साल 2020 कई उतार-चढ़ाव के बीच रहा। एक और दुनिया कोरोना महामारी से जूझती रही तो वहीं दूसरी ओर यह साल भारत में आर्मी की महिला अफसरों के लिए खुशखबरी लेकर आया था। 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो पाया।  सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में दिए गए अपने एक अहम फैसले में कहा था कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया था,  जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था।

साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महिलाओं को पुरुष अफसरों की बराबरी का अधिकार दिलाया था। जो अभी तक केवल पुरुषों को ही मिलता था। आर्मी में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष सैनिकों को ही स्थाई कमीशन के हकदार थे। वायुसेना और नौसेना में पहले से ही महिला अफसरों को स्थाई कमीशन मिल रहा है केवल थलसेना में ही महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित थीं।

2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह 3 अहम बाते थीं

स्थाई कमीशन : इसके तहत शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली सभी महिला अफसर स्थाई कमीशन की हकदार होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल से कम और उससे ज्यादा सेवाएं दे चुकीं महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन का मौका दिया जाए।

कॉम्बैट रोल : इसके तहत महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सेना पर छोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि  'जंग में सीधे शामिल होने वाली जिम्मेदारियां (कॉम्बैट रोल) में महिलाओं की तैनाती नीतिगत मामला है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही कहा था। इसलिए सरकार को इस बारे में सोचना होगा।'

कमांड पोस्टिंग : इसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'थलसेना में महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग नहीं देने पर पूरी तरह से रोक लगाना गलत है और बराबरी के अधिकार के खिलाफ है। महिलाओं को कमांड पोस्टिंग का अधिकार मिले।

महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई सख्त टिप्पणियां भी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि , 'महिला अफसरों की तैनाती को लेकर केंद्र सरकार के नीतिगत फैसले बहुत ही अनोखे रहे हैं। शारीरिक सीमाओं और सामाजिक मानदंडों के चलते महिला अफसरों को स्थाई कमीशन नहीं देने की केंद्र की दलील परेशान कर देने वाली है। ऐसी दलीलों को कतई मंजूर नहीं किया जा सकता। थलसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देना चाहिए। अतीत में महिला अफसरों ने देश के लिए बहादुरी दिखाई है। अंग्रेजों का दौर खत्म होने के 70 साल बाद भी सरकार को सशस्त्र बलों में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए मानसिकता बदलने की जरुरत है।

महिलाओं को हक दिलाने का मामला 17 साल पहले यानी 2003 में बबीता पुनिया द्वारा उठाया गया था। वह पहली महिला वकील थीं, जिन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले में याचिका दायर की थी। उनके बाद 9 महिला अफसरों ने 2009 तक हाईकोर्ट में इसी मुद्दे पर अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं। 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाया और महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने कहा था कि ''यह साफ किया जाता है कि जो महिला अफसर रिटायरमेंट की उम्र तक नहीं पहुंचीं हैं, उन सभी को स्थाई कमीशन दिया जाए। हम महिलाओं पर कोई एहसान नहीं कर रहे, हम उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार दिला रहे हैं।''

हाईकोर्ट के फैसले के नौ साल बाद सरकार ने फरवरी 2019 में सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने की नीति बनाई, लेकिन यह कह दिया कि मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही इसका फायदा मिलेगा। जिसके बाद वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर मुहर लगा दी कि थलसेना में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर स्थाई कमीशन दिया जाएगा।

इस फैसले के पहले तक महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डनेंस, एजुकेशन कोर, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में ही एंट्री पा सकती हैं। उन्हें कॉम्बैट सर्विसेस जैसे- इन्फैंट्री, आर्मर्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में काम करने का मौका नहीं दिया जाता। यह फैसला 2020 के सर्वोच्च फैसलों में से एक जिसने इस वर्ष को महिला अफसरों के लिए खास बना दिया।

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