Measured (मापा), Ambitious (महत्वाकांक्षी), Religious (धार्मिक), Wise (बुद्धिमान), विश्वसनीय (Authentic), साधन संपन्न (Resourceful) और परिश्रमी (Industrious) अंग्रेजी के इन सातों शब्दों के पहले अक्षर जहां मारवाड़ी शब्द को प्रतिबिंबित करते हैं, वहीं इसके शब्दार्थों में भी देश का एक-एक मारवाड़ी खरा उतरता है. कुछ यही बातें मारवाड़ी समाज को इतना समृद्ध और सफल व्यवसायी बनाती हैं. आज देश के मीडिया से मल्टीप्लेक्स तक की हर फील्ड में मारवाड़ी ही असली खिलाड़ी साबित हुआ है. रेत की पृष्ठभूमि से आया यह समाज किसी भी मिट्टी से सोना उगाने की काबिलियत रखता है. आइये जानें कैसे बने मारवाड़ी देश और दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी. Business Success Tips: बिजनेस में सफलता चाहिए, तो जरूर फॉलो करें ये टिप्स

क्या है मारवाड़ी?

हिंदुस्तान के किसी घर में जायें, अगर वहां महिलाएं अचार, पापड़, चटनी या लड्डू आदि बनाती दिखें तो समझ लीजिये कि आप किसी मारवाड़ी के घर पर आ गये हैं. हर मारवाड़ी की एक सोच होती है, कैसे पैसा कमाया जाये. दरअसल उनकी लाइफस्टाइल व्यापार, दुकान, मकान के इर्द-गिर्द ही रची-बसी होती है. जन्म से वें मेक मनी, सेव मनी, डोनेट और अंत में डेथ की राह पर होते है. इस संदर्भ में एक सच्ची कहानी है. एक मारवाड़ी हलवाई ने अपने मित्र से कहा कि उसे एक आदमी को नौकरी पर रखना है. मित्र ने पूछा ठीक है, तुम्हें कैसा आदमी चाहिए? मारवाड़ी ने कहा, जिसे डायबिटीज हो.

हर शिखर पर मारवाड़ी!

चीते की चाल, बाज की नजर और मारवाड़ी की अक्ल पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता. आज देश के 42 प्रतिशत बिलेनियर अरबपति मारवाड़ी हैं. चोटी के मीडिया मसलन टाइम्स मीडिया. एक्सप्रेस ग्रुप, एच टी, दैनिक जागरण, भास्कर, राजस्थान पत्रिका, लोकमत ग्रुप, अमर उजाला, जी इंटरटेनमेंट सभी मारवाड़ी का ही तो है. यहां तक कि सारे स्टार्टअप फ्लिपकार्ट, मिन्त्रा, स्नैपडील, लेंसकार्ट, येभी.कॉम, इंडियामार्ट ये सभी मारवाड़ी ही चला रहे हैं. बल्कि ओला कैब, शॉपक्लूज, नापतौल, ओयो रूम, जोमैटो, अर्बन लैडर की कमान भी मारवाड़ी समुदाय के लोगों के पास ही है.

ट्रैडिंग मैनेजमेंट!

हैरानी की बात ये कि ये रेगिस्तान से निकलकर आये हैं. ये कंजूस नहीं होते मगर पैसे की वैल्यू समझते हैं, फाइनेंस के जीनियस होते हैं. इसे ट्रेजरी मैनेजमेंट कहते हैं. पूंजी को कैसे मैनेज करना है. कैसे इन्वेस्टमेंट करना है. वे एक मिनट के लिए भी पैसा खाली नहीं छोड़ते हैं, वे सेविंग या करेंट एकाउंट में पड़े पैसे पर भी इंट्रेस्ट कमाना चाहते हैं. उसे प्रोडक्टिव जगह लगाना चाहते हैं. बाकी कंपनी बिजनेस ऑपरेशन पर ध्यान देते हैं. मारवाड़ी कंपनी एकाउंटिंग ऑपरेशन पर ध्यान देते हैं. वे नौकरी पर सबको रखते है, मगर एकाउंट अपने पास रखते हैं.

बुद्धिमानी से टैक्स बचाते हैं!

टैक्स प्लानिंग को बहुत सीरियसली लेते हैं. बहुत बुद्धिमानी से टैक्स बचाते हैं. रोज अपना एकाउंट टैली करेंगे, अपनी इन्वेंट्री को, जो लेना या देना है. अपने बच्चों को बचपन से कैश, एकाउंटिंग, रेसिंग बिल, बैंक स्टेटमेंट, डेली रिपोर्ट, डेली प्रॉफिट एंड लॉस एकाउंट, सेविंग्स, व्यय, बैलेंस सीट, सेल्स आदि सिखा देते हैं. जीडी बिड़ला ने भी माना था कि उन्हें 12 साल की उम्र में पूरी एकाउंटिंग समझा दी गई थी.

