रिटायरमेंट की उम्र में खड़ी कर डाली 23 सौ करोड़ की कंपनी। जानिये सोनालिका ट्रैक्टर्स के चेयरमैन लक्ष्मण दास मित्तल की प्रेरणादायी कहानी

Laxman Das Mittal set up Rs 2300 crore Sonalika company at retirement age.

अंग्रेजी में एक कहावत है "age is just a number", यह कहावत हमें बताती है कि इंसान अगर कुछ करने का ठान ले, तो उसकी उम्र कभी भी उसके आड़े नहीं आ सकती। अगर हम अपने आसपास देखें तो हमें ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जिसमें लोगों ने अपनी ढलती उम्र में भी अपना काम शुरू कर उसमें सफलता पायी है, ऐसी ही कहानी है सोनालिका ट्रैक्टर्स के संस्थापक लक्ष्मण दास मित्तल की।

लक्ष्मण दास जी एलआईसी एजेंट थे, वहां से 59 साल की उम्र में रिटायर हुए और उसके बाद 65 साल की उम्र में सोनालिका ट्रैक्टर्स की शुरुआत की और आज यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेक्टर ब्रांड बन चुका है।

जानिये लक्ष्मण दास मित्तल की प्रेरणादायी कहानी –

जन्म: 5 अगस्त 1931, होशियारपुर, पंजाब
शिक्षा: पंजाब यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी और उर्दू में एमए
वर्तमान पद: चेयरमैन, सोनालिका ग्रुप
नेटवर्थ: 23 सौ करोड़

कौन है लक्ष्मण दास मित्तल

लक्ष्मण दास मित्तल सोनालिका ग्रुप और सोनालिका ट्रैक्टर्स के चेयरमैन हैं। इनका जन्म 5 अगस्त 1931 को पंजाब के होशियारपुर में हुआ था। इनके पिता हुकुमचंद स्थानीय मंडी में अनाज के डीलर थे, इसलिए उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। उनके पिता उन्हें हमेशा से ही पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते थे।

इन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी और उर्दू में एमए की पढ़ाई की और अंग्रेजी में गोल्ड मैडल हासिल किया।

पहले एक बिज़नेस में हुए थे दिवालिया

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1955 में लक्ष्मण दास ने एलआईसी एजेंट के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। वे शुरू से ही अपना बिज़नेस करना चाहते थे, लेकिन इसके लिए पैसों की ज़रूरत थी। इसीलिए वे एलआईसी में काम करते हुए अपनी सैलरी में से बचत करने लगे। उसी बचत से उन्होंने 1962 में नौकरी करते हुए थ्रेशर मशीन बनाने का काम शुरू किया, लेकिन इसमें वो सफल नहीं सके।

उनका यह बिज़नेस डूब गया और वे दिवालिया हो गए, इस दौरान उनकी नेटवर्थ सिर्फ 1 लाख रुपये रह गयी।

इस तरह किया जीवन में Bounce Back

थ्रेशर का बिज़नेस डूबने के कारण उनके परिवार की हिम्मत जवाब दे गयी थी, लेकिन लक्ष्मण दास में अभी भी Bounce Back करने का जज़्बा बाकि था। वे एलआईसी में लगातार काम करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इस दौरान वे दूसरे बिज़नेस में हाथ आज़माना चाह रहे थे। 

इस दौरान उन्होंने मारुति की डीलरशिप के लिए भी अप्लाई किया, लेकिन उनके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। तब 1970 में लक्ष्मण दास ने सोनालिका ग्रुप की स्थापना की और खेती से जुड़े उपकरण बनाने लगे। 1990 में वे एलआईसी से डिप्टी जोनल मैनेजर के पद से रिटायर हुए। लगातार मेहनत करते हुए लक्ष्मण दास ने 1996 में सोनालिका ट्रैक्टर्स की शुरुआत की।

लक्ष्मण दास कहते हैं कि "कभी मुझे मारुति की डीलरशिप के लिए रिजेक्ट कर दिया गया था और आज कई लोग मेरी कंपनी की डीलरशिप के लिए अप्लाई करते हैं।"

आज सोनालिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेक्टर ब्रांड बन चुका है और सालभर में 3 लाख से ज्यादा ट्रैक्टर्स बनते हैं।

सोनालिका का कारोबार भारत के अलावा 74 देशों में फैला हुआ है और इनकी नेटवर्थ 23 करोड़ से ज्यादा की हो गयी है।


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