कहते हैं, ‘मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता है साहब, हौसलों में उड़ान होती है’। कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले हैं 6 जून, साल 2014 को अकेले कंपनी शुरू करने वाले सुमित गुप्ता के। उन्होंने अपनी कंपनी की शुरुआत गाज़ियाबाद शहर में स्थित अपने फ़्लैट के एक कमरे से की थी।

उन दिनों उनकी कंपनी को कोई भी ज़्वॉइन करने के लिए तैयार नहीं होता था, क्योंकि कंपनी के पास कोई कर्मचारी नहीं था। लेकिन आज उनकी कंपनी में स्थायी और अस्थायी रूप से मिलाकर तकरीबन 50 से अधिक लोग कार्यरत हैं।

जब नुकसान हुआ, तो पत्नी को उठाना पड़ा घर और कंपनी का खर्चा.

कंपनी के मालिक अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि साल 2015 में एक इंटरनेशनल क्लाइंट ने हमें बहुत काम दिया था, लेकिन उसने हमारा लगभग 15 लाख रुपयों का पेमेंट नहीं किया। इसके लिए हमने जिस वेंडर से काम कराया था उसको भी 7 लाख रुपये देने पड़े।

इस नुकसान के बाद कंपनी के पास आर्थिक तंगी आ गई। मुझे याद है कि उन दिनों करीब 6 से 7 महीनों तक मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी, तब मेरी पत्नी ने अपनी सैलरी से घर और कंपनी चलाने में मदद की। हम फ़िर से उठे, चले और अब धीरे-धीरे दौड़ने की कोशिश कर रहे हैं। आज हमारी कंपनी की वैल्यूएशन 20 करोड़ है।”

865 रुपए थी पहली कमाई थी.

आपको बता दें कि नोएडा स्थित यह कंपनी मुख्यत: ट्रांसलेशन और लोकलाइजे़शन इंडस्ट्री के अंतर्गत आने वाले कामों को करती है। इसके अंतर्गत एक भाषा का दूसरी भाषा में ट्रांसलेशन, फ़िल्मों की सब-टाइटलिंग, गेमिंग लैग्वेंज़, सॉफ्टवेयर और ऐप की भाषाओं जैसी कई विधाओं पर काम होता है।

साक्षात्कार के दौरान बात करते हुए ऑडियो ब्रिज़ के को-फ़ॉउंडर अतुल और सीईओ मयंक दास बताते हैं, “जब हमने काम की शुरुआत की थी, उन दिनों इस क्षेत्र में काफ़ी कम लोग काम करते थे, जिसकी एक बड़ी वजह यह भी थी, इन दिनों इस सेक्टर में काम की कमी भी थी और हम नए भी थे। शायद इसी कारण शुरू-शुरू में हमें क्लाइंट नहीं मिल पा रहे थे।

हमें याद है कि हमने पहले क्लाइंट का काम पूरा किया था, जिसके लिए हमें क्लाइंट की ओर से 865 रुपए का भुगतान/पेमेंट मिला था।

कंपनी Google, Amazon जैसी कई मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ मिलकर कई भाषाओं में काम कर रही है।

कर्मचारियों को मिलता है विदेशी कंपनियों वाला माहौल.

ऑडियो ब्रिज़ कंपनी के को-फॉउंडर राजू गुप्ता कहते हैं, “हम नोएडा सेक्टर 62 स्थित अपनी कंपनी में कर्मचारियों को विदेशी कंपनियों जैसा ट्रीटमेंट देने का पूरा प्रयास करते हैं। कंपनी कर्मचारियों के आराम और सुविधा का पूरा ध्यान रखती है।

कंपनी समय-समय पर फ़्लेक्सिबल वर्क-ऑवर, वर्क फ्रॉम होम, वीकेंड पार्टी जैसी कई गतिविधियों का आयोजन करती है। इसके अलावा कर्मचारी को मेडिकल सुविधा, मैटरनिटी लीव (6 महीने), पैटरनिटी लीव (15 दिन), फ़ैमिली मेडिक्लेम की सुविधा भी दी जाती है। अब हम अलग-अलग देशों में अपने ऑफ़िस खोलने की कोशिश कर रहे हैं।”

महिला कर्मचारियों को मिलती है पीरियड लीव.

राजू गुप्ता आगे कहते हैं, आपने देखा होगा कि हाल ही में 24 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड लीव की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह कहते हुए मना किया था कि इस मुद्दे के अलग आयाम हैं और याचिकाकर्ता को इस विषय से जुड़ी पॉलिसी तैयार करने के लिए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करना चाहिए।

हालांकि, वह कोर्ट का अपना तर्क या विचार है, जिसमें महिलाओं की इस समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सुनवाई करने से मना कर दिया हो, लेकिन नोएडा स्थित ‘ऑडियो ब्रिज़’ नाम की कंपनी के मैनेज़मेंट ने अपने यहां पर काम कर रही महिलाओं की मासिक समस्या को समझते हुए कंपनी स्तर पर, महिलाओं के प्रति सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी मानते हुए, प्रतिमाह महिला कर्मचारियों को एक पीरियड लीव देने की पॉलिसी लागू कर रखी है।

हिंदी भाषी लोगों के लिए करियर बनाने के शानदार अवसर भी खुल रहे हैं.

वैसे ऑडियो ब्रिज़, ईस्ट अफ़्रीकन देशों में बोली जाने वाली भाषाएं अम्हारिक (इथीयोपिया), ओरोमो (केन्या), इसके अलावा जापानी, कोंकणी, कन्नड, गुजराती, मराठी, उर्दू, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, जैसी भिन्न-भिन्न भाषाओं में काम करती है। लेकिन, बड़ी बात यह है कि देशी और विदेशी लैंग्वेज़ के अलावा हिंदी भाषा में भी बड़े स्तर पर काम किया जाता है, जिससे हिंदी भाषी लोगों के लिए काम के नए आयाम खुल रहे हैं।


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