किसी ने सही ही कहा है ‘जहां चाह वहां राह’ यानि जहां कुछ काम करने की इच्छा होती है वहीं सफलता मिलती है। इस बात को सही साबित कर दिखाया है बिहार के कमल किशोर मंडल ने। जिन्होंने 20 साल तक तिलकामांझी यूनिवर्सिटी में चपरासी के पद पर काम किया और अब अपनी मेहनत के दम पर वो आज उसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हुए हैं। एक ओर जहां लोग अपनी उम्मीदों को खो देते हैं, अपने सपनों को भूल जाते हैं वहीं कमल किशोर ने इस बात के विपरीत खुद की पहचान बनाई। उन्होंने कुछ कर दिखाने की उम्मीद नहीं छोड़ी और असिस्टेंट प्रोफेसर बनकर अपनी सफलता की नई कहानी लिख दी। इसी के कारण आज हर ओर उनके इस काम के चर्चे हो रहे हैं। घर की विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई कर के सहायक प्रोफेसर बनने का सफर आसान नहीं था। तो आइए जानते हैं कमल किशोर के जीवन की प्रेरक कहानी।

नाइड गार्ड के रूप में किया काम

बिहार के एक सामान्य परिवार में जन्में कमल किशोर का जीवन कठिनाइयों से भरा था। उनके पिता गोपाल मंडल सड़क किनारे चाय की दुकान से जैसे-तैसे परिवार का पालन पोषण करते थे। आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण उन्हें घर चलाने के लिए गार्ड की नौकरी करनी पड़ी। गार्ड की नौकरी ज्वाइन करने के कुछ ही महीने बाद उनका ट्रांसफर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में हो गया। इसके कुछ साल बाद उनका पद बदलकर चपरासी कर दिया गया। अब वो गार्ड की जगह बतौर चपरासी काम करने लगे।

छात्र-छात्राओं को देख जगी पढ़ने की इच्छा

किशोर मंडल ने 23 साल की उम्र में 2003 में मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज में नाइट गार्ड के रूप में नौकरी शुरू की थी। उस समय कमल किशोर ने पॉलिटिकल साइंस से बीए किया था। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति और पैसों की ज़रूरत के चलते कमल किशोर ने नाइड गार्ड की नौकरी कर ली। लेकिन इससे कमल की पढ़ने में रुचि कम नहीं हुई। विश्वविद्यालय में चपरासी की नौकरी करते हुए कमल किशोर के मन में पढ़ाई करने की इच्छा जगी। उन्होंने छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करते हुए देखा और सोचा कि वो ऐसा क्यों नहीं कर सकते। उन्होंने अपनी पढ़ाई आगे शुरू करने के लिए विभाग से अनुमति देने का अनुरोध किया तो विभाग ने पढ़ाई की इजाज़त दे दी। जल्द ही, उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की और साल 2009 में अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य में मास्टर्स की डिग्री पूरी की। कमल किशोर ने 2009 में पीएचडी करने की अनुमति मांगी लेकिन विभाग ने तीन साल बाद 2012 में कमल को पीएचडी करने की सहमति दी।

2019 में पीएचडी की पढ़ाई की पूरी

नौकरी करते हुए ही कमल किशोर ने 2013 में पीएचडी शुरू की और 2017 में कॉलेज में थीसिस जमा कर दी। साल 2019 में उन्हें पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इस डिग्री को हासिल करने के लिए वो सुबह क्लास अटेंड करते थे, दोपहर में ड्यूटी करते थे और रात में कई घंटे पढ़ाई किया करते थे। इस बीच, उन्होंने प्रोफेसर के लिए होने वाले एग्जाम नेट की परिक्षा भी पास की और नौकरियों की तलाश जारी रखी। आखिर में साल 2020 में किशोर मंडल का इंतजार खत्म हुआ।

ऐसे बनें असिस्टेंट प्रोफेसर

पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने नौकरी के लिए अप्लाई किया। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने टीएमबीयू के संबंधित विभाग में सहायक प्रोफेसर के चार पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन किया। जिसके लिए 12 उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। कमल किशोर की मेहनत और उनके हुनर को देखते हुए टीएमबीयू के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में कमल किशोर को असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया। यह वही कॉलेज था, जहां उन्होंने एक चपरासी के रूप में कार्य किया।

कमल किशोर सभी युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरे हैं। जो अपनी गरीबी और पिछड़ेपन का रोना रोते हैं उनके लिए कमल किशोर एक मिसाल बनकर सामने आये हैं। उन्होंने समाज को दिखाया कि विपरीत परिस्थितियों में कैसे सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की नई कहानी लिखी है।

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