महिलाएं आज किसी भी तरह से पुरुषों से पीछे नहीं है। आज वो हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। महिला अगर चाहे तो वो क्या नहीं कर सकती उसके लिए कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। महिला सशक्तिकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण है शीला दावरे। जिन्होंने भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर का गौरव प्राप्त कर महिला सशक्तिकरण को सार्थक किया है। देश की सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाओं को सम्मानित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 सितंबर को 'भारत की लक्ष्मी' नामक एक सोशल मीडिया अभियान शुरु किया था। जिसके तहत भारत सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से शीला दावरे की स्टोरी शेयर की गई थी। जिसमें शीला दावरे को भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर बताया गया था। शीला दावरे ने 1988 में समाज की मान्यताओं तोड़ते हुए ऑटो-रिक्शा चलाना शुरू किया था। आइए जानते हैं उनकी कहानी-

 

शीला जब 18 साल की थी तो उन्‍होंने अपना घर छोड़ दिया था। तब उनके हाथों में महज 12 रूपये थे। यह अस्‍सी के दशक की बात है। तब पुणे में सारे टैक्सी ड्राइवर पुरुष थे जो कि खाकी ड्रेस पहनते थे। ऐसे में शीला ने सलवार कमीज पहनकर ऑटो चलाना शुरू किया। उन्होंने ऐसे समय में अपने काम की शुरुआत की थी जब महिलाओं की थोड़ी बहुत पढ़ाई के बाद उनकी शादी करवा दी जाती थी। लेकिन शीला ने समाज के नियमों में बदलाव लाने की ठान ली। शीला के परिवार ने इस काम का शुरुआत में विरोध किया। उन्हें तरह-तरह के ताने सुनने पड़े।  लेकिन बाद में उनके काम को स्वीकार कर लिया गया। महिला होने के कारण अक्सर लोग किराया चुकाने में आनाकानी करते थे। शुरुआत में राइड्स से मामूली कमाई शुरू हुई। शीला कहती हैं कि शुरुआत में लोग मुझे सिर्फ महिला होने की वजह से ऑटो किराए पर देने से घबराते थे। मगर धीरे-धीरे पैसा जोड़कर और यूनियन की मदद से उन्होंने खुद का एक ऑटो रिक्शा खरीदा। जिससे वो खुद कमाई कर सकती थीं। वहीं ऑटो चलाने के दौरान ही उनकी मुलाकात शिरीष कांबले से हुई थी। शिरीष भी ऑटो ड्राइवर हैं। शीला ने शिरीष से शादी कर ली।  2001 तक पति शिरीष और शीला दावरे अलग- अलग ऑटो चलाते थे। स्वास्थ्य के अच्छा ना होने के कारण करीब 13 साल तक ऑटो ड्राइवरी करने के बाद उन्हें यह काम छोड़ना पड़ा। आज वह और उनके पति अपनी ट्रैवल कंपनी चलाते हैं। उनके पति शिरीष ने हमेशा उनका साथ दिया। शीला कहती हैं कि, ‘मेरे माता-पिता ने भी इस फैसले का जमकर का विरोध किया था। लेकिन आज मुझे सफल देखकर वो बहुत खुश होते हैं।

 

आज शीला का नाम भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर के तौर पर लिम्‍का बुक में भी दर्ज हो चुका है। शीला दावरे अब महिलाओं को ड्राइविंग के लिए प्रोत्‍साहित करने का काम करती हैं। शीला की सफलता की कहानी (Success Story) उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है जो रुढ़िवादी सोच के कारण आगे नहीं बढ़ पाती। शीला सभी महिलाओं को मोटिवेट (Motivate) करती है ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। यदि आप भी शीला दावरे की तरह अपने करियर में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं एवं अपना बिज़नेस शुरु करना चाहते हैं तो आप हमारी हमारी वेबसाइट https://www.badabusiness.com/life-time-membership?ref_code=ArticlesLeads पर Visit  करें।