रिस्क और प्रॉफिट देखकर ही इन्वेस्ट करते हैं!

मारवाड़ी कहीं भी कोई भी इन्वेस्टमेंट करेगा, रिस्क और प्रॉफिट के हिसाब से ही खर्चा करेगा. अगर कोई चीज खरीदते समय ये प्रोडक्ट से जस्टिफाइड नहीं कर सकें तो दुनिया के बड़े से बड़ा सेल्समैन इन्हें माल नहीं बेच सकता. ये पहले अर्न करते हैं फिर खर्च करते हैं. उधर पंजाबी पहले खर्च करेंगे फिर अर्न का इंतजार करेंगे. ये पहले इंट्रेस्ट और मार्जिन देखेंगे. मार्जिन अच्छा नहीं होने पर ये पैसे को मार्केट से उठा लेते है. ये हर चीज में लॉन्ग टर्न में इन्वेस्ट करते हैं.

14 साल की उम्र में बीके बिड़ला ने टैक्स भरा!

मारवाड़ी कंपाउंडिंग की ताकत जानते हैं, पैसे की वैल्यू समझते हैं. ये बच्चे को 18 साल का होने से पहले सब सिखा देते हैं. इसीलिए इनके यहां बच्चे प्रॉफिट कमाने में मास्टर बन जाते हैं. ये बच्चों को सिखाते हैं कि धन्ना सेठ बनने से पहले धंधा करना आना चाहिए. अरबपति जीडी बिड़ला ने अपने 13 साल के बेटे बीके बिड़ला को उसी का इन्वेस्ट किया थोड़ा सा पैसा उसे देकर कहा, अब से तू अपने खर्चे खुद निकाल. बेटे ने फैमिली ब्रोकर को वह पैसा देकर उसे स्टॉक मार्केट में लगाने को कहा. कुछ ही महीने में उस 13 साल के बच्चे ने चार हजार कमाया. 14 साल की उम्र में बच्चे ने टैक्स भरा. 15 साल की उम्र में बिजनेस शुरु किया. 18 साल की उम्र तक आते-आते उसने नुकसान में चल रही सबसे बड़ी कंपनी को प्रॉफिट में बदलकर दिखाया.

मारवाड़ियों की इनकम के पांच टिप्स!

1- हाई वॉल्यूम-लो मार्जिन (High Volume Low Margin) यानि कम मार्जिन मिले चलेगा, बस माल निकलते रहना चाहिए. रोजाना हस्तक्षेप नहीं चाहिए. चाहे डिस्ट्रीब्यूटरशिप ले लो या फिर बड़ी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट ले लो. थोड़े मार्जिन से सही प्रॉफिट निकल जाता है.

2- किराये की संपत्ति से भी अच्छी कमाई

ये किराये से भी प्रॉफिट कमाने का मौका नहीं छोड़ते. बस प्रॉपर्टी में कुछ अप्रीशियेट हो जाये. यानी पहले से जो पैसा आता है, उसे दूसरी जगह इन्वेस्ट कर देते हैं.

3- मोल भाव (Negotiation)

ये कुछ भी खरीदेंगे, मोलभाव निचले स्तर तक करेंगे. सामने वाले को निचोड़ने की हद तक चले जायेंगे.

4- ब्याज आय (Intrest Income)

ये कुछ भी करें हर काम में इन्हें इंटरेस्ट चाहिए. इनकी सारी फिलॉसफी ब्याज के इर्द-गिर्द चलती है.

5- संबद्ध आय (Affiliate income) ये थोड़ी अलग प्रकार की इंकम है. ये रिश्तेदारों में, दोस्तों में कहीं भी धंधे में मदद करेंगे, तो थोड़ी-सी इक्विटी ले लेंगे, शेयर ले लेंगे. इनकी नेटवर्किंग जबरदस्त होती है. ये रिश्तेदारी बड़ी शिद्दत से निभाते हैं, सबसे अच्छे से जुड़े होते हैं. सबके सुख-दुख में पहुंच जाते हैं. सबसे ज्यादा चैरिटी करते हैं, मदद करते हैं. सोशल क्लैश ये कभी नहीं करते. इसी वजह से ये मार्केट में अच्छी पकड़ रखते हैं.