कहते हैं कि इंसान की किस्मत भगवान लिखते हैं, वो पहले से ही तय होती है। लेकिन इस दुनिया में कुछ इस तरह के लोग भी है जो अपनी किस्मत खुद लिखते हैं। कुछ ऐसा ही किया है आशुतोष ने। जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम अपनी तकदीर को बदल कर रख दिया है।

आशुतोष ने बूंद-बूंद टपकते पानी से अपने जीवन की कहानी को बदल दिया है। आशुतोष झारखंड के लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के मसमानो में रहते हैं। वो मुख्य रुप से कृषि का कार्य करते हैं। आशुतोष ने बूंद-बूंद पानी जमा करके, पानी की बचत की है। जिसके प्रयोग से उन्होंने बंजर जमीन में हरियाली बिखरे दी। कई बार पानी की कमी और जमीन के उबड़-खाबड़ होने के कारण किसानों की खेती प्रभावित होती है। आशुतोष कहते हैं कि वो जिस क्षेत्र में रहते हैं वहां पर खेती तो होती हैं, लेकिन खेती से मुनाफा नहीं कर पाते। किसान साल दर साल नुकसान झेलते रहते है और अंत में वे आर्थिक तंगी से जूझने लगते हैं। ऐसे किसानों की दशा और खेती की दिशा बदलने के लिए आशुतोष कुमार आगे आए हैं।

आशुतोष ने 3 एकड़ में तरबूज व 2 एकड़ में मिर्च की खेती की। उन्होंने अपने खेत की सिंचाई करने के लिए टपक सिंचाई विधि का प्रयोग किया है। आशुतोष पिछले पांच सालो से टपक विधि से खेती कर जल बचाने का काम कर रहे है। आशुतोष कुमार ने बूंद-बूंद पानी को बचाकर उसका प्रयोग सिंचाई में करते हैं। गांव में आशुतोष के इस काम को देखकर कई लोग टपक सिंचाई विधि से खेती कर पानी बचाने में जुट गए हैं।

आशुतोष के लिए ऐसा करना आसान नहीं था। आशुतोष कुमार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। लेकिन जब से उन्होंने टपक सिंचाई पद्धति का प्रयोग करना शुरु किया, तभी से ही उनकी स्थिति में काफी बदलाव आया है। वो कहते हैं कि वर्षभर का खर्च इसी खेती से निकलता है। टपक सिंचाई की खासियत यही है कि इससे खरपतवार कम होता है और साथ ही आप कहीं भी पौधा लगा सकते हैं उससे उसे पानी मिल जाता है।

टपक सिंचाई एक विशेष विधि है। इसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नालियों का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इस विधि से सिंचाई में कम अंतराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है।

इसे बूंद-बूंद सिंचाई भी कहते हैं।

टपक सिंचाई विधि परंपरागत विधि से अलग है। परंपरागत विधि में जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी जो पौधों को मिलना चाहिए। वह जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण के कारण बेकार हो जाता है। इस विधि के जरिए जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधों को उपलब्ध हो पाए। इससे पानी की बचत होती है।

आशुतोष कुमार की नई सोच और मेहनत ने उन्हें आज सबके लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बना दिया है। आशुतोष की सफलता की कहानी (Success Story) सभी के लिए एक मोटिवेशन है। यदि आप अपने करियर में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, एवं अपना बिज़नेस शुरु करना चाहते हैं तो आप हमारे Problem Solving Couse को ज्वॉइन कर सकते हैं। यहां आपको बिज़नेस से जुड़ी हर जानकारी दी जाएगी। हमारे Problem Solving Course को ज्वाइन करने के लिए इस लिंक https://www.badabusiness.com/psc?ref_code=ArticlesLeads पर क्लिक करें और अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट https://www.badabusiness.com/?ref_code=ArticlesLeads  पर Visit  करें।