अगर आप सच्चे दिल से किसी की मदद करना चाहते हैं, तो भगवान भी आपकी मदद जरूर करता है। आज इस दुनिया में बहुत कम लोग ही आपको मिलते हैं जो अपनी जान से पहले दूसरों की जान की परवाह करते हैं। लेकिन हमारे देश में आज भी ऐसे कई लोग हैं जो हंसते-हंसते अपनी जान की कुर्बानी दे देते हैं। जो हमारी सुरक्षा की खातिर दिन-रात एक करते हैं। ऐसी ही एक महान शख्स थे शहीद नरेंद्र सिंह चौधरी (Narendra Singh Chaudhary)। जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर 256 से अधिक बमों को डिफ्यूज्ड किया था और हजारों लोगों की जान बचा खुद शहीद हो गए। आइए जानते हैं भारत मां के सुपुत्र नरेंद्र सिंह चौधरी के जीवन से जुड़े कुछ पहलू।

इस देश में भारतीय सैनिकों के कारनामों ने यह सिद्ध किया है कि देशभक्ति के मामले में भारतीय सैनिकों का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने अपने जज़्बे और हौसलों से दुश्मनों को चारों खाने चित्त किया है। नरेंद्र सिंह चौधरी भी उन्हीं जाबांजो में से एक हैं। नरेन्द्र चौधरी का जन्म राजस्थान के रायपुर में हुआ था। नरेन्द्र चौधरी भारतीय सेना के बम निरोधक दस्ते में शामिल थे। वो छत्तीसगढ़ व अन्य नक्सल-प्रभावित इलाकों में कार्यरत रहे थे। नरेंद्र सिंह चौधरी हमेशा से एक बहादूर सैनिक थे। उन्होंने कभी भी अपनी जान की परवाह नहीं की।

नरेंद्र सिंह चौधरी की तैनाती छत्तीसगढ़ के कांकेर में जंगल वारफेयर कॉलेज में हुई थी। 48 साल की उम्र में भी वो इतने एक्टिव थे कि बिना खाए पिए 50 किलोमीटर की दूरी आराम से तय कर लेते थे। उनकी खासियत ये थी कि वह जल्दी बीमार नहीं होते थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में कुल 256 बम डिफ्यूज़ किए और हजारों लोगों की जान बचाई है। नरेंद्र सिंह चौधरी की तैनाती जाट रेजिमेंट के बाद 2005 में जंगलवार कॉलेज, कांकेर में हुई थी। बाद में उनका प्रमोशन हो गया और वह प्लाटून कमांडर बन गए। लेकिन एक ग्रेनेड की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई थी।

नरेंद्र सिंह चौधरी बम डिफ्यूज करने की वजह से अक्सर नक्सलियों के निशाने पर रहते थे क्योंकि उनकी वजह से नक्सली विस्फोट नहीं कर पाते थे। 2008 में नरेंद्र के नाम कोंडे के पास नक्सलियों ने पर्चे भी फेंके थे। वर्ष 2005 से नरेन्द्र चौधरी छत्तीसगढ़ के एक सेना प्रशिक्षण कॉलेज में ट्रेनर के रूप में कार्यरत थे। नरेन्द्र चौधरी को उनके सहकर्मी व दोस्त उन्हें ‘स्टील मैन’(Steel Man) के नाम से बुलाते थे। नरेंद्र सिंह इतने निडर थे कि पूरी टीम को बम से दूर रखते और खुद पास जाकर डिफ्यूज करते। रिस्क लेने में उनका कोई मुकाबला नहीं था। चौधरी को बम निकालने में ऐसी महारत थी कि बम देखते ही वह बता देते कि बम जमीन से बाहर आएगा या फिर उसे वहीं डिफ्यूज किया जाएगा। नरेंद्र सिंह चौधरी हमेशा यही कहते थे कि अगर उनकी मौत हुई भी तो बम फटने से ही होगी और छत्तीसगढ़ में ही होगी और आखिर में हुआ भी यही था।

इसी कड़ी नें एक बार ऐसा हुआ कि नरेंद्र सिंह, कांकेर के जंगल वारफेयर कॉलेज में बम डिफ्यूज करने की ट्रेनिंग दे रहे थे। इस दौरान नरेंद्र ने ट्रेनिंग देते हुए एक ग्रेनेड फेंका। सात सेकेंड बाद भी जब वो ग्रेनेड नहीं फटा तो वो उसे देखने धीरे-धीरे आगे बढ़े। जब वो ग्रेनेड से करीब 30 मीटर दूरी पर ही थे, तभी अचानक धमाका हुआ और बम का एक टुकड़ा सीधा नरेंद्र की दाहिनी आंख से होते हुए अंदर जा धंसा। जिसकी वजह से 11 मई 2016 को भारत मां का यह लाल शहीद हो गया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी जांबाज़ नरेंद्र सिंह चौधरी की शहादत पर उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की थी।

सिपाही नरेंद्र सिंह चौधरी भले ही  अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन आज भी लोगों की जुंबान पर उनकी बहादुरी के किस्से मौजूद है। हर कोई उनके इस दिल्लेरी की तारीफ करते नहीं थकता देश उन्हें ‘स्टील मैन’ के नाम से याद करता है, वह इसी नाम से जाने जाते थे। नरेंद्र सिंह चौधरी ने बहादूरी और देश सेवा की भावना से अपने जीवन में ऐसी सफलती की कहानी (Success Story) लिखी जिसे दुनिया हमेशा याद रखेगी। नरेंद्र सिंह चौधरी  आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspirational) है। उनका पूरा जीवन लोगों को प्रेरित (Motivate) करने वाला है। भारत मां के इस सुपुत्र को शत शत नमन।

 

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