शंकर कुमार सिंह Motivational Story : 90 प्रतिशत शरीर के काम ना करने के बाद भी इस व्यक्ति ने नहीं मानी हार, बच्चों को देता है निःशुल्क शिक्षा
इंसान में अगर कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग है जो शरीर से पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी कुछ कर नहीं पाते। हमेशा अपनी असफलता के बारे में बात करते हैं। लेकिन इस दुनिया में एक ऐसा इंसान भी है जिसके शरीर का 90 प्रतिशत हिस्सा काम नही करता। लेकिन इसके बाद भी उस इंसान ने हार नहीं मानी और एक समाजसेवी, शिक्षाविद, मोटिवेशनल स्पीकर एवं RTI एक्टिविस्ट बनकर लोगों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं, वो शख्स हैं बिहार के रहने वाले शंकर कुमार सिंह। शंकर कुमार सिंह ना केवल समाज के लिए एक प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है बल्कि उन लोगों के लिए एक आइना भी है जो सब कुछ सही होते हुए भी जीवन में कुछ नहीं कर पाते। आइए जानतें हैं शंकर कुमार सिंह की मोटिवेशनल कहानी (Motivational Story)।
बिहार के भोजपुर जिले के मुख्यालय आरा के एक छोटे से गाँव में जन्में शंकर कुमार सिंह (Shankar Kumar Singh) जन्म से ही दिव्यांग है। जन्म के कुछ दिन बाद ही उनके शरीर का 90 प्रतिशत हिस्सा पोलियों की वजह से लकवाग्रस्त हो गया था। अन्य लोगों की तरह दिव्यांगता को अपनी किस्मत ना मानकर शंकर ने पूरे लगन और विश्वास के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की। शंकर को शिक्षा प्राप्त करने में उनके परिवार ने बहुत मदद की। उनके भाई उन्हें अपनी पीठ पर बैठाकर गांव के सरकारी स्कूल में ले जाया करते थे।
पांचवी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद शंकर का चयन जवाहर नवोदय विद्यालय में हुआ, लेकिन दिव्यांग होने के कारण उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं मिला। लेकिन शंकर ने हार नहीं मानी उन्होंने अपने गांव के ही स्कूल में पढ़ाई पूरी की। शंकर ने अपनी शारिरिक अक्षमताओं को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया। वर्ष 2008 में शंकर ने नेशनल टैलेंट सर्च एग्जाम (NTSE) की परीक्षा दी जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई। शंकर को अपनी पढ़ाई की बदौलत वर्ष 2010 में अजब दयाल सिंह शिक्षा अवार्ड भी मिला। शंकर ने इसके बाद 2013 में आईआईटी (IIT) की परीक्षा दी जिसमें उन्हें 176वीं रैंक हासिल हुई। केवल 2 नंबर की कमी के कारण उनका दाखिला नहीं हो पाया।
शंकर कुमार ने आईआईटी में दाखिला ना हो पाने के बाद भी हार नहीं मानी। वो स्टीफन हाकिंग को अपना आदर्श मानते थे। जिसके बाद उन्होंने आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शंकर कुमार कहते हैं कि आपकी शारीरिक शक्ति आपका मनोबल नहीं होती। आप मानसिक शक्ति से ही अपना काम करते हैं। इसलिए आपके पास एक मजबूत मानसिक शक्ति होनी चाहिए। अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ शंकर आज दूसरे लोगों को प्रेरित (Motivate) करने का काम करते हैं।
शंकर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं जन कल्याण जैसे कार्यो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। शंकर ने अपने गांव में निःशुल्क शिक्षा देने का कार्य प्रारंभ किया है। उन्होंने अपने घर के पास ही कंप्यूटर सहित एक पुस्तकालय बनवाया हैं जिसमे गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है। शंकर ने बड़हरा प्रखंड जिला भोजपुर में अपना एक विद्यालय भी खोला है जिसका नाम आरके इंटरनेशनल स्कूल है, जहाँ वे गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है।
शंकर को उनके कार्यों के लिए कई बड़े अवार्ड्स से सम्मानित भी किया गया है। उन्हें बिहार अस्मिता अवार्ड एवं नागालैंड (Nagaland) के गवर्नर द्वारा भी सम्मान प्राप्त हुआ है। शंकर कभी अपनी असफलताओं पर उदास नहीं हुए। उन्होंने हर परिस्थिति का डटकर सामना किया है। वो लोगों के अंदर कुछ कर दिखाने की भावना का प्रसार करते हैं। वो लोगों को प्रेरित करते हैं। शंकर ने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर अपनी सफलता की कहानी (Success Story) लिखी है। आज शंकर हर किसी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है।
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