कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो, दुष्यंत कुमार की लिखी इस पंक्ति से इंसान चाहे तो क्या कुछ हासिल नहीं कर सकता। बस जरूरत है तो पक्के मन के साथ किसी भी काम को पूरा करने की। इस बात को प्रमाणित कर मिसाल पेश की है आईआईएम रांची में प्रोफेसर रंजीत रामचंद्रन ने।

इनके जीवन की कहानी से हम सभी प्रेरित हो सकते हैं। कभी झोपड़ी में रहकर जीवन यापन करने वाले रंजीत घर खर्च चलाने के लिए रात में चौकीदारी का काम करते थे और दिन में अपनी पढ़ाई कर के रंजीत आज अपनी मेहनत के दम पर प्रोफेसर बने हैं।

प्रोफेसर रंजीत रामचंद्रन की सफलता की कहानी

आइए जानते हैं रंजीत रामचंद्रन के संघर्ष के दिनों से सफलता तक के इस प्रेरक सफर के बारे में।

संघर्ष के आगे नहीं मानी हार: 

केरल के कासरगोड जिले के पनाथुर में एक गरीब परिवार में जन्में रंजीत रामचंद्रन शुरू से ही पढ़ाई में काफी तेज़ थे। रंजीत के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। सिर ढकने के लिए एक टूटे-फूटे कमरे के मिट्टी की झोपड़ी थी जिसमें उनका परिवार जीवन यापन करता था।

उनके पिता एक दर्जी थे और उनकी मां महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत दिहाड़ी मज़दूरी करती थी।

रंजीत रामचंद्रन बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे, इसी के कारण हायर सेकेंडरी में उनके काफी अच्छे मार्क्स आये। इसके बाद रंजीत ने राजापुरम के पायस टेंट कॉलेज में बीए अर्थशास्त्र में एडमिशन लिया। फिर उन्होंने कासरगोड में केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीजी किया।

आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण वे पीजी पूरा होने तक नाइट वॉचमैन की नौकरी करते रहे और बाद में देश के प्रमुख संस्थानों में से एक IIT मद्रास में इन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री के लिए अध्ययन भी किया था।

दिन में पढ़ाई करने के बाद रात में करते थे नौकरी: 

IIT मद्रास में एडमिशन लेने के बाद रंजीत पूरी तरह से हताश थे क्योंकि वह मलयालम के अलावा कोई अन्य भाषा नहीं जानते थे।

उनके लिए कम्युनिकेशन काफी कठिन हो रहा था और घर की चिंता अलग ही थी इसलिए वह ये पढ़ाई छोड़ना चाहते थे।

हालांकि, IIT मद्रास में उनके प्रोफेसर डॉ सुभाष ने उन्हें अपना डिग्री कोर्स जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हीं की बात मान कर रंजीत ने पूरी लगन के साथ सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगाया।

ऐसे बने प्रोफेसर: 

आईआईटी मद्रास से डॉक्टोरल डिग्री हासिल करने के बाद रंजीत ने कुछ महीने क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में बतौर सहायक प्रोफेसर पढ़ाया।

इसी बीच उन्होंने कालीकट यूनिवर्सिटी में भी आवेदन दिया। ये वो समय था जब उन्हें इस जॉब से बहुत उम्मीदें थी लेकिन उनका नाम मेरिट लिस्ट में तो आ गया पर फाइनल सेलेक्शन नहीं हुआ।

इस रिजेक्शन पर हताश होकर हार मानने की बजाय उन्होंने फिर से आवेदन दिया और आखिरकार IIM Ranchi  में उनका सेलेक्शन सहायक प्रोफेसर के पद के लिए हो गया।

IIM Ranchi

रंजीत के कई शोध पत्र विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।

कभी झोपड़ी में रहकर जीवन जीने वाले रंजीत चाहते तो परिस्थिति का हवाला देकर दूसरी जीवनशौली अपना सकते थे। लेकिन उन्होंने कभी भी विपरीत परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानी। वे लगातार मेहनत करते गए और आगे बढ़ते गए।

उन्होंने आज अपनी मेहनत और लगन के बल पर सफलता की कहानी लिखी है जिससे वे लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गये हैं।