भारत की इस धरती पर कई ऐसे महान गुरूओं ने जन्म लिया है जिनका योगदान कभी भी भूलाया नहीं जा सकता। इस महान गुरूओं ने केवल धर्म के प्रति लोगों की सोच बदली है बल्कि समाज को जाति-पांति, अमीर-गरीब के दर्जे से ऊपर उठकर सोचने का एक नया दृष्टिकोण दिया है। भक्तिकालिन एक ऐसे ही गुरू रविदास जी ने समाज पर अपने विचारों की गहरी छाप छोड़ी है। भक्ति आदोंलन के भागीदारों में से एक गुरू रविदास के पास दूर-दूर से लोग उनके गानों और दोहों को सुनने आते थे। गुरू रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को गुरू रविदास जयंती के रुप में भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं गुरू रविदास जी के जीवन से जुड़ी कुछ अनमोल बातें।

इतिहासकारों के अनुसार संत गुरु रविदास का जन्म 1377 सी.ई. में वाराणसी के मंडुआडीह में हुआ था। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार उनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इसीलिए माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास का जन्मदिन आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त पवित्र नदी में स्नान आदि करते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। इस दिन गुरु रविदास के दोहे भी पढ़े जाते हैं। भक्तों के लिए यह दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता है।

गुरू रविदास जी की माता का नाम कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास जी था। जूते बनाने का काम करना उनका पारिवारिक व्यवसाय था। संत रविदास ने सभी को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने की सीख दी है। रविदास भगवान कृष्ण की परमभक्त मीराबाई के भी गुरु थे। मीराबाई उनकी भक्ति भावना से प्रभावित होकर उनकी शिष्या बन गई थी। संत रविदास के 40 सबद गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। उनकी एक कहावत ‘जो मन चंगा तो कठौती में गंगा' काफी प्रचलित है। इस कहावत को जोड़कर एक कथा भी है। कहते हैं कि एक बार एक महिला संत रविदास के पास से गुजर रही थी। संत रविदास लोगों के जूते सिलते हुए भगवान का भजन करने में मस्त थे। तभी वह महिला उनके पास पहुंची और उन्हें गंगा नहाने की सलाह दी। फिर क्या संत रविदास ने कहा कि जब मन चंगा तो कठौती में गंगा। यानी यदि आपका मन पवित्र है तो आप जहां हैं वहीं गंगा है।

संत रविदास के जीवन के कई ऐसे प्रेरक प्रसंग हैं जिनमें जीवन का ज्ञान छिपा है। एक कथा के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है उनका साथी नहीं आया तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले गए। तभी उन्हें पता चला कि उसकी मृत्यु हो गई है। ये देखकर रविदास जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपने मित्र को बोला कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो गया और उनके साथ खेलने लगा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो रविदास से संत गुरू रविदास बन गए।

 

संत रविदास जी के प्रमुख दोहे

  • जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

    मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊ सहज सरूप

  • करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की न तज्जियो आस, कर्म मानुष का धर्म है सत् भाखै संत
  • ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
  • कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै, तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
  • करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस,कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
  • रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच, नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

 

गुरु रविदास जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त

गुरु रविदास जयंती तिथि: 27 फरवरी 2021, शनिवार

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 26 फरवरी 2021 (दोपहर 03:49 से लेकर)

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 27 फरवरी 2021 (दोपहर 01: 46 तक)