किसी चीज़ को अगर शिद्दत से चाहो तो वो आपको ज़रूर मिलती है। इस बात को प्रमाणित करने का काम किया है 23 साल के वत्सल नाहटा ने। जिन्होंने वर्ल्ड बैंक में नौकरी पाने से पहले 600 ईमेल और 80 से भी ज्यादा कॉल कर के नौकरी के लिए आवेदन किया था। उन्होंने नौकरी पाने की आस तब तक नहीं छोड़ी जब तक उन्हें उनकी पसंद की नौकरी नहीं मिल गई। उन्होंने इस दौरान कई रिजेक्शन झेले, मानसिक दबाव को सहा, कोरोना के बीच की मंदी को देखा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार कोशिश करते रहे और आखिरकार अपनी पंसद की नौकरी को हासिल किया। वत्सल ने धैर्य रखकर अपनी कोशिशें जारी रखी। हालांकि बुरे वक्त को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने का यह सफर इतना आसान नहीं था, तो आइए जानते हैं उनके जीवन के इस प्रेरक सफर के बारे में
कोरोना के बाद झेली मंदी की मार
23 साल के वत्सल नाहटा ने कोविड-19 के समय अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। अन्य भारतीयों की तरह वो भी अमेरिका इसी आस में गए थे कि उन्हें अच्छी नौकरी मिलेगी और वो डॉलर में कमाई करेंगे। लेकिन कोरोना के कारण हर जगह मंदी की मार का असर दिखने लगा था। अधिकांश कर्मचारियों को बड़ी कंपनियां निकाल रही थी। वत्सल की पढ़ाई पूरी होने वाली थी और उनके पास कोई नौकरी नहीं थी। वत्सल को जब अमेरिका में नौकरी नहीं मिली तो उनके अंदर भी काफी उधेड़बुन चल रही थी और उनके जीवन पर भी मंदी का गहरा असर हुआ।
नौकरी पाने के लिए नहीं खोया धैर्य
साल 2020 में वत्सल की पढ़ाई पूरी हुई तो उस दौर में नौकरी मिलना आसान था नहीं। कई कंपनियों में छंटनी चल रही थी और जॉब कहीं मिल नहीं रही थी। लेकिन उन्होंने नौकरी पाने की आस नहीं छोड़ी। वो अपनी पहली कमाई डॉलर में ही करना चाहते थे इसलिए भारत वापस आने का तो कोई सवाल ही नहीं था। वत्सल ने कई कोशिशे की कि उन्हें अमेरिका में नौकरी करने का विज़ा मिल जाए। उन्होंने कई कंपनियों में इंटरव्यू दिया। लेकिन फाइनल राउंड तक पहुंते ही अधिकांश कंपनियां उन्हें वीज़ा देने से मना कर देती थी। एक बार ऐसा समय आया कि वो अपने घर वालो से भी अपनी बात नहीं कह पा रहे थे। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया। उन्होंने धैर्य बनाए रखा।
नौकरी पाने के लिए 600 से ज्यादा ईमेल भेजे
नौकरी ना मिलने के बावजूद वत्सल ने आस नहीं छोड़ी। इसी कड़ी मेहनत के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया वेबसाइट लिंक्डइन के ज़रिये लोगों से कनेक्शन बनाने शुरू किए। उन्होंने नेटवर्किंग की मदद ली और जिनको नहीं जानते थे, उन्हें भी ईमेल भेजने शुरू किए। वो रोज़ 2 अंजान व्यक्तियों को नौकरी के लिए कॉल करते थे। इस तरह उन्होंने 600 से भी ज्यादा ईमेल भेजे और 80 से ज्यादा कॉल किए।
इस तरह मिली नौकरी
करीब दो महीने की मेहनत के बाद वत्सल नाहटा को आखिरकार मई के पहले हफ्ते में एक साथ चार ऑफर मिले, जिनमें एक वर्ल्ड बैंक का ऑफर था। उन्होंने इस ऑफर को स्वीकार किया और आज वे वर्ल्ड बैंक के रिसर्च डायरेक्टर के साथ मशीन लर्निंग पर किताब लिख रहे हैं। वत्सल ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में अपने अनुभव बताते हुए लिखा कि यदि बहुत बुरे दौर से भी गुजर रहे हैं तो अपनी कोशिश जारी रखें, बेहतर दिन आएंगे। आप अपनी गलतियों से लगातार सीखते रहें। सफलता आपको ज़रूर मिलेगी।
वत्सल नाहटा ने अपनी मेहनत और कभी हार न मानने के जज्बे से अपने सपनों को पूरा किया है। उन्होंने अपनी मेहनत से अपनी सफलता की कहानी लिखी है। आज वो अपनी इस कहानी से कई लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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