पवनपुत्र हनुमान भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे. उनके दिल में हर पल श्रीराम-सीता का वास रहता था. इसीलिए हनुमान जी के लिए भगवान राम द्वारा दिए निर्देशों को समाहित करना और उस पर अमल करना मुश्किल नहीं था. ध्यान रखिये विचारक हर कोई हो सकता है, लेकिन उन विचारों के निष्पादन की कला सभी को नहीं आती, और निष्पादन के बिना आपके विचार दिशाहीन हो जाते हैं. हनुमान जी के जीवन से हम एक ठोस और दिशापरक निष्पादन के हर पहलुओं को सीख सकते हैं. कैसे आइए, देखते हैं....

रामायण के श्रीराम कथा को पढ़ते समय आपने भी ध्यान दिया होगा कि एक बार लंका में मेघनाद के साथ युद्ध करते हुए श्रीराम के भाई लक्ष्मण मुर्छित हो गये थे. तब सुशैन वैद्य का कहना था कि सूर्योदय के पूर्व अगर कोई संजीवनी बूटी लाकर दे दे, तभी लक्ष्मण जी को बचाया जा सकेगा. श्रीराम ने हनुमान जी की ओर देखते हुए कहा- हे हनुमान क्या आप लक्ष्मण की जान बचाने वाली संजीवनी बूटी ला सकते हैं? हनुमान जी चाहते तो कह सकते थे, नहीं प्रभु मेरे लिए यह दु्ष्कर कार्य है, आप मुझे कोई और कार्य दे सकते हैं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा. दरअसल यहां दो बातें अहम हैं प्रथम 'पहल' और दूसरी 'जिम्मेदारी'.  पहल कई लोग कर सकते हैं, लेकिन पहल उन्हें ही करना चाहिए जो जिम्मेदारी पूर्वक उस कार्य को समय से अंजाम दे सकें.  जिम्मेदारी वह चीज है जिसे दिया नहीं लिया जाता है. विषम परिस्थितियों में आपका बॉस ऐसे ही कर्मचारी को चुनेगा, जो अधिक जिम्मेदार और विश्वसनीय होगा, जो अमुक कार्य को सफलता के साथ निष्पादन कर सकता है.

श्रीराम की सेना में भक्त हनुमान जी जवाबदेही, स्वामित्व, पहल और जिम्मेदारी का जीता जागता उदाहरण हैं. वह श्रीराम के आदेश का पालन करने हेतु तीव्र गति से हिमालय पहुंच गये. हिमालय पहुंचने के बाद वे संजीवनी बूटी पहचान पाने में असमर्थ रहे. कोई और होता तो वापस आकर कहता कि हे राम, आपने मुझे संजीवनी बूटी का नमूना नहीं दिखाया, अगर आप नमूना दिखा सकें, तभी मैं संजीवनी बूटी ला सकूंगा. चूंकि श्रीराम के पास संजीवनी बूटी का नमूना नहीं था, इसलिए उनके सामने तर्क मानने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था. लेकिन हनुमान जी ने बिना समय गंवाए पूरा पर्वत उठाकर ले आये और श्रीराम से बोले, हे प्रभु मैं संजीवनी बूटी पहचान नहीं पा रहा था, इसलिए पूरा पहाड़ उठा लाया, और इस तरह से लक्ष्मण जी की जान समय रहते बचायी जा सकी. एक असंभव और से दुष्कर से कार्य में सफलता हासिल करने के पीछे हनुमान जी के प्रबंधन की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता.

सीखें भगवान हनुमान से प्रबंधन और जीवन का पाठ-

निम्न बातों को पढ़िये और बताइये आप किन तर्कों पर खरा उतरते हैं

* कुछ लोग किसी भी हालात में कार्य को अंजाम देते हैं.

* कुछ लोग देखते हैं कि काम कैसे पूरा हो सकता है.

* कुछ लोग यह देखकर खुश होते हैं कि क्या हो रहा है.

वहीं, कुछ लोग ऐसे होते हैं, कि जब वे किसी संगठन से जुड़ते हैं, वे यह नहीं देखते कि उन्हें करना क्या है. पहले वह ये देखते हैं कि संगठन में सर्वोच्च अधिकार किसे प्राप्त है. ऐसे लोग उसके संपर्क में रहने की कोशिश करते हैं. ये वास्तव में परजीवी होते हैं.