लालटेन की रोशनी में करते थे तैयारी, पिता का अंतिम स्ंस्कार के लिए लेने पड़े थे उधार पैसे, कुछ ऐसी है IAS रमेश घोलप की कहानी

Had to borrow money for father's last rites, such is the story of IAS Ramesh Gholap.

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है”

इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं झारखंड कैडर के IAS अधिकारी रमेश घोलप

रमेश एक गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता गांव में एक साइकिल रिपेयरिंग की दुकान चलाते थे। लेकिन, जल्द ही उनका निधन हो गया। ऐसे में परिवार की आर्थिक स्थिति और ख़राब हो गयी।

ऐसी सभी परेशानियों का सामना करते हुए रमेश ने अपनी पढ़ाई पूरी की और पहले अध्यापक की नौकरी और फिर UPSC की परीक्षा पास कर आज वह झारखंड में जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं।

जन्म: 30 अप्रैल 1988, सोलापुर, महाराष्ट्र
पिता: गोरख घोलप
माता: विमला देवी
Exam Cleared: UPSC 2012, AIR 287th


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कौन हैं रमेश घोलप?

रमेश का जन्म 30 अप्रैल 1988 को महाराष्ट्र के सोलापुर के एक गांव में हुआ था। परिवार आर्थिक स्थिति बेहद ही खराब थी। उनके पिता गोरख घोलप गाँव में ही साइकिल रिपेयरिंग की दुकान चलाते थे, जोकि उनके परिवार की आमदनी का एकमात्र सहारा थे।

रमेश को बचपन में ही बाएं पैर में पोलियो की बीमारी हो गयी थी। रमेश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गाँव के ही स्कूल में की थी। इनके परिवार की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वह अपने चाचा चाची के यहाँ चले गए थे।

रमेश के पिता को शराब पीने की लत थी, इस कारण जब रमेश 12वीं की पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी।

पिता की मृत्यु के बाद संघर्षों ने आ घेरा.

जब उनके पिता की मृत्यु हुई, उस समय उनके गाँव जाने के लिए 7 रुपये लगते थे, दिव्यांग होने के कारण रमेश को सिर्फ 2 रुपये ही देने होते थे। रमेश के पास घर जाने के लिए 2 रुपये भी नहीं थे। तब अपने चाचा के पड़ोसियों से उन्होंने 2 रुपये उधार लिए थे इसके बाद वह अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हो सके।


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पिता की मृत्यु से घर की पूरी ज़िम्मेदारी रमेश और उनकी माँ पर आ गयी। उनकी माँ ने कुछ रुपये उधार लेकर चूड़ियां बेचना शुरू किया। रमेश और उनके छोटे भाई इस काम में माँ की मदद करते थे।

इस तरह पूरी की आगे की पढ़ाई.

रमेश के शिक्षक ने उन्हें आगे की पढ़ाई में सहायता की बात की। तब रमेश ने 88.5 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की।

12वीं के बाद रमेश ने Ded किया, जिससे उन्हें टीचर की नौकरी मिल गयी। इसी दौरान उन्होंने ओपन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में ग्रेजुएशन पूरी की।

लालटेन की उजाले में की थी UPSC की तैयारी.

जब रमेश पढ़ाई करते थे, उस समय उनके गाँव में बिजली नहीं हुआ करती थी। इसके लिए वह लालटेन की रौशनी मे पढ़ाई करते थे। लालटेन में केरोसिन के लिए जब वे राशन की दुकान पर जाते थे। तो राशन वाला उनसे कीमत से ज्यादा मांगता था।

रमेश की माँ विधवा थी, वे विधवा पेंशन योजना का आवेदन करने गयी, तो वहां भी उनसे इसके लिए रिश्वत मांगी गयी। इन दो घटनाओं ने रमेश को आहत कर दिया, जिसके कारण रमेश ने UPSC की तैयारी करने की ठानी।

काबिलियत की बदौलत पाई स्कॉलरशिप.

जब रमेश ने UPSC करने की बात अपनी माँ से कही, तो उनकी माँ ने स्व सहायता समूह से ऋण लेकर उन्हें UPSC की तैयारी की लिए पुणे भेजा, इसके लिए रमेश ने अपनी नौकरी से 6 महीने का अवकाश लिया।

2010 में रमेश को पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली। UPSC की तैयारी के दौरान रमेश ने State Institute of Administration Careers (SIAC) की परीक्षा पर कर ली, जिसके कारण उन्हें स्कॉलरशिप और हॉस्टल मिल गया।

अपनी लगातार मेहनत से रमेश ने 2012 में 287वीं रैंक के साथ UPSC की परीक्षा पास कर ली। आज रमेश झारखंड में उद्योग निदेशक और ग्रामीण विकास विभाग में जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं। रमेश ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से अपने संघर्ष को सफलता में बदल लिया।


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