कहते हैं “पुरुष बली नहि होत है समय होत बलवान, भीलन लूटी गोपियाँ वहि अर्जुन वहि बान.” वक़्त-वक़्त की बात है। वक्त से बड़ा बलवान कोई नहीं होता है, वो चाहे हो राजा, या रंक, क्योंकि समय ही राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है। 

आज हम आपको जिस इंसान की कहानी बताने जा रहे हैं, वह भी पहले राजा से रंक बना और फिर अपनी कड़ी मेहनत के दम पर रंक से राजा भी बना। हम बात कर रहे हैं MRF के संस्थापक के एम मम्मेन मप्पिलाई (K. M. Mammen Mappillai) की। 

आज वाहनों में टायर लगवाने में MRF लोगों की पहली पसंद होती है। MRF टायर की स्थापना करने वाले के एम मम्मेन मप्पिलाई एक अमीर परिवार में जन्मे थे, लेकिन समय ने ऐसी करवट बदली कि उन्हें अपने कॉलेज के दिनों में कॉलेज के फर्श तक पर सोना पड़ा। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भी मैममेन ने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत कर 45,466 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी।

आइये आज जानते हैं के एम मम्मेन मप्पिलाई की संघर्ष से सफलता की कहानी –

नाम: के. एम. मम्मेन मप्पिलाई
जन्म: 28 नवंबर 1922, केरल
मृत्यु: 3 मार्च 2003
पिता: केसी मम्मेन मप्पिलाई , अखबार व बैंक मालिक
कंपनी: MRF के संस्थापक
वर्तमान स्थिति: 45,466 करोड़ की कंपनी

कौन है के.एम. मम्मेन मप्पिलाई 

के.एम. मम्मेन मप्पिलाई का जन्म 28 नवंबर 1922 को केरल में हुआ था। उनके पिता केसी मम्मेन मप्पिलाई एक मलयाली अखबार और बैंक के मालिक थे। बचपन में मम्मेन के पास ऐशोआराम की कोई कमी नहीं थी, ऐसे बच्चों के लिए अंग्रेजी में एक कहावत है "Born with a Silver Spoon"।

जब राजा से बन गए थे रंक

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मम्मेन ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। जब वे अपना ग्रेजुएशन कर रहे थे, तभी उनके परिवार में एक घटना घटी।

दरअसल उस समय तत्कालीन त्रावणकोर रियासत ने मम्मेन के पिता की सारी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें 2 साल के लिए गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से मम्मेन का परिवार एक झटके में राजा से रंक बन गया, यहाँ तक की मैममेन को अपने ग्रेजुएशन के दौरान कॉलेज के फर्श पर भी सोना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मेहनत करते रहे।

 गुब्बारे बनाने के लिए शुरू हुई थी MRF

अपना ग्रेजुएशन करने के बाद 1946 में मम्मेन ने गुब्बारे बनाने के लिए एक छोटी सी फैक्ट्री शुरू की और इस फैक्ट्री को नाम दिया मद्रास रबर फैक्ट्री, यही फैक्ट्री आगे चलकर MRF के नाम से मशहूर हुई। 

इस फैक्ट्री में वे गुब्बारे बनाते थे और फिर वे खुद गुब्बारे सड़क पर बेचते भी थे। अपने इसी काम को आगे बढ़ा ही रहे थे कि साल 1952 में उन्हें पता चला कि कुछ विदेशी कम्पनियां रीट्रेडिंग टायर प्लांट्स को रबर सप्लाई कर रही हैं, उन्होंने सोचा कि ये काम तो वो भी कर सकते हैं। तब 1952 में वे ट्रेड रबर का निर्माण करने लगे।

पंडित नेहरू ने किया था टायर फैक्ट्री का उद्घाटन

1956 तक भारत के ट्रेड रबर के व्यापार का 50% अकेले MRF करता था। जल्द ही MRF ट्रेड रबर का निर्माण करने वाली अकेली भारतीय कंपनी बन गयी। अब मम्मेन ने अपना रुख टायर निर्माण की और किया, 1961 में MRF की पहली टायर फैक्ट्री का उद्घाटन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। उसी साल 1 अप्रैल को कंपनी ने अपना IPO भी लॉन्च कर दिया। देखते ही देखते MRF टायर कंपनी के रूप में सबसे प्रसिद्ध हो गयी।

मम्मेन को बिजनेस के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए 1992 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 मार्च 2003 में केएम मैममेन मप्पिलाई का निधन हो गया, लेकिन जो कंपनी उन्होंने शुरू की थी, वो आज भी अपने झंडे गाड़ रही है। आज के समय में MRF के एक स्टॉक की कीमत 1 लाख 19 हजार रुपये के लगभग है, वहीं 2023 में कंपनी का टर्नओवर 45 हजार 466 करोड़ रुपये हो गया है।


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