जिन्दगी में कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो आप क्या कुछ नहीं कर सकते। यह जरूरी नहीं कि आपने कहां जन्म लिया है?, आपकी पारिवारिक स्थिति क्या है?, आप क्या करते हैं?, कैसे दिखते हैं इत्यादि। आपकी कोई भी कमजोरी तब तक आपको हरा नहीं सकती जब तक आप खुद से हार नहीं मानते। अपनी किस्मत को बदल कर अपनी एक नई पहचान बनाने वाली एक ऐसी ही शख्सियत हैं इल्मा अफ़रोज़। इल्मा अफ़रोज़ ने खेतों में काम करने से लेकर ज़रूरत पड़ने पर लोगों के घरों में बर्तन मांजने तक का काम किया पर कभी हिम्मत नहीं हारी और आज देश की सेवा के लिए आईपीएस ऑफिसर बनी हैं। घरों में काम करने से लेकर आईपीएस ऑफिसर बनने तक का सफर इल्मा अफ़रोज़ के लिए इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी (Success Story)।

इल्मा अफ़रोज़ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के छोटे से गाँव कुंदरकी की रहने वाली है। इल्मा के इतिहास को और इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा को देखकर कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि यह लड़की दिल्ली के स्टीफेन्स कॉलेज से लेकर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और न्यूयॉर्क तक भी जा सकती है। इल्मा अफ़रोज़ का जन्म एक समान्य परिवार में हुआ था। इल्मा जब 14 साल की थी तभी असमय उनके पिता की मृत्यु गई थी। इल्मा से दो साल छोटा उनका भाई था। घर में अचानक से दुखों को पहाड़ टूट पड़ा था। उनकी मां को समझ नहीं आ रहा थी कि वो क्या करें। ऐसे में कुछ लोगों ने सलाह दी कि लड़की को पढ़ाने में अपने पैसे बर्बाद ना करें इसकी शादी कर दें। जिससे बोझ कम हो जाएगा।

लेकिन इल्मा की मां ने लोगों की बात नहीं सुनी। इल्मा पढ़ाई में शुरू से ही तेज थी। वो हमेशा अव्वल आती थीं। इसलिए उनकी मां ने उनकी शादी के लिए पैसे ना जोड़कर उनकी पढ़ाई में पैसे लगा दिए। इल्मा ने अपनी मेहनत के दम पर स्कॉलरशिप्स पाना शुरू कर दिया। इल्मा कि पूरी हायर स्टडीज़ स्कॉलरशिप्स के माध्यम से ही हुई। इल्मा को दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में एडमिशन मिल गया था। जिसकी वजह से वो दिल्ली आ गई। बेटी को दिल्ली भेजे जाने के कारण इल्मा की मां को तरह-तरह के ताने सुनने पड़े थे। लेकिन इल्मा की मां को उन पर पूरा भरोसा था। सेंट स्टीफेन्स से ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त करने के बाद इल्मा को मास्टर्स के लिये ऑक्सफोर्ड जाने का अवसर मिला।

इसके बाद भी उनके गांव वाले खुश होने की बजाय उनकी मां को यह कहने लगे कि आपकी लड़की हाथ से निकल गई है, अब वो वापस नहीं आएगी इत्यादि। लेकिन इल्मा की मां ने उन्हें पढ़ने यूके भेजा। इल्मा यूके में अपने बाक़ी खर्चें पूरे करने के लिये कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी तो कभी छोटे बच्चों की देखभाल का काम करती रही। यहाँ तक कि वो लोगों के घरों में बर्तन भी धोया करती थी। ताकि उनका खर्च निकल पाए।

इतना कुछ करने के बाद इल्मा एक वॉलेंटियर प्रोग्राम में शामिल होने न्यूयॉर्क गयीं, जहाँ उन्हें बढ़िया नौकरी का ऑफर मिला। इल्मा चाहती तो यह ऑफर ले लेती और विदेश में ही बस जाती लेकिन इल्मा ने ऐसा नहीं किया। वो अपने देश के लिए ही सेवा करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने उस नौकरी को मना कर दिया। इल्मा जब न्यूयॉर्क से वापस आईं तब उनके उन्होंने यूपीएससी करने का विचार किया। इसके लिए उनके भाई और मां ने उन्हें प्रेरित (Motivate) किया।

गांव वाले भी अपनी समस्याओं को लेकर इल्मा के पास आते थे क्योंकि वो विदेश से पढ़कर आई थी। इन सब बातों ने उन्हें यूपीएससी की ओर प्रेरित (Motivate) किया। बस फिर क्या इल्मा इसकी तैयारी करने में जुट गई। साल 2017 में 26 साल की इल्मा को 217वीं रैंक प्राप्त हुई। वो यूपीएससी की परीक्षा में पास हो गई। इसके बाद जब सर्विस चुनने की बारी आयी तो उन्होंने आईपीएस चुना। बोर्ड ने जब उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें देश की सेवा करनी है।

इल्मा ने कभी भी अपनी पढ़ाई को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। इल्मा ने अपनी मेहनत और आगे बढ़ने की सोच के कारण सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। इल्मा की मां ने इसमें उनका पूरा साथ दिया है। इल्मा अफ़रोज़ आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बन चुकी हैं। मुश्किलों से हार ना मानकर सफलता कैसे प्राप्त की जाती है इस बात की जीती-जागती मिसाल इल्मा अफ़रोज़ हैं।

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