अब राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, राजा वहीं बनेगा जो इसका सच्चा हकदार होगा। फिल्म सुपर 30 का ये डॉयलोग तो आपको याद ही होगा। जरूरी नहीं कि आपके पिता यदि डॉक्टर नहीं है तो आप डॉक्टर नहीं बन सकते, जरूरी नहीं कि आपके घर में कोई इंजीनियर नहीं है तो आप इंजीनियर नहीं बन सकते। आप अपनी काबिलियत और मेहनत के दम पर वो बन सकते हैं जो आप बनना चाहते हैं। फिल्म सुपर 30 की कहानी भी यही बताती है। इस फिल्म में अभिनेता ऋतिक रोशन ने गणितज्ञ आनंद कुमार की भूमिका निभाई थी। लेकिन असली आनंद कुमार कौन है इस विषय में बहुत कम लोग जानते हैं। आनंद कुमार सुपर 30 के संस्थापक और हजारों-लाखों स्टूडेंट की प्रेरणा है। लेकिन आनंद कुमार के लिए यह सब करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता की कहानी (Success Story)।

 

आनंद कुमार का जन्म बिहार के पटना शहर में 1 जनवरी 1973 को हुआ था। आनंद कुमार एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। उनके पिता डाकघर में क्लर्क के पद पर काम किया करते थे। आनंद को बचपन से पढ़ाई का शौक था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि पिता उनका प्राइवेट स्कूल का ख़र्चा उठा पाए। इसीलिए उनका दाख़िला पटना के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया गया था। आनंद कुमार बचपन से ही गणित में बहुत तेज थे। वह हर दिन घंटों तक गणित पढ़ा करते थे और छोटे भाई और छोटे बच्चों को भी पढ़ाया करते थे। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद आनंद कुमार ने “बिहार नेशनल कॉलेज” में एडमिशन लिया। इस कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही आनंद कुमार ने नंबर थ्योरी “हैप्पी नंबर्स” पर पेपर सबमिट किये थे। इस पेपर का प्रकाशन मेथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मेथेमेटिकल गेजेट में भी किया गया था।

कॉलेज की पढ़ाई के समय ही आनंद कुमार के पिता की मृत्यु हो गयी थी। जिसके कारण पूरे परिवार की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई थी। आनंद कुमार की काबिलियत को देखते हुए उन्हें कैम्ब्रिज एंड शेफ़्फील्ड यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई का प्रस्ताव भी मिला था। लेकिन आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण उन्होंने अपने इस सपने को बीच में ही छोड़ दिया। परिवार की सहायता करने के लिए आनंद कुमार सुबह-सुबह कॉलेज जाकर गणित की क्लास लेते थे और उसके बाद शाम को अपनी मां और भाई के साथ जाकर पापड़ बेचा करते थे। इसके साथ ही आनंद कुमार बच्चों को पढ़ाते रहते थे। आनंद कुमार पढ़ाई के लिए इतने ज्यादा समर्पित थे कि वो 6 घंटे का सफर तय कर बनारस जाया करते थे क्योंकि बिहार में एक बड़ी लाइब्रेरी नहीं थी।

 

जब आनंद कुमार की पढ़ाई पूरी हो गई तो उन्हें अपने पिता की जगह डाकघर में काम करने का अवसर मिला। लेकिन आनंद कुमार ने इसे करने से मना कर दिया। आनंद कुमार बच्चों के लिए कुछ करना चाहते थे इसलिए वो उन्हें शिक्षित करने में जुट गए। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथमेटिक्स की स्थापना की। उन्होंने इस कोचिंग की शुरूआत मात्र 2 छात्रों के साथ की थी लेकिन देखते ही देखते 2 सालों में छात्रों की संख्या 36 हो गई और तीसरे साल यह संख्या 500 से अधिक हो गई। आनंद कुमार की जिंदगी में टर्निंग पाइंट तब आया जब उन्होंने देखा कि उनके कोचिंग सेंटर में एक गरीब छात्र को पैसों की कमी के कारण एडमिशन नहीं दिया गया। वो छात्र आईआईटी करना चाहता था।

आनंद कुमार ने इस बच्चे की पढ़ाई का पूरा खर्च और रहने की व्यवस्था की। इस छात्र ने पहली ही बार में आईआईटी (IIT) की परीक्षा पास कर ली। तब आनंद कुमार को लगा कि ऐसे कितने ही बच्चे हैं जिनके पास काबिलियत तो है लेकिन पैसों की कमी के कारण वो आगे नहीं बढ़ पाते। जिससे प्रेरित होकर आनंद कुमार ने वर्ष 2002 में सुपर 30 की नीव रखी। इस सुपर 30 में केवल उन्ही छात्रों का चयन किया जाता हैं जो कि आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और जिनमें आगे बढ़ने का जुनून होता है।

सुपर 30 में 30 ऐसे छात्रों को पढाया जाता हैं जो कि महँगी कोचिंग का ख़र्चा नहीं उठा सकते हैं। इसकी संख्या 30 इसीलिए रखी हैं क्योंकि इन विद्यार्थियों का रहने का खर्चा आनंद कुमार खुद उठाते हैं। साथ ही वो उनके स्टडी मटेरियल की भी व्यवस्था करते हैं। इन 30 छात्रों के चयन के लिए हर साल मई महीने में एक एट्रेंस एग्जाम आयोजित किया जाता है जिसके आधार पर इन छात्रों को चुना जाता है। आनंद कुमार के सुपर 30 से शिक्षित हुए लगभग हर छात्र का दाखिला आईआईटी में हो जाता है। कई बार तो ऐसा हुआ हैं कि सभी के सभी 30 छात्रों का सिलेक्शन आईआईटी संस्थानों में हो जाता हैं। अब तक आनंद कुमार से शिक्षित हुए 450 से अधिक छात्रों का चयन आईआईटी के लिए हुआ हैं।

आनंद कुमार के इस सराहनीय कार्य को देखते हुए उन्हें कई अवार्ड से सम्मानित किया गया है। आनंद कुमार को पढाई के क्षेत्र में सबसे बड़ा पुरस्कार “राष्ट्रीय बाल कल्याण अवार्ड एवं “लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड” में शामिल किया गया है। 2009 में “टाइम” मैगज़ीन द्वारा सुपर 30 को बेस्ट इंस्टिट्यूट ऑफ़ एशिया 2010 में शामिल किया गया। वर्ष 2010 में आनंद कुमार को बिहार के सर्वोच्च सम्मान “मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा पुरस्कार” और प्रोफेसर यशवंत केलकर युवा पुरस्कार” अवार्ड से सम्मानित किया गया।

आनंद कुमार की सफलता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज उनके जीवन पर आधारित फिल्म सुपर 30 बनी है। जिसने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ है। आनंद कुमार अपनी  सफलता की कहानी (Success Story)  बताते हुए कहते हैं कि असली चीज इच्छाशक्ति है, उससे ही आपको सफलता मिलती है। भाषा ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है विषय का ज्ञान और उस ज्ञान को प्राप्त करने की योग्यता। आनंद कुमार आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बन चुके हैं।