महाभारत में जैसे कर्ण के नाम से पहले दानवीर जुड़ा हुआ था, वैसे ही आज के समय में बिजनेसमैन अजीम प्रेमजी (Azim Premji) के नाम के साथ भी दानवीर जुड़ चुका है। 24 जुलाई 1945 को जन्में अज़ीम प्रेमजी, आज भारतीय व्यवसाय क्षेत्र के दिग्गज व्यक्ति हैं, लेकिन उन्होंने इस मुकाम को कैसे हासिल किया और किन तरह की चुनौतियों का सामना किया, चलिए जानते हैं।

अजीम प्रेमजी (Azim Premji) आज जिस बिजनेस एंपायर को सफलता की बुलंदियों तक ले गए हैं, उसकी शुरुआत उनके दादाजी ने की थी। सिर्फ 2 रूपए से उन्होंने अपने बिजनेस की शुरुआत की जो बाद में जाकर एक बड़ी राइस ट्रेडिंग कंपनी बनी। उनके बाद अज़ीम प्रेमजी के पिता मोहमद हाशिम प्रेमजी ने उस बिजनेस को आगे बढ़ाया। उन्हें उस समय “राइस किंग ऑफ बर्मा” कहा जाता था। बाद में भारत लौट आए और अपने राइस बिजनेस को यहां भी शुरू किया।

अंग्रेजों ने बंद करवाया चावल का व्यापार लेकिन नहीं मानी हार

भारत आने के बाद अंग्रेजों के कारण उनका राइस बिजनेस ज्यादा समय तक नहीं चल सका। इसीलिए 1945 में अपना राइस बिजनेस बंद करके उन्होंने वनस्पति घी बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने इसके लिए “वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड” नाम की कंपनी शुरू की जो घी बनाने के साथ साथ कपड़े धोने वाला साबुन भी बनाया करती थी। इसी साल 1945 में ही अज़ीम प्रेमजी का जन्म भी हुआ था।

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उन्हें भले ही ये बिजनेस विरासत में मिला था लेकिन उसे आगे बढ़ाने के लिए अज़ीम प्रेमजी ने भी बहुत सी चुनौतियों का सामना किया। मुंबई से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अमेरिका की “स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी” से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रैजुएशन किया। इसी दौरान उनके सामने अपने जीवन का एक सबसे कठिन समय आ गया। 1996 में जब वो स्टैनफोर्ड में अपनी पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें अपने पिता की मृत्यु की ख़बर मिली।

सिर्फ़ 21 साल की उम्र में संभाली कंपनी की कमान

उस समय उनकी उम्र केवल 21 साल थी, सबकुछ छोड़कर उन्हें भारत लौटना पड़ा जहां अब पिता के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही थी। बिजनेस के क्षेत्र में उनकी शुरुआत ही इस तरह की बड़ी चुनौती और दबाब के साथ हुई। कंपनी के कुछ शेयरहोल्डर्स ने उनका विरोध भी किया और कहा उनके पास कंपनी को संभालने का कोई अनुभव नहीं है। इस दबाव और विरोध के आगे अज़ीम प्रेमजी ने 21 साल की उम्र में भी हार नहीं मानी और कंपनी की बागडोर को संभाला।

उन्होंने जल्द ही अपने पिता की इस विरासत को सफलतापूर्वक संभाल लिया और उसे आगे भी बढ़ाने लगे। वनस्पति घी की बिजनेस से शुरू हुई प्रेमजी परिवार की ये कंपनी आज भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनीज में से एक है। अज़ीम प्रेमजी को आईटी कंपनीज का राजा माना जाता है। 1977 आते आते उनकी कंपनी का काफी विस्तार हो चुका था तब उन्होंने अपनी इस कंपनी का नाम बदलकर Wipro रखा। आईटी क्षेत्र में होने वाले विस्तार को उन्होंने बहुत पहले ही भांप लिया था जिसका नतीजा ये हुआ कि भारत के पास आज एक सफल आईटी कंपनी मौजूद है।

अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा हर महीने करते हैं दान

अज़ीम प्रेमजी ने अपने बिजनेस से जितना कमाया उतना ही समाज की भलाई पर खर्च भी किया। अपने हिस्से के 60% से ज्यादा शेयर्स वो उनके नाम से चल रहे फाउंडेशन के नाम कर चुके हैं। ये फाउंडेशन बच्चों की एजुकेशन के साथ-साथ हॉस्पिटल्स और कई तरह के सामाजिक कल्याण से जुड़े काम कर रहे हैं। अज़ीम प्रेमजी ने 2019-20 में परोपकार कार्यों के लिए हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 7,904 करोड़ रुपये का दान दिया। एडलगिव हुरुन इंडिया फिलैन्थ्रॉपी लिस्ट 2022 के मुताबिक अजीम प्रेमजी ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 484 करोड़ रुपये का दान दिया था।

अज़ीम प्रेमजी आज भारतीय व्यवसाय क्षेत्र के दिग्गज व्यक्ति तो हैं ही साथ ही उनकी दानवीरता ने समस्त विश्व को प्रेरित किया है।


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