भारत में अच्छा काम करने वालों की कमी नहीं है। यहां हर जगह आपको कोई न कोई ऐसा शख्स जरुर मिल जाएगा जो निस्वार्थ भाव से सामाजिक कार्यों में लगा रहता है। समाज के प्रति यह लोग अपनी बखूबी जिम्मेदारी निभाते हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले एक ऐसे ही शक्श है राजेश कुमार शर्मा। राजेश ना केवल गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं बल्कि वो उनके भविष्य को भी सुधार रहे हैं। राजेश के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह नहीं है लेकिन फिर भी वो मेट्रो पुल के नीचे ‘द फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ के नाम से स्कूल चला रहे हैं।

राजेश के इस स्कूल में लगभग 300 गरीब बच्चे पढ़ते हैं। गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा की ज्योत जलाने वाले राजेश कुमार शर्मा मूल रूप से उत्तर प्रदेश में हाथरस के रहने वाले हैं और आजीविका के लिए लक्ष्मी नगर में एक किराने की दुकान चलाते हैं|  राजेश कुमार चाहते तो अपनी आजीविका के लिए चलाई जा रही दुकान से ही खुश रहते। लेकिन वो समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। राजेश कुमार शर्मा बच्चों को वह बुनियादी शिक्षा दिलाना चाहते हैं जो उनके जीवन को आगे बढ़ने के लिए चाहिए।

राजेश पिछले 13 वर्षों से दिल्ली में यमुना नदी के तट के पास मेट्रो पुल के नीचे 300 गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं। भारत मे वैसे तो स्कूल की कमी नहीं है लेकिन उसमें सभी को दाखिला मिल जाए यह संभव नहीं है। सभी बच्चों को शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से राजेश ने यह काम करना शुरू किया है।   ‘द फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ नाम के इस स्कूल में न तो कोई क्लास रूम है और न ही कोई इमारत है। यह स्कूल मेट्रो पुल के नीचे हैं। जहां 300  गरीब बच्चे पढ़ते हैं। यह स्कूल उन बच्चों को दाखिला देता है जिनके पास पैसे नहीं है जो अपनी शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकते।

राजेस कहते हैं कि यहां पढ़ने वाले  बच्चो के मां-बाप मजदूरी करके या सब्जी का ठेला लगाकर अपने परिवार का पेट पालते है। यही वजह है कि फीस नही भर सकते। इसलिए वह अपने बच्चों को इस स्कूल में पढने के लिए भेजते है क्योंकि इस स्कूल में बच्चों से कोई फीस नही ली जाती। राजेश द्वारा स्थापित ‘द फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ नाम का ये स्कूल दो शिफ्ट में चलता है, पहली शिफ्ट होती है सुबह 9 से 11 बजे जिसमें 120 लड़के पढ़ते हैं और दूसरी शिफ्ट होती है दोपहर 2 से 4: 30 बजे जिसमें 180 लड़कियां पढ़ती हैं। स्कूल में सात शिक्षक भी हैं जो अपने खाली समय में चार से चौदह वर्ष की आयु के इन छात्रों को पढ़ाने के लिए आते हैं। अन्य स्कूलों के विपरीत, इस ओपन स्कूल में पुल के नीचे कोई स्ट्रक्चर नहीं है।  यह अपने आप में एक अनोखा स्कूल है।

इस स्कूल में ब्लैकबोर्ड दीवार पर पेंटिंग से बने हैं। इनके पास केवल पांच ब्लैकबोर्ड हैं। स्कूल के पास चाक, डस्टर, पेन और पेंसिल जैसी बुनियादी स्टेशनरी है जिससे शिक्षकों को पढ़ाने में मदद मिलती है। छात्र अपनी नोटबुक लाते हैं और उस जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं। स्कूल में लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा है, इसके अलावा छात्रों को बुनियादी स्वच्छता और सफाई के बारे में भी पढ़ाया जाता है। राजेश कुमार शर्मा आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बन चुके हैं। बच्चों के लिए किए जा रहे इस काम की प्रशंसा हर ओऱ हो रही है। उनकी सफलता की कहानी (Success Story) सभी के लिए मोटिवेशन (Motivation) है।

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