किसी भी बिज़नेस की शुरुआत करने के लिए अच्छा पैसा, अच्छी प्लानिंग और सही नजरिए की जरुरत  होती है। लेकिन इन सबके अलावा भी जो सबसे ज्यादा जरुरी चीज है वो है सच्ची लगन और मेहनत की। जिसके दम पर किसी भी बिज़नेस को सफल बनाया जा सकता है। कुछ ही कहानी है पेपरफ्राय की। पेपरफ्राय की शुरुआत भारत में तब हुई जब ना तो यहां  अमेजॉन था ना फिल्पकार्ट अपनी पहचान बना पाया था। उस समय अंबरीश मूर्ति और आशीष शाह ने मिलकर पेपरफ्राय की स्थापना की थी।

पेपरफ्राई (Pepperfry) वैसे तो फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इससे पहले पेपरफ्राई ने फैशन और लाइफ स्टाइल पर ध्यान केंद्रित करते हुए ऑनलाइन मार्केटप्लेस के रूप में शुरुआत की थी। इसकी स्थापना अंबरीश मूर्ति और आशीष शाह ने की थी। उनके पास ईबे (eBay) इंडिया में फिलीपींस, भारत, और मलेशिया के लिए बतौर कंट्री मैनेजर के रूप में एक दशक तक काम करने का अनुभव था। उसी अनुभव के साथ उन्होंने 2011 की शुरुआत में स्टार्टअप शुरू करने का फैसला किया था।

पेपरफ्राई की शुरुआत में कई सारे लोग शामिल थे। 2011 के इस दौर में अंबरीश मूर्ति और आशीष शाह ने अपनी लिंक्डइन प्रोफाइल पर 'स्टार्टिंग अप' लिखा। इस स्टार्टअप में दोनों अपनी जमा पूंजी लगा चुके थे, जो पिछली नौकरी से कमाई थी। लगभग 25 लोगों की टीम बन चुकी थी, लेकिन ब्रांड का नाम तय नहीं था। ना ही काम करने की कोई जगह थी और ना ही कोई काम था। साथ बस एक साथ चलने का वादा था।

अंबरीश मूर्ति और आशीष शाह के लिए इस कंपनी को स्थापित करना कोई आसान काम नहीं था। उनकी टीम को फंडिग की जरुरत थी और टीम के पास पचास लाख डॉलर की फंडिंग का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। जून से अगस्त तक की सैलेरी देने के बाद कंपनी के खाते में केवल दस लाख रुपए ही बचे थे। ऐसे में ये पूरी टीम के साथ गोवा, छुट्टियां बिताने पहुंच गए। इनकी सोच यह थी कि पैसा अगर खत्म हो रहा है, तो साथ रहने के इस अंतिम मौके को क्यों छोड़ा जाए। पैसे खत्म होने की परवाह किए बिना यह सभी लोग छुट्टियां मनाने लगें।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इस ट्रिप के कुछ हफ्तों बाद 'पेपरफ्राय' को वो पचास लाख डॉलर की फंडिंग मिल गई, जिसका पूरी टीम को इंतजार था। फंडिंग मिलते ही पूरी टीम काम में जुट गई और अगस्त 2012 में 'पेपरफ्राय' को ग्राहकों के सामने प्रस्तुत किया गया। लेकिन लॉन्चिंग के कुछ ही घंटों में 1500 ऑर्डर आ गए और ज्यादा ट्रैफिक के कारण वेबसाइट क्रैश हो गई। तब यह वेबसाइट फैशन और लाइफस्टाइल में डील कर रही थी। पेपरफ्राई का पहला फॉर्मल ऑफिस 2012 में कोहिनूर कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स खोला गया। ये एक 25-सीटर था।

2013 में आशीष शाह और अंबरीश मूर्ति ने एक बड़ा फैसला लिया और 45 फीसदी के मार्जिन वाली फर्नीचर कैटेगरी पर अपना ध्यान लगाया गया। इस बदलाव से पहले ही दिन 35 फीसदी धंधा खत्म हो गया। टीम ने बेचने वालों और ग्राहकों से बात की लेकिन इस आईडिया को छोड़ा नहीं। आशीष कहते हैं कि ग्राहक अक्सर शिकायत करते थे कि उन्हें सेकेंड हैंड पीस मिलता है, और टीम को यह समझाने में काफी दिक्कत आती थी कि यह एक विंटेज कलेक्शन होता है। वो खुद ग्राहकों से बात करते थे।

जिसके बाद धीरे-धीरे ग्राहक लौटने लगे। डिलेवरी से लेकर डैमेज तक तमाम मोर्चों पर दिक्कतें आईं। इस सबसे जूझते हुए 'पेपरफ्राय' ने अपने पैर जमाए और आठ साल में करीब 200 मिलियन डॉलर की फंडिंग जमा कर ली है। धीर-धीरे पेपरफ्राई एक बड़ी कपंनी के रुप में स्थापित हो चुकी है। आज टीम में 500 से ज्यादा लोग हैं। टीम के बुरे दौर में साथ देने वाले टॉप मैनेजमेंट के 15 लोग आज भी टीम का हिस्सा हैं। अब ये लोग 400 ट्रक्स की मदद से अपना सामान डिलिवर कर रहे हैं।

पेपरफ्राई के संस्थापकों का मानना है कि अगर आपको लगता है कि आपके पास सही रणनीति है, तो आपको इसे नहीं बदलना चाहिए। आशीष शाह और अंबरीश मूर्ति ने अपने नए नजरिए और दूरगामी सोच के साथ अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। उनकी यह कहानी सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है।

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