इंसान अगर कुछ करने की ठान ले तो उसके लिए तो कुछ भी नामूमकिन नहीं होता। वो पत्थर में से भी पानी निकाल सकता है और बंजर ज़मीन को भी फिर से हरा-भरा बना सकता है। ऐसे ही 7.5 एकड़ की बंजर ज़मीन को ऊपजाऊ बनाने का काम किया है चिंतन शाह ने। जो एमबीए (MBA) ग्रेजुएट होने के बाद भी खेती के काम से जुड़े हुए हैं। जहां लोग इतनी पढ़ाई करने के बाद किसी बड़ी कंपनी में काम करने का सोचते हैं, वहीं चिंतन ने अपनी नौकरी को छोड़कर बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाने का काम किया है। इसकी बदौलत आज वो लाखों की कमाई कर रहे हैं। लेकिन चिंतन शाह के लिए यह सब करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं चिंतन शाह का यह सफर।
चिंतन शाह गुजरात के देवपुरा के रहने वाले हैं। वो जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। साल 2011 में 33 वर्षीय चिंतने ने मुंबई से अपनी एमबीए (MBA) की पढ़ाई पूरी की थी। वो अपने फैमिली बिज़नेस में टैक्सटाइल का काम करने लगे थे। लेकिन नौकरी करना उन्हें पसंद नहीं आया। वो कुछ अलग करना चाहते थे इसलिए साल 2015 में उन्होंने 10 एकड़ ज़मीन खरीद की। गुजरात के देवपुरा में उन्होंने ज़मीन खरीदी थी लेकिन ये इलाका तंबाकू की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।
ज़मीन लेने के बाद चिंतन ने जैविक खेती के बारे में रिसर्च की। जिसके बाद जैविक खेती की बढ़ती मांग को देखते हुए उन्होंने इसे ही करने का फैसाल किया। अपने छोटे भाई की मदद से उन्होंने किसानों और मीडिया सूमह से जुड़कर अधिक जानकारी एकत्र की। लेकिन यह सब करने के बाद भी उनके लिए कृषि करना आसान नहीं था क्योंकि उन्होंने जो ज़मीन खरीदी थी, वो बंजर थी। उन्होने जहां ज़मीन ली ती वहां 20-फुट ऊँची पहाड़ियाँ थीं और कई जगह गहरे-गहरे गड्ढे थे। इसके अलावा जो कुछ भी उपजाऊ ज़मीन थी वह भी नीचे चली गई थी। जिसकी वजह से खेती करना आसान नहीं था। उन्होंने एक साल में 7.5 एकड़ ज़मीन को समतल किया।
चिंतन ने लेकिन हार नहीं मानी। मिट्टी को उपजाऊ बनाने और उर्वरता बढ़ाने के लिए उन्होंने गाय के गोबर, जैविक खाद और जीवामृत का पूरा इस्तेमाल किया। जिसके बाद उन्होंने केले, हरी सब्जी, बाजरा और हल्दी उगाने से अपनी खेती की शुरुआत की। चिंतन को पता था कि जिस क्षेत्र में तंबाकू की खेती, सब्जियां, चावल और बाजरा बोया जाता है वहां यह सब उगाने में सफलता नही मिलेगी। लेकिन चिंतन शाह पीछे नहीं हटे।
आखिरकार वो अपने प्रयासों में सफल रहे और औसतन उनकी उपज 25 किलोग्राम उपज तक पहुँच गई। जिसके बाद वो उन्होंने हल्दी उगाने का दो सफल प्रयोग किया। हल्दी की सफलतापूर्वक खेती करने के बाद चिंतन अदरक और गेहूं की खेती करने लगे। लेकिन इस प्रक्रिया में लंबा समय लगा, क्योंकि उनके साथ-साथ उनके खेत पर काम करने वाले मजदूरों को भी जैविक खेती का कोई अनुभव नहीं था। चिंतन को पता था कि जैविक खेती में रसायनों का उपयोग नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने अपनी खाद बनाने के लिए चार महीने तक काम किया, जिससे खरपतवार 60% तक कम हो गया।
चिंतन शाह कहते हैं वो कई बार असफल भी हुए लेकिन जैविक खेती करने के हौसले ने उन्हें हार मानने नहीं दी। 2019 तक, उन्होंने 1 टन हल्दी, 300 किलो अदरक और 2.5 टन गेहूँ का उत्पादन कर लिया। वो खुद अपने उपज की मार्केंटिग करने जाते हैं। उन्होंने अपने ब्रांड का नाम ‘राधे कृष्णा फार्म’ रखा। चिंतन शाह आज अपनी बंजर भूमि को उपजाऊ बना कर लाखों रूपये कमा रहे हैं। चिंतन आज लाखों किसानों को जैविक खेत के प्रति जागरूक कर रहे हैं। चिंतन की सफलता की कहानी (Success Story) लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है। उनकी यह कहानी लोगों को मोटिवेट (Motivate) करने का काम करती है।
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