देश में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत और साहस के दम पर कुछ ऐसा कर दिखाया है कि पूरी दुनिया ने उसका लोहा माना है. आज हम ऐसी ही एक महिला की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने पूरे देश का न सिर्फ मान बढ़ाया है बल्कि  महिला समाज को एक ऐसा तमगा भी दिया है, जिसे आने वाली पीढ़ियों को भूलना काफी मुश्किल होगा. बात की जा रही है “डॉ. आनंदी गोपाल जोशी” की,जिन्होंने समाज को सिखाया है कि अपने सपनों को उड़ान कैसे दी जाती है.

 

डॉक्टर आनंदी जोशी की प्रेरणादायक कहानी (Inspirational Story Of Dr. Anandi Joshi)

 

महाराष्ट्र में जन्मी आनंदी गोपाल जोशी की शादी सिर्फ 9 साल की उम्र में गोपालराव के साथ हुई थी. आनंदी एक ऐसे परिवार का हिस्सा थी, जहां पर महिलाओं के पास ज्यादा अधिकार नहीं थे. हर छोटी बात के लिए परिवार के पुरूष सदस्यों से अनुमति लेना आनंदी के घर की परंपराओं में से एक था. लेकिन आनंदी के पति उन्हें पढ़ाना चाहते थे.  आनंदी का पढ़ाई से कोई खास लगाव तो नहीं था लेकिन जब उनके पति ने पढ़ाई के महत्व के बारे में समझाया तो उन्होंने गंभीरता से पढ़ाई करना शुरू कर दिया.

 

एक घटना ने आनंदी के जीवन को पूरी तरह बदल दिया. आनंदी ने जब अपनी पहली संतान को जन्म दिया तो इलाज़ के अभाव में उस बच्चे की मृत्यु हो गई. इस घटना का उन पर काफी गहरा असर पहुंचा और अपनी संतान को खोने पर उन्होंने यह प्रण लिया कि अब वह किसी भी बच्चे को इलाज़ के अभाव में मरने नहीं देंगी और वह एक दिन डॉक्टर  बनेंगी. आनंदी के इस फैसले में उनके पति गोपालराव ने भरपूर सहयोग दिया था.

 

भारत में उस दौर में एलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं होती थी, इसलिए पति ने उन्हें विदेश भेजने की तैयारी शुरू कर दी. विदेश भेजने के फैसले को लेकर समाज और परिवार के लोग विरोध करने लगे थे, समाज को यह कतई गवारा नहीं था कि एक शादीशुदा हिंदू औरत विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करे.

 

समाज में बढ़ते विरोध को देखते हुए आनंदी ने श्रीरामपुर कॉलेज में मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के मक़सद को परिवार के लोगों  के मध्य खुलकर रखा. उन्होंने लोगों को बताया था कि, विदेश जाकर सिर्फ डॉक्टरी की शिक्षा नौकरी करने के लिए नहीं बल्कि लोगों की जान बचाने के लिए  है.

 

आनंदी ने पेंसिल्वेनिया की वूमन मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की और उन्हें रानी विक्टोरिया ने उनकी पढ़ाई और काबिलियत को देखते हुए बधाई दी. 1886 के अंत में आनंदी डॉ. आनंदी बनकर अपने देश भारत लौटी, जहां उनका भव्य तरीके से स्वागत किया गया. कोल्हापुर की रियासत ने उन्हें स्थानीय अल्बर्ड एडवर्ड अस्पताल (Albert Advert Hospital) में महिला वार्ड की चिकित्सक प्रभारी के रूप में नियुक्त किया. लेकिन देश की पहली महिला डॉक्टर ( First Women Doctor in India) आनंदी की लगातार बिगड़ती तबियत के कारण  उन्होंने महज 22 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया.

डॉ आनंदी गोपाल जोशी की कहानी हमारे लिए प्रेरणादायक (Inspirational Story)  हैं, जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को नकारते हुए देश का नाम रौशन किया.

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