साइमन कमीशन वापस जाओ, अंग्रेजों वापस जाओ’।
इस नारे को सुन कर आज भी हर किसी के रगो में जोश भर आता है। भारत की आजादी में कई वीरपुत्र, कई शहीद एवं कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अहम भूमिका निभाई है। इन वीरों की शहादत आज भी हर भारतीय के ह्रदय में जीवित है। इनके बारे में सुनकर या पढ़कर ही हर भारतीय का सीना गर्व से फूल जाता है। भारत की आजादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे लाला लाजपत राय जी। लाला लाजपत राय ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारत माता की शान की खातिर अपनी जान गंवाने से पीछे नहीं हटे। शेर ए पंजाब और पंजाब केशरी की उपाधि से मशहूर लाला लाजपत राय ने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में प्रमुख भूमिका निभाया थी।
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को फिरोजपुर जिले के ढुडिके गांव में हुआ था। भारत की आजादी के आंदोलन के एक प्रखर नेता लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की 28 जनवरी को जयंती मनाई जाती है। किशोरावस्था में स्वामी दयानंद सरस्वती से मिलने के बाद आर्य समाजी विचारों ने उन्हें प्रेरित (Motivate) किया साथ ही वे आजादी के संग्राम में तिलक के राष्ट्रीय चिंतन से भी बेहद प्रभावित रहे।
लाला लाजपत राय ने 1880 में कलकत्ता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक वर्ष में पास की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आए। 1982 में एफए की परीक्षा पास की और इसी दौरान वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आए और उसके सदस्य बन गये। अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया।
लाहौर में आयोजित बड़े आंदोलन का नेतृत्व का लाला लाजपत राय कर रहे थे। पुलिस से ये आंदोलन कंट्रोल नहीं हो रहा था। इसी दौरान लाठी चार्ज करने का आदेश मिला, उसी समय अंग्रेज सार्जेंट साण्डर्स ने लाला जी की छाती पर लाठी का प्रहार किया जिससे उन्हें सख्त चोट पहुंची। उसी शाम लाहौर की एक विशाल जनसभा में एकत्रित जनता को सम्बोधित करते हुए लाला ने कहा मेरे शरीर पर पड़ी लाठी की प्रत्येक चोट अंग्रेजी साम्राज्य के कफन की कील का काम करेगी। जिसके बाद उन्हें 18 दिन तक बुखार रहा था। इसी के बाद 17 नवम्बर 1928 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी।
साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लालाजी ने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया और कमीशन का डटकर विरोध जताया। इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठीचार्ज किया पर लाला जी पर आजादी का जुनून सवार था। लालाजी ने अपने अंतिम भाषण में कहा कि ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’।
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जांबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
लाला लाजपत राय ने पंजाब में पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी की थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। उन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। लाला लाजपत राय जी के विचार आज भी लोगों के ह्रदय में जोश भरने का काम करते हैं। उनकी जयंती पर आइए जानते हैं उनके कुछ अनमोल विचारः-
- पराजय और असफलता कभी कभी विजय की ओर बढने के लिए जरुरी कदम होते है।
- सार्वजनिक जीवन में अनुशासन का होना बहुत जरुरी है वरना प्रगति के रास्ते में बाधा आ जाएगी।
- देशभक्ति का निर्माण हमेसा न्याय और सत्य की दृढ़ चट्टान पर ही किया जा सकता है।
- सिर्फ अतीत को देखकर उस पर गर्व करना तबतक व्यर्थ है जबतक उससे प्रेरणा न लेकर भविष्य का निर्माण नही किया जाय।
- मनुष्य हमेशा प्रगति की मार्ग में अपने गुणों से आगे बढ़ता है किसी दुसरे के भरोसे रहकर आगे नही बढ़ा जा सकता है
- भले ही आजादी हमे प्यारी हो लेकिन इसके पाने का मार्ग बहुत ही लम्बा और कष्टकारी है
- परतन्त्रता में जीने से मतलब खुद का विनाश है
- कष्ट उठाना तो हमारी लक्षण है लेकिन सत्य की खातिर कष्टों से बचना कायरता पूर्ण है
- गलतियों को सुधारते हुए आगे बढना ही उन्नति कहलाता है।
- कोई भी समाज तबतक टिक नही सकता जबतक उसकी शिक्षा अपने समय के सदस्यों की जरुरतो को पूरा नही करती।
- इन्सान को हमेशा सत्य की राह पर चलते हुए बिना सांसारिक लाभ की चिंता किये बगैर हमेसा साहसी और ईमानदार होना चाहिए।
- नेता वही होता है जिसका नेतृत्व संतोषप्रद और प्रभावशाली हो जो अपनों के लिए सदैव आगे रहता है और ऐसे लोग हमेसा निर्भीक और साहसी होते है।
- हिन्दू धर्म में नारी दुर्गा और सरस्वती दोनों का रूप होती है अर्थात वह सबका आधार होती है जो सुंदर भी होती है तो शक्ति का रूप भी होती है।
- दूसरों पर विश्वास न रखकर स्वंय पर विश्वास रखो। आप अपने ही प्रयत्नों से सफल हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रों का निर्माण अपने ही बलबूते पर होता है।
- वास्तविक मुक्ति दुखों से निर्धनता से, बीमारी से, हर प्रका की अज्ञानता से और दासता से स्वतंत्रता प्राप्त करने में निहित है।
- पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शांतिपूर्ण साधनों से उद्देश्य पूरा करने के प्रयास को ही अहिंसा कहते हैं।
सार्वजनिक जीवन में अनुशासन को बनाए रखना बहुत ही जरूरी है, वरना प्रगति के मार्ग में बाधा खड़ी हो जायेगी।