मेहनत और लगन के साथ क्या हासिल नहीं किया जा सकता है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं झारखंड की ग्रामीण महिलाएं. इन महिलाओं ने स्वरोजगार से कामयाबी की जो सीढ़ी चढ़ी है वह हर किसी के लिए प्रेरणा है. आज के समय में भारत में बहुत से लोग अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, उन सभी लोगों को झारखंड की ग्रामीण महिलाओं की कामयाबी की कहानी से जरूर कुछ सीखना चाहिए. कई लोगों को आज भी भ्रम है कि बिजनेस में बहुत रिस्क होता है और ढेर सारे पैसे की जरूरत होती है. लेकिन ऐसा नहीं नहीं है, कम निवेश में भी बहुत कुछ बड़ा हासिल किया जा सकता है. स्वरोजगार न सिर्फ आपके लिए कमाई का जरिया होता है, बल्कि अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान करता है.
झारखंड की ग्रामीण महिलाएं अब वनोपजों से अपनी आर्थिक स्थिति में निरंतर सुधार कर रही हैं. महिलाएं राज्य के इमली के पेड़ों के जरिए अपने जीवन में मिठास घोल रही हैं. रांची से सटे खूंटी के शिलदा गांव की रहने वाली सुशीला मुंडा रौशनी इमली संग्रहण का कार्य कर खुशहाल है. पिछले वर्ष में एक टन इमली के संग्रहण से सुशीला को 40 हजार रुपये की आमदनी हुई
सुशीला कहती हैं, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि जंगलों में मुफ्त में उपलब्ध इमली से इतनी कमाई हो सकती है." सुशीला ही नहीं सिमडेगा के केसरा गांव की लोलेन समद इमली संग्रहण एवं प्रसंस्करण का काम कर रही हैं. लोलेन समद के पास इमली के सात पेड़ है, जिससे हर साल उन्हें लगभग तीन टन इमली की उपज प्राप्त होती है. लोलेन को इमली उत्पादन के जरिए साल भर में एक लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है, जिससे वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने में समर्थ हो पा रही हैं.
इससे पहले भी महिलाएं हाट-बाजार में जाकर इमली बेचती थी, लेकिन उन्हें सही कीमत नहीं मिलता थी. आज आधुनिक उपकरण से फसल की कटाई करते हैं और वजन मशीन का भी उपयोग आसानी से कर रही हैं. ये महिलाएं ग्रामीण सेवा केंद्र के माध्यम से इमली के बीज को निकालकर प्रसंस्करण कर इमली केक बना कर बेच रही है, जिसकी बाजार में काफी मांग है.