बचपन से ही नहीं थी आँखों की रौशनी, फिर भी दिया सदाबहार संगीत, जानें रवींद्र जैन की प्रेरक कहानी
हर इंसान के जीवन में संगीत का अलग महत्व होता है। कई लोग अपना तनाव दूर करने के लिए, खुद को रिफ्रेश करने के लिए संगीत का सहारा लेते हैं। लेकिन एक संगीतज्ञ ऐसा भी था, संगीत ने जिसके जीवन के संघर्षों को दूर कर उस संगीतज्ञ को अमर बना दिया।
हम बात कर रहे हैं रवींद्र जैन की, जो जन्म से ही नेत्रहीन थे। उनके पिता ने उन्हें संगीत की शिक्षा दिलाने का निर्णय लिया, जिससे रवींद्र जी को बहुत सुकून मिला और उन्होंने इसे ही अपना जीवन बना लिया। जानिये कैसे रवींद्र जैन जी ने अपनी शारीरिक विफलता के बावजूद संगीत के माध्यम से लोगों के मन में अपनी जगह बनाई –
कौन थे रवींद्र जैन?
जन्म: | 28 फरवरी 1944, अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश |
पिता: | इंद्रमणि जैन, संस्कृत पंडित और आयुर्वेदिक चिकित्सक |
माता: | किरण जैन, गृहणी |
मृत्यु: | 9 अक्टूबर 2015, मुंबई, महाराष्ट्र |
पुरस्कार: | लता मंगेशकर पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, पद्मश्री |
रवींद्र जैन सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार, संगीतकार और संगीत निर्देशक थे, जिनका जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। इनके पिता इंद्रमणि जैन थे, जो कि संस्कृत पंडित और आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। इनकी माता किरण जैन ग्रहणी थी, रवींद्र जी के 6 भाई और एक बहन थी। जब रवींद्र जी का जन्म हुआ, तो एक दिन बाद भी उनकी ऑंखें नहीं खुली, तब डॉक्टर ने सर्जरी के जरिये उनकी आँखें खोली, लेकिन उन्हें तब भी दिखाई नहीं देता था।
ऐसे हुई संगीत की शुरुआत
रवींद्र जी की शुरुआती शिक्षा अलीगढ़ विश्वविद्यालय के ब्लाइंड स्कूल में हुई थी। 4 साल की उम्र में ही उनके पिता ने उनकी संगीत की शिक्षा की व्यवस्था की, जिसके लिए उन्हें मिनी हारमोनियम दिया। उन्होंने जीएल जैन, नाथूराम शर्मा और जनार्दन शर्मा जैसे दिग्गजों से संगीत की शिक्षा ली।
उसके बाद रवींद्र जी अपने चचेरे भाई के कहने पर कोलकाता आ गए। वहां उन्होंने 10 साल तक संगीत की आगे की शिक्षा ली। कोलकाता में ही रवींद्र जी ने 5 रेडियो स्टेशनों पर ऑडिशन दिया, लेकिन उन्हें नकार दिया गया।
मिला फिल्मों में मौका
वे कोलकाता में अपने पहले ब्रेक के लिए प्रयास कर रहे थे। तब उनके दोस्त निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला ने रवींद्र जी को अपनी आने वाली फिल्म के लिए संगीत देने के लिए कहा। रवींद्र जी 19 सितम्बर 1969 को राधेश्याम जी के साथ मुंबई आ गए।
उन्होंने 1972 में कांच और हीरा फिल्म से अपने फ़िल्मी जीवन की शुरुआत की, लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हो पायी। 1973 में आयी फिल्म सौदागर के लिए रवींद्र जी ने गाने लिखे और कंपोज़ भी किये, जिससे उन्हें पहचान मिली।
1987 में रामानंद सागर के निर्देशन में बने रामायण सीरियल ने इन्हें अमर बना दिया। रवींद्र जी ने लगभग 200 फिल्मों और रामायण, श्री कृष्णा, अलिफ़ लैला जैसे धारावाहिकों के लिए अपना संगीत दिया था।
कौन सी मूवीज़ और धारावाहिक रहे हिट?
रवींद्र जैन जी ने कई हिट मूवीज़ और धारावाहिकों में अपने संगीत का जलवा बिखेरा। इस सूचि में सौदागर, चोर मचाये शोर, चितचोर, अँखियों के झरोखों से, पति पत्नी और वो, राम तेरी गंगा मैली, हिना, विवाह, एक विवाह ऐसा भी जैसी फिल्में रहीं। वहीं इन्होंने रामायण, श्री कृष्णा, अलिफ़ लैला, जय हनुमान, साईं बाबा जैसे धारावाहिकों में अपनी आवाज भी दी थी।
पुरस्कार
रवींद्र जी को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार आदि मिले थे। उन्होंने उजालों का सिलसिला नाम से उर्दू शायरी लिखी, जिसके लिए उन्हें 1997 में उत्तर प्रदेश हिंदी उर्दू साहित्य समिति से साहित्य पुरस्कार मिला। 2015 में उन्हें भारत के चौथे नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उसी साल 9 अक्टूबर 2015 में शरीर के कई अंग ख़राब होने के कारण मुंबई में उनका निधन हो गया।
इनके लिखे और गाये हुए गीत और भजन आज भी लोगों के दिलों दिमाग पर छाए हुए हैं। रवींद्र जी ने ये साबित कर दिया है कि अगर इंसान में टैलेंट और कुछ अच्छा कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी परेशानी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।