भारत में किसी भी प्रकार का बिजनेस (Business) और स्टार्टअप (Startup) शुरू करने के लिए कुछ परमिशन और लाइसेंस (License) लेना बहुत ज़रूरी है। कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करना हर स्टार्टअप का पहला कदम होना चाहिए। बिना लाइसेंस और परमिट (Permit) के किसी भी प्रकार का व्यवसाय नहीं चलाया जा सकता और ना ही इसके बिना आपको किसी सरकारी योजना का लाभ मिलेगा। इसे अनदेखा करने पर भारी जुर्माना और अन्य कानूनी जटिलताएं हो सकती हैं, जो कि सभी स्टार्टअप कंपनियों की तरक्की में रोड़ा बन सकती हैं।

आपके बिजनेस के आधार पर कुछ लाइसेंस और अनुमतियाँ लेनी पड़ती है। सरकारी एजेंसियां ​​बिना लाइसेंस के काम करने वाले स्टार्टअप पर भारी-भरकम जुर्माना या फिर बंद करवा सकती हैं। ऐसे में हर उद्यमी के लिए कारोबार शुरू करने से पहले सभी नियमों का पालन करना बहुत ही जरुरी होता है।

भारत में हर स्टार्टअप के लिए बेहद जरुरी है ये लाइसेंस और परमिट

  • बिजनेस लाइसेंस:

    एक कानूनी दस्तावेज जो आपको अपने शहर में व्यवसाय चलाने का अधिकार देता है। यह एक परमिट है जो बताता है कि कंपनी को संचालित करने के लिए सरकार की मंजूरी है।

  • विभिन्न प्रकार के बिजनेस रजिस्ट्रेशन:

    भारत में अलग-अलग प्रकार के बिजनेस रजिस्ट्रेशन होते हैं- प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, वन पर्सन कंपनी, पार्टनरशिप फर्म, पब्लिक लिमिटेड कंपनी या एक एनजीओ / ट्रस्ट। हर बिजनेस को इन्ही में से किसी के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य है।

  • सुरक्षा रजिस्ट्रेशन/फायर परमिट:

    आपके द्वारा संचालित किए जाने वाले बिजनेस के प्रकार के आधार पर आपको स्थानीय फायर डिपार्टमेंट से निरीक्षण करवाना और अनुमति लेनी पड़ सकती है।

  • जीएसटी रजिस्ट्रेशन:

    अब हर बिजनेस के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य हो गया है। इसे बिजनेस शुरू करने के 30 दिनों के अंदर प्राप्त करना बेहद जरुरी है, अन्यथा स्टार्टअप पर भारी दंड लग सकता है।

  • एमएसएमई रजिस्ट्रेशन:

    एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) रजिस्ट्रेशन करने से स्टार्टअप को कर्ज, टैक्सेशन और अन्य योजनाओं का लाभ मिलता है। साथ ही स्टार्टअप सरकारी सब्सिडी की भी हकदार बन जाती है।

  • स्टार्टअप इंडिया रजिस्ट्रेशन:

    जब कोई बिजनेस DIPP अधिसूचना के अंतर्गत स्टार्टअप की परिभाषा में शामिल हो, तो वह स्टार्टअप इंडिया रजिस्ट्रेशन करवाने का पात्र है। इसके लिए कुछ मानदंड हैं- उदाहरण के तौर पर व्यवसाय पंजीकरण की तारीख से 10 साल से अधिक समय का नहीं हो और किसी भी वित्तीय वर्ष में उसका सालाना टर्नओवर 100 करोड़ से जादा नहीं होना चाहिए।


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