सफलता अक्सर उन्हें मिलती है जो रिस्क लेने से नहीं घबराते, रिस्क लेकर सफलता पाने वाले ही इतिहास रचते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं लेंसकार्ट कंपनी के फाउंडर पीयूष बंसल। जिन्होंने माइक्रोसॉफ्ट की अपनी अच्छी-खासी नौकरी को छोड़कर खुद का बिज़नेस करने का रिस्क लिया और आज उनकी कंपनी लेंसकार्ट चश्मा बनाने वाली कंपनियों के बीच एक बड़ा नाम बन गई है। आज वे अपने इस बिज़नेस आइडिया से करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। यही नहीं शार्क टैंक इंडिया में बतौर जज भी पीयूष काफी सुर्खियां बटौर चुके हैं।

साल 2010 में बनी यह कंपनी आज अरबों की हो चुकी है। पीयूष ने अपने मिशन और विजन से कंपनी को इतनी सफलता दिलाई है। लेकिन पीयूष के लिए यह सफर इतना आसान भी नहीं था, तो आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरक सफर के बारे में।

हमेशा से करना चाहते थे कुछ अलग

26 अप्रैल 1985 को दिल्ली के एक सामान्य परिवार में जन्में पीयूष हमेशा से कुछ अलग करना चाहते थे। आईआईएम बैंगलोर से पढ़ाई करने के बाद उनके मन में तमाम आइडियाज थे, लेकिन नौकरी के साथ वह उन पर काम नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने मैकगिल विश्वविद्यालय, कनाडा से अंग्रेजी ऑनर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करने के बाद पीयूष ने साल 2007 में रेडमंड, वॉशिंगटन में माइक्रोसॉफ्ट के लिए एक प्रोग्रामर के रूप में काम किया था।

नौकरी छोड़ शुरू किया बिज़नेस

पीयूष साल 2007 तक यूएस में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में एक अच्छे पैकेज की नौकरी कर रहे थे। बढ़िया सैलेरी के बावजूद पीयूष कुछ अलग करना चाहते थे। 2007 में पीयूष ने तय किया कि वे अब अपने देश जाकर सपनों को पूरा करेंगे। माइक्रोसॉफ्ट में एक साल से भी कम समय तक काम करने के बाद पीयूष बंसल ने अपनी नौकरी छोड़ दी। उनके इस फैसले से परिवार और दोस्त हैरान थे, काफी समझाने के बाद भी वे नहीं माने और भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने सर्च माय कैंपस और वाल्यो टेक्नोलॉजी की शुरूआत की।

ऐसे बढ़ाई मार्केट पर पकड़

पीयूष, जब भारत लौटे तो यहां उस वक्त ई-कॉमर्स का बाजार पनप रहा था। मार्केट को समझने के लिए उन्होंने एक क्लासिफाइड वेबसाइट ‘सर्च माइ कैंपस’ शुरू की। यहां छात्रों को किताबें, हॉस्टल, पार्ट टाइम जॉब और कारपूल जैसी चीजें ढूंढने में मदद की जाती थी। तीन साल तक पीयूष इस प्रोजेक्ट पर काम करते रहे और इसके जरिए इंडियन कस्टमर का व्यवहार और जरूरत को समझते रहे। तीन साल बाद ग्राहकों की जरूरतों को समझते हुए पीयूष बंसल ने चार अलग-अलग वेबसाइट्स लॉन्च की। इनमें से आईवियर एक थी। बाकी की तीन कंपनियां यूथ को टारगेट करते हुए ज्वेलरी, घड़ी और बैग्स की थी। रिस्पॉन्स को देखते हुए उन्होंने आईवियर पर फोकस किया। यहीं से लेंसकार्ट की सफलता की शुरूआत होने लगी।

लेंसकार्ट को ऐसे बनाया सफल

पीयूष बंसल ने आईवियर पर अपना पूरा ध्यान लगाते हुए देश के छोटे बड़े शहरों में आउटलेट्स खोलने शुरू किए, जहां हर रेंज के चश्मों के साथ आंखों के चेकअप की सुविधा भी दी जाने लगी। साथ ही इन चश्मों को ऑनलाइन मार्केट में बेचना शुरू किया गया। उनके इस यूनिक कॉन्सेप्ट को देखते हुए इन्हें कई इंवेस्टर्स मिले। जिसमें केकेआर, सॉफ्टबैंक विजन फंड, प्रेमजी इन्वेस्ट और आईएफसी शामिल हैं। धीरे-धीरे उनकी कंपनी सफलता की ओर आगे बढ़ने लगी। नवंबर 2010 में अमित चौधरी और सुमीत कपाही के साथ ओमनीचैनल आईवियर रिटेलर लेंसकार्ट की सह- स्थापना की। साल 2019 में लेंसकार्ट 1.5 अरब डॉलर की वैल्युएशन के साथ एक यूनिकॉर्न बन गई थी।

शार्क टैंक इंडिया के ज़रिए बनाई खास पहचान

लेंसकार्ट के फाउंडर होने के साथ-साथ पीयूष बंसल बहुचर्चित रियलिटी टीवी शो शार्क टैंक इंडिया में बतौर जज शामिल हुए। जिसके जरिए उन्हें खास पहचान मिली। पीयूष बंसल हमेशा कहते हैं कि वे रिस्क लेने से नहीं डरते हैं और न ही फैसला लेने में देर लगाते हैं। इसलिए मौके उनके हाथों से निकलते नहीं हैं। उनका मानना है कि अगर टीम मेंबर्स के बीच जिम्मेदारियां बांट दी जाएं और समय पर उन्हें अप्रिशिएट किया जाए तो टीम की प्रोडिक्टिविटी बढ़ जाती है।


देश के महानगरों से लेकर मध्यम व छोटे शहरों तक पहुंचने के बाद अब लेंसकार्ट सिंगापुर, पश्चिम एशिया और अमेरिका में भी अपनी टीम को बढ़ा रही है। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की नई कहानी लिखी है। वे आज लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।