उस देश की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस देश की सरहद की निगहबान हैं आँखें। यह लाइनें बिल्कुल सच कहती है। जिस देश का सरहद पर मर मिटने वाले जवान खड़े हों उस देश की सरहद को भला कौन छू सकता है। हमारा देश कई वीर सपूतों की गाथाओं से भरा हुआ है। यहां देश के लिए मर मिटने वाले वीरों की कमी नहीं है। इन्हीं वीरों में से एक वीर थे मेजर मोहित शर्मा। मेजर मोहित शर्मा की जब आप कहानी पढ़ेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएगें। मेजर मोहित शर्मा ने न सिर्फ अपनी ड्यूटी को निभाया बल्कि आखिरी दम तक अपनी रेजीमेंट का गौरव बनाए रखा। अब मेजर मोहित की बहादुरी को पर्दे पर भी उतारा जा रहा है। मेजर मोहित की कहानी पर फिल्‍म ‘इफ्तिखार’  बन रही है। मेजर मोहित शर्मा वो बहादूर सैनिक थे जो अकेले ही 25 आंतकवादियों से भिड़ गए थे। आइए जानते हैं उनकी बहादूरी और बुलंद हौसलों की यह कहानी।

मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक जिले में हुआ था। मेजर मोहित शर्मा 21 मार्च 2009 को नॉर्थ कश्‍मीर के कुपवाड़ा में शहीद हो गए थे। मेजर मोहित ब्रावो असॉल्‍ट टीम को लीड कर रहे थे और वह 1 पैरा स्‍पेशल फोर्स के कमांडो थे। नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) से मेजर मोहित शर्मा ने परीक्षा पास की थी। 11 दिसंबर 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से उन्होंने परीक्षा पास की। उन्हें पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्‍हें कश्‍मीर में 38 राष्‍ट्रीय राइफल्‍स के साथ तैनात किया गया।

मेजर मोहित शर्मा ने साल 2001 में आतंकियों से दोस्ती कर ली थी। मेजर मोहित ने आतंकियों को बताया था कि साल 2001 में उनके भाई को भारतीय सुरक्षाबलों ने मार दिया था और अब उन्‍हें अपने भाई की मौत का बदला लेना है। ऐसा कहकर मेजर मोहित शर्म ने उनका विश्वास जीत लिया। आंतकियों से जानकारी एकत्र करने के बाद मेजर मोहित शर्मा ने पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों को ढेर कर दिया था।

मेजर मोहित ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। कुपवाड़ा के घने हफरुदा के जंगलों में मुठभेड़ हुई और मेजर मोहित ने बहादुरी से मोर्चा संभाला। मेजर मोहित जिस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे उसे ऑपरेशन रक्षक नाम दिया गया था।

मार्च 2009 को मेजर मोहित शर्मा को कुपवाड़ा के जंगलों में कुछ आतंकियों के छिपे होने की इंटेलीजेंस मिली थी जो घुसपैठ की कोशिशें कर रहे थे। मेजर मोहित ने पूरे ऑपरेशन की प्‍लानिंग की और अपनी कमांडो टीम को लीड किया। मेजर मोहित को अपने साथियों पर खतरे का अंदेशा हो गया था और इसके बाद उन्‍होंने खुद आगे बढ़कर चार्ज संभाला। तीनों तरफ से आतंकी फायरिंग कर रहे थे और मेजर मोहित बिना डरे अपनी टीम को आगे बढ़ने के लिए कहते रहे। फायरिंग इतनी जबर्दस्‍त थी कि चार कमांडो तुरंत ही उसकी चपेट में आ गए थे। मेजर मोहित ने अपनी सुरक्षा पर जरा भी ध्‍यान नहीं दिया और वह रेंगते हुए अपने साथियों तक पहुंचे और उनकी जान बचाई।

बिना सोचे-समझे उन्‍होंने आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके और दो आतंकी वहीं ढेर हो गए। इसी दौरान मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई। इसके बाद भी वह रुके नहीं और अपने कमांडोज को बुरी तरह घायल होने के बाद निर्देश देते रहे। मेजर मोहित ने दो और आतंकियों को ढेर किया और इसी दौरान वह शहीद हो गए। मेजर मोहित शर्मा कुपवाड़ा ऑपरेशन के दौरान 21 मार्च 2009 को शहीद हुए थे। मेजर मोहित को उनकी बहादुरी के लिए शांति काल में दिए जाने वाले सर्वोच्‍च सम्‍मान अशोक चक्र से सम्‍मानित किया गया था। 26 जनवरी 2020 को उन्हें देश के सर्वोच्च शांति काल वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था यह सम्‍मान मरणोपरांत उन्‍हें दिया गया था। इसके अलावा उन्‍हें सेना मेडल से भी नवाजा गया था। मेजर मोहित शर्मा आज करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बन गए हैं। उनका जीवन पूरी तरह से देश के नाम कुर्बान हो गया। आज हर कोई मेजर मोहित शर्मा की बहादूरी और उनके जज़्बे को सलाम करता है।