कोई भी इंसान अपने साथ अच्छी किस्मत को लेकर पैदा नहीं होता। वो अपने हुनर और मेहनत से अपनी सफलता की नई कहानी लिखता है जिसे लोग सदियों तक याद रखते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं 22 हजार से भी अधिक महिलाओं को सशक्त और हुनरमंद बनाने वाली रूमा देवी। बेहद साधारण सी दिखने वाली रूमा देवी ने अपने हुनर के दम पर अमेरिका तक का सफर तय किया है। महज 8वीं पास रूमा देवी आज हजारों महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। हांलाकि उनका ये सफर आसान नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है। बावजूद इसके रूमा देवी आज 75 गांव में रहने वाली हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। उन्होंने सांस्कृतिक विरासत के ज़रिये बाड़मेर और राजस्थान की तमाम महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया है। इनके काम के चलते इन्हें अमेरिका में सफोक काउंटी एग्जीक्यूटिव के कार्यक्रम में सम्मानित भी किया गया है। आइए जानते हैं कैसे संघर्ष से जूझकर रूमा देवी ने बड़ी सफलता हासिल की है।

बचपन से ही किया संघर्ष

नवम्बर 1988 को राजस्थान के बाड़मेर शहर से 25 किमी दूरी पर स्थित रावतसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मीं रूमा देवी का जीवन बचपन से ही संघर्षमय रहा। उनके जन्म के कुछ साल बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया। आठ भाई-बहनों में रूमा सबसे बड़ी बेटी थी। माँ की मृत्यु के बाद रूमा के पिता ने दूसरी शादी कर ली और उन्हें चाचा के पास छोड़ दिया। मां की मृत्यु हो जाने के कारण उन्होंने केवल 8वीं तक ही पढ़ाई की। कम उम्र से ही घर के सारे काम सीख लिए और घर का काम भी करने लगी।

बेटे की मौत ने झकझोर दिया था

कम उम्र में ही रूमा देवी की शादी करा दी गई। ससुराल में भी उनके आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। गृहस्थी जीवन संभला भी नहीं था कि उनका बच्चा बीमार पड़ गया। ससुराल में पैसों की कमी के कारण उसका इलाज नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई। यहीं से रूमा ने ठाना कि वो अब नियति के भरोसे नहीं बैठ सकती हैं। गरीबी ने उनसे पढ़ाई, बच्चा और खुशी सबकुछ छीन लिया था। इसके बाद ही उन्होंने निश्चिय किया कि अब वो अपने पैरों पर खड़ी होंगी।

कशीदाकारी के हुनर को बनाया अपना हथियार

रूमा देवी बेशक से पढ़ाई नहीं कर पाई थी, लेकिन उनके पास हुनर था। उन्होंने अपने इसी हुनर को अपना करियर बनाने की ठानी। वो दीप-देवल नाम के एक एनजीओ से जुड़ गईं। जहां कशीदाकारी का काम करने वाली रूमा देखते-देखते सबकी चहेती बन गई। साल 2010 में उन्हें एनजीओ का अध्यक्ष बना दिया गया। आज रूमा देवी की पहचान फैशन डिजाइनर के रूप में है। उन्होंने अपने हुनर का जादू विदेशों में भी दिखाया। रूमा देवी के कशीदाकारी कपड़ों की विदेशों तक मांग है। रूमा के बनाए कपड़ों को लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन शो में भी दिखाया जा चुका है।

हजारों महिलाओं को बनाया सशक्त

खुद विपरीत परिस्थिति की मार झेल चुकी रूमा देवी ने केवल खुद को ही आत्मनिर्भर नहीं बनाया बल्कि अपने जैसी हजारों महिलाओं का जीवन संवारा है। उन्होंने कई महिलाओं को अपने एनजीओ से जोड़ना शुरू किया और आज इस एनजीओ से 75 गांवों की 22 हजार महिलाएं जुड़ चुकी हैं। ये महिलाएं हस्तशिल्प के उत्पाद बनाकर अपना घर चलाती हैं।

नारी शक्ति सहित कई पुरुस्कारों से हो चुकी हैं सम्मानित

रूमा देवी के हुनर और उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें हावर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए बुलाया गया था। जहां इन्होंने लेक्चर देकर भारत का मान बढ़ाया। इनके महान कार्यों के लिए इन्हें 2018 में महिला दिवस के मौके पर नारी शक्ति अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। यही नहीं रूमा देवी अपना कौशल केबीसी में भी दिखा चुकी हैं। 'कौन बनेगा करोड़पति' में उन्होंने अमिताभ बच्चन के सवालों को बखूबी जवाब देकर 12 लाख 50 हजार रुपये जीते थे। हाल ही में मेरिडियन कॉन्फ्रेंस सेंटर में जीटो इंटरनेशनल की ओर से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में रूमा देवी को आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम में UAE समेत 12 देशों की जानी मानी हस्तियाँ शामिल थी। इसके अलावा वो कई अन्य पुरुस्कारों से भी सम्मानित हो चुकी हैं।

बचपन से ही संघर्ष की आग में तपने वाली रूमा देवी आज खरा सोना बन चुकी हैं। कभी 10 किलोमीटर दूर से पानी भर के लाने वाली रूमा अब अमेरिका तक की यात्रा कर चुकी हैं लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी पारम्परिक वेशभूषा को नहीं छोड़ा। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की नई कहानी लिखी है। आज वो लाखों महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं।