लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती… यह पंक्तियां पीसीएस टॉपर हिमांशु कफल्टिया पर एकदम सटीक बैठती हैं।

कभी एक बैंक क्लर्क के रूप में काम करने वाले हिमांशु कफल्टिया अपनी मेहनत के दम पर एसडीएम बने हैं। उन्होंने कभी अपनी असफलताओं के आगे हार नहीं मानी। हर विपरीत परिस्थिति से लड़कर वे आगे बढ़ते रहे। यही नहीं आज एसडीएम बनने के बाद भी वे अपने कर्तव्य नहीं भूले हैं। आज वे उत्तराखंड के गरीब बच्चों के लिए नि-शुल्क लाइब्रेरी चला रहे हैं ताकि बच्चे अपनी शिक्षा को प्राप्त करने से वंचित न रह जाए।

हिमांशु कफल्टिया का सफर संघर्षों से भरा रहा है। इस बीच कई असफलताओं का मुंह भी उन्हें देखना पड़ा। पर उनके कदम डगमगाए नहीं। वह खुद को चुनौतियों के मुताबिक ढालते रहे और आगे बढ़ते रहे। आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरक सफर के बारे में।

कौन हैं हिमांशु कफल्टिया?

मूल रूप से तुषराड गांव ओखलकांडा जनपद नैनीताल के रहने वाले हिमांशु कफल्टिया के पिता घनश्याम कफल्टिया जूनियर हाईस्कूल के रिटायर्ड प्रधानाचार्य और मां गीता घरेलू महिला हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं गांव से हुई। आगे की पढ़ाई उन्होंने रुद्रपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय से की।

प्रशासनिक अधिकारी बनना था सपना

हिमांशु बचपन से ही प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे। साल 2006 में कुमाऊं यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया, साथ ही कई परीक्षाएं भी पास की। दिल्ली के एक बैंक में क्लर्क रहे, एलआईसी में सहायक प्रशासनिक अधिकारी भी बने लेकिन वे इतने पर भी संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वे सिविल सेवा में जाना चाहते थे।


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सिविल सर्विस के लिए छोड़ दी नौकरी

हिमांशु शुरू से ही सिविल सर्विस में जाना चाहते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विस की तैयारी करने लगे। कहावत है न कि अगर मेहनत और लगन सच्ची हो तो किस्मत को भी बदला जा सकता है। हिमांशु के साथ भी ऐसा ही हुआ। हिमांशु अफसर बनने के लिए तैयारी करते रहे। इस दौरान उनका गुप्तचर विभाग और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सेलेक्शन भी हो गया, पर हिमांशु ने ज्वाइन नहीं किया। हिमांशु तीन बार सिविल सेवा के लिए इंटरव्यू दे चुके थे, पर सेलेक्शन नहीं हुआ। इस असफलता ने हिमांशु को तोड़ा नहीं, बल्कि दोगुने उत्साह से मेहनत करने की सीख दी।


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ऐसे बने एसडीएम

कई बार असफल होने पर जहां लोग टूट जाते हैं वहीं हिमांशु पूरी तैयारी के साथ जुटे रहे। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की और पीसीएस में टॉप किया। आज वे जिला पंचायत कार्याधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। हिमांशु कहते हैं कि सफलता के लिए निरंतरता और एकाग्रता जरूरी है। अगर ध्यान लगाकर तैयारी की जाए तो असंभव को संभव किया जा सकता है।

बच्चों के लिए खोली लाइब्रेरी

एसडीएम बनने के बाद भी हिमांशु अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। उन्होंने वंचित बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। हिमांशु कफल्टिया को कभी खुद स्कूल जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था। वे नहीं चाहते थे कि गांव के अन्य बच्चों को भी ऐसा संघर्ष करना पड़े। इसलिए उन्होंने उत्तराखंड के हर गांव में एक पुस्तकालय स्थापित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बनबसा, ज्ञानखेड़ा, उचोलीगोठ, कालीगुंथ, सुखीढांग, सल्ली, तालियाबांज, बुदम, डंडा, फागपुर, छिनिगोठ, तुसरर और नाई सहित आस-पास के गांवें में 16 लाइब्रेरी शुरू की। हिमांशु इन लाइब्रेरी में प्रतियोगी परीक्षा की किताबें शामिल करते हैं ताकि बच्चों को उन्हें प्राप्त करने के लिए शहरों की यात्रा न करनी पड़े।


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पत्नी के साथ मिलकर बच्चों का करते हैं मार्गदर्शन

हिमांशु कफल्टिया की पत्नी भी आईआरएस अधिकारी हैं। वे अपनी पत्नी के साथ मिलकर गांव-गांव जाकर बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं ताकि बच्चों कों अपने भविष्य को लेकर किसी तरह की परेशानी न हो। उनकी इस मुहिम के कारण अब तक गांवें के 38 विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है। हिमांशु कहते हैं कि शुरुआत में लाइब्रेरी का रखरखाव एक चुनौती थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने एक समाधान निकाला। वे ग्रामीणों से पुस्तकालय को बनाए रखने के लिए दान मांगते हैं, जैसे कि यह रामलीला या सामुदायिक आयोजन जैसे धार्मिक उत्सवों के लिए किया जाता है। यह मुख्य रूप से लाइब्रेरी को स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए उनमें जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए किया जाता है। वे हर दिन लाइब्रेरी की सफाई करते हैं और त्योहारों के दौरान उन्हें सजाते भी हैं। यह लाइब्रेरी 24 घंटे खुली रहती हैं। छात्र सुबह 5 बजे ही लाइब्रेरी में आ जाते हैं और कभी-कभी देर रात तक रुकते हैं।


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हिमांशु कफ्लातिया ने आज अपनी मेहनत से सफलता की ऐसी इबारत लिख दी, जो लाखों युवाओं को प्रेरणा देगी। आज वे लाखों युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुके हैं। उनके द्वारा किए गए कार्यों से बहुत से लोग प्रेरित हो रहे हैं।