भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में जीतना योगदान भारत के वीर सपूतों का है उतना ही योगदान यहां की वीरांगनाओं का भी है। देश की आजादी में इनके योगदान को कभी भी कम अंका नहीं जा सकता। भारत की स्वतंत्रता में योगदान देने वाली एक ऐसी ही स्वतंत्रता सेनानी है सरोजिनी नायडू। सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री और देश की पहली महिला गवर्नर थीं। सरोजिनी नायडू को ''द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया'' के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 12 साल की उम्र में ही बड़े अखबारों में आर्टिकल और कविताएं लिखना शुरू कर दिया था।
सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu Birthday) का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। सरोजिनी नायडू बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी थी। उन्होंने 12साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा में टॉप किया था। मात्र 16 साल की उम्र में उच्च शिक्षा के लिए वह लंदन चली गई थी। उन्हें पहले लंदन के किंग्स कॉलेज और बाद में कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन करने का मौका मिला। सरोजिनी नायडू एक कवियत्रि भी थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ कविताएं भी लिखती थी। 1914 में इंग्लैंड में वह पहली बार गांधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया।
गांधीजी ने सरोजिनी नायडू के भाषणों से प्रभावित होकर उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। लेकिन वो अपने पत्रों में उन्हें कभी-कभी ‘डियर बुलबुल’,’डियर मीराबाई’ तो यहां तक कि कभी मजाक में ‘अम्माजान’ और ‘मदर’ भी लिखते थे। मजाक के इसी अंदाज में सरोजिनी भी उन्हें कभी ‘जुलाहा’, ‘लिटिल मैन’ तो कभी ‘मिकी माउस’ संबोधित करती थीं। नायडू ने गांधी जी के अनेक सत्याग्रह आदोंलनों में भाग लिया था। वह 'भारत छोड़ो' आंदोलन के तहत जेल भी गईं थी। भारत की आजादी के बाद वह पहली महिला गवर्नर थीं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के गवर्नर का पद भार संभाला था। आज सरोजिनी नायडू जयंती के मौके पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं।
आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें और विचार।
- सरोजिनी नायडू कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष थी। इतना ही वह किसी राज्य की पहली गवर्नर भी थी। सरोजिनी नायडू की शादी 19 साल की उम्र में गोविंदाराजुलु नायडू से हुई थी।
- सरोजिनी नायडू के पिता अघोरनाथ चट्टोपध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। उनकी माता वरदा सुंदरी कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थीं।
- सरोजिनी नायडू ने साहित्य के क्षेत्र में खास योगदान दिया। बचपन से ही वह कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं का पहला संग्रह ”द गोल्डन थ्रेसहोल्ड” 1905 में प्रकाशित हुआ था।
- सरोजिनी नायडू बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहां उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।
- 1914 में इंग्लैंड में नायडू पहली बार गांधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं।
- 1925 में कानपूर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और 1932 में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं।
- सरोजिनी नायडू ने गांधी जी के अनेक सत्याग्रहों में भाग लिया और 1942 में 'भारत छोड़ो' आंदोलन में जेल भी गईं।
- सरोजिनी नायडू संकटों से न घबराते हुए एक वीरांगना की तरह गांव-गांव घूमकर देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं।
- सरोजिनी नायडू को ''द नाइटिंगेल ऑफ इंडिया'' के नाम से जाना जाता है।
- सरोजिनी नायडू का निधन 2 मार्च 1949 में हुआ था। 13 फरवरी 1964, को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में 15 नए पैसे का एक "डाकटिकेट" भी जारी किया।
जब उत्पीड़न होता है, तो केवल आत्म-सम्मान की बात उठती है और कहते हैं कि यह आज खत्म हो जाएगा, क्योंकि मेरा अधिकार न्याय है।