डॉ. राजगोपालन वासुदेवन motivational story: दि रियल हीरो, जिन्होंने कचरे से बना डाली हजारो मील लंबी सड़क
आज भले ही देश में हर जगह स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ-सफाई का कार्य किया जा रहा हो लेकिन फिर भी देश में अधिकांश जगहों पर कूड़े, प्लास्टिक के ढेर लगें ही दिखाई देते हैं। शहर में हर तरफ प्लास्टिक का कचरा पड़ा रहता है, जो कई बीमारियों का कारण बनता है। हर कोई इसे सरकार और सफाई करमचारियों ड्यूका काम समझ अपना पल्ला झाड़ लेता है। लेकिन इन लोगों में एक ऐसे भी शख्स है जिन्होंने ना केवल साफ-सफाई के प्रति लोगों का नजरिया बदला, बल्कि खुद इस मिशन को सफल बनाया। इस शख्स का नाम है राजगोपालन वासुदेवन। राजगोपालन वासुदेवन इंजीनियरिंग कॉलेज (टीसीई), मदुरै में केमिस्ट्री के प्रॉफेसर हैं। वो इस कचरे के जरिए सड़कें बनवाते हैं. यह सुनने में थोड़ा अजीब जरुर लगता है, कि कैसे कोई कचरे से सड़क बना सकता है, लेकिन ऐसा हुआ है। राजगोपालन ने न केवल कचरे को दोबोरा उपयोग करने के योग्य बनाया बल्कि उसे एक नया रुप भी दिया है।
वासुदेवन को प्लास्टिक मैन ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है। अपने इनोवेशन से यह काम कर रहे हैं. उनके इस सराहनीय कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री के नागरिक सम्मान से सम्मानित करने का विचार किया है।
राजगोपालन वासुदेवन ने प्लास्टिक से सड़क बना कर हर किसी के लिए एक नई मिसाल पेश की है। उनके इस कार्य को देख हर कोई आचंभित है। लेकिन राजगोपालन के लिए इस कार्य को करना इतना सरल नहीं था। प्लास्टिक से सडड़क का निर्माण करने में उन्हें 10 साल लग गए। उन्होंने सबसे पहले 2002 में अपनी तकनीक से थिएगराजार कॉलेज के परिसर में प्लास्टिक के कचरे से सड़क बनाने कार्य किया। उनका यह सफर काफी कठिनाइयों भरा था, लेकिन अपने मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने अंसभव को संभव कर दिखाया है।
अपने इस कार्य के बारे में 2004 में राजोपालन ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री स्व. जयललिता को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया था। जिसके बाद वो अपने इस कार्य में लग गए।
प्रोफेसर राजगोपालन ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि एक बार टीवी पर एक डॉक्टर प्लास्टिक के कचरे के नुकसान के बारे में बता रहे थे, तभी उसी पल प्रोफेसर के दिमाग में कचरे का सदुपयोग करने का आईडिया मिला और वो अपने इस कार्य में लग गए।
राजगोपालन के इस सराहनीय कार्य की प्रशंसा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हो रही है। उनके पेटेंट को खरीदने के लिए विदेशी कंपनियों ने उन्हें कई तरीकों से संपर्क किया है। लेकिन एक भारतीय होने का फर्ज भी रोजगोपालन ने बखूबी निभाया है । पैसों लालच ना कर उन्होंने भारत सरकार को यह टेक्नोलॉजी मुफ्त में दी है. अब इस तकनीक से हजारों किलोमीटर तक की सड़कों का निर्माण हो चुका है।
राजगोपलन आज के समय में पूरे विश्व के लिए प्रेरणा (motivation) का स्त्रोत बन चुके हैं। इनकी सफलता की कहानी (Success story) पूरी दुनिया के लिए एक सराहनीय कदम है।