आज के समय में जब सब कुछ डिजीटल हो गया है। जहां एक शब्द का सही अर्थ पता लगाने के लिए भी गूगल का सहारा लेना पड़ता है वहीं एक ऐसा शख्स भी है जिसने इस डिजीटल दुनिया को कॉम्पिटिशन देते हुए 4 भाषाओं की डिक्शनरी बना दी। ऐसा करने में ना इस शख्स की उम्र बीच में आई। ना उन्होंने किसी का सहारा लिया। इस शख्स का नाम है नजात्तेला श्रीधरण। नजात्तेला श्रीधरण  अभी 83 वर्ष के है। उन्होंने 4 भाषाओं में ट्रांसलेशन करके लोगों के सामने एक मिसाल पेश की है। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे मेः-

दुनिया भले ही आज डिजिटल हो गई हो लेकिन कई लोगों के जीवन में किताबों की महत्वता आज भी बरकरार है। जिन लोगों के पास तकनीक और इंटरनेट की सुविधा नहीं है, उनके लिए किताबें आज भी बहुत ज़रूरी हैं। आज आपको हर भाषाओं में ऑनलाइन डिक्शनरी मिल जाएगी। लेकिन 83 वर्षीय नजात्तेला श्रीधरण ने चार भाषाओं तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम की एक डिक्शनरी तैयार की है। जिससे भाषाओं को समझने में हर किसी को आसानी होगी।

नजात्तेला श्रीधरण केरल के तालासेरी में रहने वाले हैं। उन्होंने चार भाषाओं की डिक्शनरी तैयार की है। वो कहते हैं उनकी इस डिक्शनरी में मलयालम के लिए कन्नड़, तमिल और तेलुगु में शब्द मिलता है. इसे पूरा करने में उन्हें 25 वर्षों से भी अधिक का समय लगा है। 150 साल पहले, साल 1872 में हर्मन गंडर्ट ने पहला मलयालम-अंग्रेजी शब्दकोश बनाया था। जिसतके बाद श्रीधरण ने चारों भाषाओं की डिक्शनरी तैयार की है, जिसमें 12.5 लाख शब्द हैं। श्रीधरन ने कभी भी औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की है। वो जब कक्षा चौथी में थे, उसी समय उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था। लेकिन शब्दों के प्रति उनका जुनून खत्म नहीं हुआ था। नजात्तेला श्रीधरण ने स्कूल छोड़ने के बाद एक स्थानीय बीड़ी बनाने वाली फैक्ट्री में काम किया।

बीड़ी कारखाने में काम करने के साथ उन्होंने आठवीं मानक सार्वजनिक परीक्षा (ईएसएलसी) को पास किया। इसके बाद उन्होंने लोक निर्माण विभाग में नौकरी की। श्रीधरण साल 1984 से अपनी इस डिक्शनरी पर काम कर रहे थे, लेकिन 1994 में जब वह पीडब्लूडी में नौकरी से रिटायर हुए तो उन्होंने अपना सारा समय डिक्शनरी में ही लगाने का फैसला किया। वो अपने कमरे में शब्दों पर काम करते हुए घंटो बिता दिया करते थे। जब तक उन्हें अपने काम से संतुष्टि नहीं मिलती थी तब तक वो उस काम को करते रहते थे। नजात्तेला श्रीधरण ने बेशक से औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की लेकिन उन्हें किताबें पढ़ने का शोक बचपन से ही था। उन्हें किताबें पढ़कर मजा आता था।

नजात्तेला श्रीधरण को अलग-अलग जगह घूमना और लोगों से मिलना-जुलना पसंद है। उन्होंने सभी चार दक्षिण भारतीय क्षेत्रीय भाषाएं अपने घूमने-फिरने के दौरान ही सीखी हैं। वो घूमते हुए स्थानीय लोगों से मिलते और उनसे उनकी ही भाषा में बातचीत करते थे। जिससे शब्दों की बारीकियों को पकड़ने में उन्हें मदद मिली। श्रीधरण अपने काम के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कई बार उन्हें दो भाषाओं में किसी शब्द का अर्थ आसानी से मिल जाता और बाकी दो के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती हैं।

श्रीधरण को कई बार एक शब्द का सही अर्थ निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन वो हार नहीं मानते। वो कहते हैं कि एक बार उन्हें ‘व्याम्बु’ शब्द का तेलुगु में समान शब्द ढूंढने में काफी संघर्ष करना पड़ा। इस शब्द का मलयालम में अर्थ एक आयुर्वेदिक पौधा होता है। उन्हें इस शब्द को ढूंढने में छह साल लगे। लेकिन आखिरकार उन्होंने इसका सही शब्द ढूंढ ही लिया था। जहां एक ओर इस तरह के कार्यों को करने के लिए छात्रों और प्रोफेसरों को काफी आर्थिक सहायता दी जाती है लेकिन श्रीधरण ने यह मुश्किल कार्य बिना किसी वित्तिय सहायत के संपन्न किया।

नजात्तेला श्रीधरण को डिक्शनरी लिखने के बाद इसे पब्लिश कराने के लिए भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वो कई प्रकाशकों के पास गए लेकिन सभी ने उनकी इस डिक्शनरी को छापने से मना कर दिया था। लेकिन श्रीधरण पीछे नहीं हटे। आखिरकार कई उतार-चढ़ाव के बाद उन्होंने अपनी डॉक्यूमेंट्री- ड्रीमिंग ऑफ़ वर्ड्स में श्रीधरण के काम और संघर्ष को दर्शाने का फैसला किया। वीडियो में, नंदन ने उन कठिनाइयों पर प्रकाश डाला, जिनका सामना श्रीधरण ने प्रकाशक की तलाश के दौरान किया था। इससे उन्हें मदद मिली।

कई परेशानियों का सामना करने के बाद केरल में सीनियर सिटिजन फोरम के सामूहिक प्रयासों की वजह से नवंबर 2020 को इस डिक्शनरी को सही पहचान मिली। आज इस शब्दकोश यानी डिक्शनरी के 900 से ज्यादा पन्ने है जो 1500 रुपये की कीमत में बाजार में उपलब्ध है। नजात्तेला श्रीधरण ने अपनी मेहनत और लगन से अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। उनकी यह कहानी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है। हर कोई उनके जीवन और जज्बे से प्रेरित (Motivate) हो सकता है।

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