यूपीएससी की तैयारी के वक्त पिता को हो गया था कैंसर, जानिये कैसे विपरीत परिस्थितियों में रितिका जिंदल बनी IAS
हर इंसान के जीवन में कोई ना कोई परेशानी अवश्य होती है, लेकिन इंसान उन परेशानियों से कैसे लड़ता है, उसी से उसका भविष्य तय होता है। इसी बात की जीती जागती मिसाल हैं आईएएस रितिका जिंदल।
रितिका पंजाब के मोगा की रहने वाली हैं। जब रितिका ने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी, तब उनके पिता को मुंह का कैंसर था। उनके दूसरे प्रयास के समय उनके पिताजी फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थे और बाद में उनका निधन हो गया। इन सभी परेशानियों के बाद भी रितिका अपने लक्ष्य पर फोकस करती रहीं और सबसे कम उम्र में आईएएस बनी।
कौन हैं रितिका जिंदल?
रितिका पंजाब के मोगा की रहने वाली हैं। पंजाब की होने के कारण उन्होंने बचपन से लाला लाजपत राय और भगत सिंह जी की कहानियां पढ़ी सुनी हैं, जिनसे वे बहुत प्रभावित हुईं। उनके मन में बचपन से ही समाज और देश के लिए कुछ करने का भाव था।
12वीं कक्षा में उन्होंने सीबीएसई में टॉप किया। उसके बाद रितिका के टीचर्स ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई करने की सलाह दी। लेकिन वे जल्द ही आईएएस बनना चाहती थी और एमबीबीएस की डिग्री 5 साल की होती है। ऐसे में उन्होंने बी.कॉम. करने का निर्णय लिया और श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में एडमिशन लिया। ग्रेजुएशन में उन्होंने 95% के साथ तीसरा स्थान प्राप्त किया।
कैसे बनीं आईएएस?
जब हम किसी लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर लेते हैं, तो सभी मुश्किलों का सामना करके भी हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। जब रितिका ने आईएएस की तैयारी शुरू की, उस समय उनके पिता को मुंह का कैंसर था। उन्हें हर बार इलाज के लिए लुधियाना ले जाना पड़ता था। उस समय भी रितिका ने यूपीएससी के तीनों चरणों को पास कर लिया, लेकिन फाइनल लिस्ट में उनके कुछ नंबर कम रह गए।
ऐसे में वे या तो अपनी असफलता पर अफसोस कर सकती थी या फिर से बाउंस बैक करती। उन्होंने दोबारा तैयारी शुरू कर दी। जब वे दूसरा प्रयास दे रही थी, तब उनके पिता फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित थे। रितिका कहती हैं कि उन्हें उनके पिता से बहुत प्रेरणा मिली। दूसरे प्रयास में सफल होने की सूचना रितिका के पिता को मिली, तो वो उनके लिए बहुत गर्व का दिन था।
2018 में रितिका 22 साल की उम्र में 88वीं रैंक हासिल कर सबसे कम उम्र की आईएएस बनी। आईएएस की ट्रेनिंग के दौरान रितिका के माता-पिता की मृत्यु कैंसर के कारण हो गयी थी। आज रितिका हिमाचल के मंडी में एसडीएम के पद पर कार्यरत हैं।
रितिका ने अपने जीवन में आई सभी परेशानियों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया और आज वे करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गयी हैं। रितिका से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जब हम लक्ष्य पर फोकस कर लें, तो सभी परेशानियों का सामना करते हुए भी हम अपने जीवन में सफल हो सकते हैं।
आपको रितिका जिंदल की यह संघर्ष से सफलता की कहानी कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं।