नई सोच और बुलंद हौसले के दम पर हर कामयाबी हासिल की जा सकती है. आज हम आपको कुछ इसी तरह की उद्यमशीलता की सफल कहानियां (Success Story) बताने जा रहे है. जो आपके लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspirational) बन सकती है. बलवंत पारेख Motivational Story: इस आदमी की सोच ने फेविकॉल के जोड़ को बनाया और मजबूत, जानें इनकी सफलता की कहानी

कामयाबी की इस खास दास्तान की हर जगह चर्चा हो रही है, जो कि राजस्थान के एक वीडीवीके (Van DhanVikas Kendra) समूह से जुड़ी है. राजस्थान में पिछले वर्ष 3019 वनधन विकास केंद्रों को 189 समूहों में शामिल किया गया था. ये समूह लगभग 57,292 लाभार्थियों की मदद कर रहे हैं. आज की तारीख तक वनधन विकास केंद्रों को 2224 वनधन विकास केंद्र समूहों में समेटा गया है. प्रत्येक समूह में 300 वनवासी हैं. पूरे देश में ट्राइफेड ने दो साल से भी कम समय में इनकी मंजूरी दी थी. जनजातीय आबादी की आजीविका में सुधार लाना और वंचित व जोखिम वाले जनजातीय लोगों के जीवन को बेहतर बनाना ट्राइफेड का मिशन है.

राजस्थान के इन समूहों में से एक समूह वनधन विकास केंद्र समूह, श्रीनाथ राजीविका, मगवास की एक शानदार दास्तान है. अपनी दिग्गज उद्यमी मुगली बाई की जानदार रहनुमाई में, वीडीवीके समूह ने कम समय में ही हर्बल गुलाल की भारी मात्रा में बिक्री की. बताया जाता है कि 5,80,000 रुपये की बिक्री हुई.

उदयपुर में झाडोल के जनजातीय लोग इलाके के घने जंगलों से ताजा फूल जमा करते हैं. वे पलाश, कनेर, रांजका और गेंदा के फूल जमा करते हैं. जमा किये हुये फूलों को श्रीनाथ वनधन विकास केंद्र, मगवास ले जाया जाता है. फूलों को बड़े-बड़े बर्तनों में पानी में उबाला जाता है. यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे चलती है, ताकि पानी में फूलों का रंग पूरी तरह उतर आये. यह रंग फूलों का स्वाभाविक रंग होता है. इसके बाद रंगीन पानी को छाना जाता है और उसमें मक्के का आटा मिलाया जाता है. इसमें गुलाब-जल मिलाकर उसे आटे के रूप में पीस लिया जाता है. जनजातीय लोग इसके बाद हाथ से शुद्ध किये हुये हर्बल गुलाल को सुखाते हैं और कोई कचरा आदि हो, तो उसे निकाल देते हैं. शुद्ध गुलाल को फिर आकर्षक पैकटों में बंद करके बेच देते हैं! इन पत्तियों से हर्बल गुलाल बनाने के काम में 600 से अधिक महिलायें लगी हैं.

उद्यमशीलता की यह अनोखी दास्तान युगों पुरानी परिपाटी और परंपरा के बल पर चली आ रही है. यह इस बात का प्रमाण है कि वनधन योजना किस तरह जनजातीय आबादी को लाभ पहुंचा रही है. 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के जंगलों के उत्पाद जमा करने वाले लगभग 6.67 लाख जनजातियों को उद्यमिता का अवसर मिला है. कार्यक्रम की सफलता इस बात में देखी जा सकती है कि 50 लाख जनजातियों को पहले ही वनधन स्टार्टअप कार्यक्रमों का लाभ मिल चुका है.