शुरुआत की थी लेकिन विभाजन के बाद मसाले का विस्तार पूरे देश में हुआ। धर्मपाल गुलाटी जी को मसाला किंग के नाम से संबोधित किया जाता था।   वो एक ऐसे शख्सियत थे जिन्होंने अपने जीवन में काम की पूजा की और कर्मचारियों को ही अपना परिवार माना। अंत तक आजीवन अविवाहित रहकर इन्होंने अपने व्यापार और अपने कर्मचारियों के बीच ही अपना संसार बसाया । धर्मपाल जी के बारे में यह बातें प्रसिद्ध हैं कि वो एक ऐसे इंसान थे जो न की सिर्फ बिज़नेस बल्कि अपने मूल्यों के भी पक्के थे।  धर्मपाल जी के जीवन के वसूल व्यायाम, भाषाओं का ज्ञान, तथा ईमानदारी इत्यादि थे। इसके साथ - साथ इन्होंने अपने सभ्यता संस्कृति को भी कभी नहीं त्यागा। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण वो मारवाड़ी पगड़ी थी जिसे धर्मपाल जी सदैव पहने रहते थे।  कुर्ता - पजामा संस्कृति की निशानी तथा छड़ी बुढ़ापे में सहारे की निशानी इन सबके साथ इनका अपना एक अलग अंदाज़ था। जिसे दुनिया आज तक सलाम करती है।

 

 

श्री धर्मपाल गुलाटी जी का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। विभाजन के समय उन्हें लाहौर से दिल्ली आना पड़ा,तब उनकी जेब में मात्र 1500 रुपए थे। इतने कम पैसे में गुजारा करना मुश्किल था। लेकिन किस्मत उन्हें दिल्ली बुला रही थी, वो दिल्ली आए और  उन्होंने तांगा चलाना शुरू कर दिया, लेकिन तांगा चलाने में श्री धर्मपाल गुलाटी का मन नहीं लगा। उन्होंने तांगा अपने भाई को दे दिया, और इसके बाद दिल्ली के करोल बाग  की अजमल खां रोड पर एक छोटा सा खोखा रख दिया और इसी खोखे में मसाले बेचना शुरू कर दिया। वह खुद मसाले पीसते और घर-घर भी देने जाते थे। मसालों की क्वालिटी अच्छी होने के कारण श्री धर्मपाल गुलाटी की मसाले की दुकान बहुत प्रसिद्ध हो गई तथा श्री धर्मपाल गुलाटी ने इसका नाम ‘महाशियन दि हट्टी’रखा। इसके बाद से ही श्री धर्मपाल गुलाटी ने कारोबार को देश के हर कोने में फैला दिया। श्री  गुलाटी सिर्फ पांचवीं पास थे और देश में उनका कारोबार दो हज़ार करोड़ रुपए का है।

 

 

वर्ष 2020 में 98 साल की उम्र में श्री धर्मपाल गुलाटी जी ने अपने इस फर्श से अर्श तक के जीवन को अलविदा कहा। उनके निधन पर देश के पीएम मोदी से लेकर कई बड़ी हस्तियों ने शोक व्यतित किया, बिज़नेस की दुनिया में अपना मुकाम हासिल करके जो उदाहरण बाकि बिज़नेसमैन के लिए प्रस्तुत किया वो कबीले तारीफ है।  श्री धर्मपाल जी की यह motivational story हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। इंसान की लगन सच्ची हो और खुद पर भरोसा हो तो एक छोटा सा काम भी बड़ी दौलत और शोहरत दिला सकता है।