बीते कुछ समय से एक शब्द काफी सुनने में आ रहा है जिसकी चारों तरफ चर्चा हो रही है। क्या सोशल मीडिया, क्या चाय की टपरी हर जगह ‘मूनलाईटिंग’ शब्द की काफी चर्चा है। इसका ताजा मामला हाल के दिनों में ही आया है जब विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी ने 300 लोगों को अपनी कंपनी से निकालने की जानकारी दी। जिसके बाद से यह शब्द हर किसी की जुबां पर है। अगर आप भी इस शब्द से अंजान हैं तो आज का लेख आपके लिए ही है जिसमें हम आपको बताएंगे कि मूनलाइटिंग क्या है? इसका क्या असर पड़ता है, क्यों लोग अपनी नौकरियां खो रहे हैं, जैसी तमाम जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी।
क्या है मूनलाइटिंग?
अक्सर लोग अपनी कमाई बढ़ाने के लिए एक पर्मानेंट नौकरी के साथ कोई दूसरा काम करते हैं। ये काम पार्ट टाइम या फुल टाइम किसी भी रूप में हो सकता है। इसे ही तकनीकी रूप में मूनलाइट कहते हैं। ये काम अक्सर पहली नौकरी के बाद शाम को, रात में या फिर वीकेंड पर किया जाता है इसलिए इसे मून यानी चंद्रमा के साथ जोड़ा गया है। आईटी क्षेत्र में इस टर्म का काफी चलन है। लोग एक साथ कई प्रोजेक्ट पर अलग-अलग कंपनियों के लिए काम करते हैं। इसी के चलते कई कंपनियों में ऐसी पॉलिसी होती है जिसमें दूसरी जॉब करने की मनाही होती है। वहीं कुछ कंपनियां कहती हैं कि अगर कर्मचारी कोई दूसरा काम कर रहा है तो कंपनी को उसकी पूरी जानकारी दें।
क्या दो कंपनियों के लिए काम करना गलत है?
भारत में किसी भी कानून में मूनलाइटिंग को परिभाषित नहीं किया गया है और किसी भी न्यायालय में इस विषय पर निर्णय नहीं दिया गया है। दरअसल यह पूरी तरह से कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है कि मूनलाइटिंग को लेकर उनकी क्या पॉलिसी है। इसके लिए अलग-अलग कंपनियों के अलग-अलग मत हैं। मीडिया रिपोर्ट्रस की माने तो विप्रो के चेयरमैन ने मूनलाइटिंग को धोखा कहा था और कंपनी ने कंपटेटिव फर्मों के लिए काम करने के आरोप को सही साबित होने के बाद 300 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसी तरह इन्फोसिस ने कर्मचारियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वे मूनलाइटिंग करते हुए पाए गये तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। वहीं स्विगी ने मूनलाइटिंग पॉलिसी की घोषणा करते हुए कहा है कि उनके कर्मचारी दूसरी जगह काम कर सकते हैं।
क्यों हो रहा है इसका विरोध?
मूनलाइटिंग को लेकर कई कंपनियां विरोध कर रही हैं जिसके पीछे वो कई कारण बताते हैं। इसमें सबसे प्रमुख है काम और प्रोडक्टिविटी पर असर। कई कंपनियों का मानना है कि अगर उनके कर्मचारी एक से ज्यादा प्रोजेक्ट पर काम करते हैं तो उससे उनके काम और प्रोडक्टिविटी पर काफी असर पड़ता है जिसका खामियाजा कंपनी को उठाना पड़ता है। इसके साथ ही कर्मचारियों पर संसाधनों का गलत इस्तेमाल करने का आरोप भी लगता है और एक से ज्यादा काम करने वाले लोग छुट्टियां भी ज्यादा लेते हैं। इस तरह के कई आरोपों के आधार पर कंपनियां मूनलाइटिंग का विरोध कर रही हैं।
कर्मचारी को किस तरह होता है नुकसान?
मूनलाइटिंग के जरिए कर्मचारी पैसे तो कमा लेता है लेकिन शारीरिक रूप से उसका काफी नुकसान होता है। एक साथ दो जगह काम करने के कारण व्यक्ति को 16 से 18 घंटे तक काम करना पड़ जाता है। ज्यादा काम के बोझ के कारण तनाव भी ज्यादा होता है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि कर्मचारी की नींद भी पूरी नहीं हो पाती है। जिसके चलते सोशल लाइफ पर भी असर पड़ता है। लंबे समय के लिहाज से देखें तो यह काफी जोखिम भरा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
एक्सपर्ट की क्या है राय?
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो कम सैलरी वाले लोग ही मूनलाइट जॉब्स करते हैं ताकि उनकी इसके जरिए कुछ एक्सट्रा इनकम हो जाए। कोरोना महामारी के समय लोगों के पास काफी समय था और इस समय काफी स्टार्टअप शुरू हुए जिससे लोग एक साथ अलग कंपनियों के लिए अलग प्रोजेक्ट्स पर काम करने लगे। इससे कुछ लोग प्रोजेक्ट्स में देरी करने लगे साथ ही गुणवत्ता में भी गिराव देखा गया। जिसके बाद अलग-अलग कंपनियों ने इसको लेकर अपनी राय प्रकट की। हालांकि नैतिक तौर पर देखा जाए तो ऑफिस के बाद किसी भी तरह का काम करने से रोकना गलत है लेकिन दोनों जगह पर पे-रोल पर काम नहीं किया जा सकता है। अगर कोई पार्ट-टाइम काम करता है तो इसमें हर्ज नहीं होना चाहिए।
मूनलाइटिंग पर आपकी क्या राय है यह आप हमें कमेंट कर के बता सकते हैं, साथ ही लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी भी कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं और चाहते हैं कि स्टार्टअप बिज़नेस को आगे बढ़ाने में आपको एक पर्सनल बिज़नेस कोच का अच्छा मार्गदर्शन मिले तो आपको PSC (Problem Solving Course) का चुनाव ज़रूर करना चाहिए जिससे आप अपने बिज़नेस में एक अच्छी हैंडहोल्डिंग पा सकते हैं और अपने बिज़नेस को चार गुना बढ़ा सकते हैं ।