कभी फिल्मों के पोस्टर चिपकाने वाले चंदूभाई वीरानी आज हैं 4,000 हजार करोड़ की कंपनी बालाजी वेफर्स के मालिक

Chandubhai Virani Success Story Owner of Balaji Wafers

आज बच्चे दुकानों में मिलने वाली अलग-अलग फ्लेवर की चिप्स खाना बहुत पसंद करते हैं। इसके अलावा दिनभर में जब भी स्नैक्स का टाइम होता है, तो लोग भी चिप्स और कई प्रकार के वेफर्स खाना पसंद करते हैं। उन्हीं में बालाजी वेफर्स की चिप्स और उसके दूसरे प्रोडक्ट लोग विशेष रूप से खरीदते हैं।

बालाजी वेफर्स के मालिक चंदूभाई वीरानी ने कड़ी मेहनत करके इस कंपनी की स्थापना की है। वहीं उनका जीवन भी आसान नहीं था। उन्हें अपनी रोजी रोटी के लिए कभी टॉकीज़ के कैंटीन में काम करना पड़ा तो कभी फिल्मों के पोस्टर चिपकाए।

जन्म 31 जनवरी 1957, जामनगर, गुजरात
वर्तमान पद बालाजी वेफर्स के संस्थापक
टर्नओवर चार हजार करोड़

आज जानिये किन मुश्किलों का सामना कर उन्होंने चार हजार करोड़ की कंपनी की स्थापना की –

पहला बिज़नेस हो गया था फेल

चंदूभाई का जन्म 31 जनवरी 1957 को गुजरात के जामनगर में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। जब चंदूभाई 15 साल के हुए, तो उनका परिवार रोजीरोटी  तलाश में ढुंडोराजी चला गया। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे दसवीं के आगे पढ़ नहीं पाए। चंदूभाई और उनके 2 भाइयों ने 20 हजार रुपये उधार लेकर राजकोट में एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट और उपकरणों का बिज़नेस शुरू किया। उन्होंने 2 सालों तक इसे चलाने का प्रयास किया, लेकिन फिर वे असफल हो गए, जिसके परिणामस्वरूप उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा।

कैंटीन में किया काम

अपने परिवार की विपत्तियों को दूर करने के लिए उन्होंने कुछ समय तक छोटी मोटी नौकरियां की। उसके बाद उन्हें एक टॉकीज़ में नौकरी मिल गयी, वहां पर वे कई सारे काम करते थे। कभी टॉकीज़ की फटी हुई सीटों की मरम्मत करते थे, तो कभी मूवीज़ के पोस्टर चिपकाते थे। फिर उसके बाद उन्होंने टॉकीज़ के कैंटीन में काम करना शुरू किया। इससे चंदूभाई की आर्थिक हालत में कुछ हद तक सुधार हुआ, तो उन्होंने वही कैंटीन हजार रुपये प्रतिमाह पर ले लिए और लगातार वहां काम करते रहते।

टॉकीज़ कैंटीन से आया बिज़नेस का आईडिया

चंदूभाई लगातार उस कैंटीन में काम करते रहे। चंदूभाई ने ये ऑब्ज़र्व किया कि कैंटीन में सबसे ज्यादा डिमांड चिप्स की होती है और इंटरवल में अधिकतर लोग अच्छी चिप्स की डिमांड करते थे। तब उन्होंने 10 हजार रुपये लगाकर अपने घर के आँगन में एक अस्थायी शेड बनाया और वहां चिप्स के साथ तरह तरह के प्रयोग करने लगे। जब वे अपने घर में बनी चिप्स टॉकीज़ के कैंटीन में लेकर जाते थे, तो वो हाथों हाथ बिक जाती थी और लोगों में ये पॉपुलर होने लगी।

इसके बाद 1989 में चंदूभाई ने बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लेकर राजकोट में गुजरात की सबसे बड़ी आलू वेफर फैक्ट्री की शुरुआत की और 1992 में बालाजी वेफर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की। आज इस कंपनी में 5 हजार लोग काम करते हैं और देशभर में इसकी 4 फ़ैक्टरियाँ हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वलसाड में स्थिर बालाजी का प्लांट एशिया के सबसे बड़े प्लांटों में से एक है। आज इस कंपनी का टर्नओवर चार हजार करोड़ का है और इसका हर प्रोडक्ट लोगों में फेमस हो रहा है।


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