झुग्गी झोपड़ी की रहने वाली उम्मुल खेर की हो चुकी है 8 सर्जरी, आज हैं IAS, जानिये उम्मुल की सफलता की कहानी
अगर इंसान के मन में कुछ बड़ा करने का जज़्बा हो, तो जीवन में चाहे कितनी भी परेशानियां आये, इंसान उनसे लड़ते हुए अपनी मंजिल को पा ही लेता है। इस बात को साबित किया है आईएएस उम्मुल खेर ने।
उम्मुल खेर एक बहुत ही गरीब परिवार से आती हैं और उन्होंने अपना जीवन झुग्गी बस्तियों में रहकर बिताया है। इसके अलावा वे खुद एक ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं, जिसके कारण उनके 16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरियां हो चुकी हैं।
कम उम्र में ही इनकी माँ की मृत्यु भी हो गयी थी, तब परिवार ने इन्हें पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा, लेकिन उम्मुल ने हार नहीं मानी और मेहनत करती रहीं, आज वे IAS बन चुकी हैं।
कौन है IAS उम्मुल खेर?
जानिये उम्मुल के उतार चढ़ाव से भरे जीवन की अर्श से सफलता तक की प्रेरक कहानी –
जन्म: | 1988, पाली, राजस्थान |
शिक्षा: | गार्गी कॉलेज, नई दिल्ली से मनोविज्ञान में स्नातक
JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ से MA और एमफिल |
Exam Cleared: | UPSC 2016, AIR 420th |
उम्मुल का जन्म 1988 में राजस्थान के पाली में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। उम्मुल 'बोन फ्रेजाइल डिसऑर्डर' नामक बीमारी से जूझ रही हैं, जिसके कारण उनकी हड्डियां काफी कमजोर रहती हैं। जब वे छोटी थी, तब उनका परिवार नई दिल्ली के निजामुद्दीन एरिया की झुग्गी झोपड़ी में आ गया था। तब इनके पिता कपड़े बेचकर परिवार का पालन पोषण करते थे।
कुछ समय बाद इन झुग्गियों को गिरा दिया गया, तब परिवार त्रिलोकपुरी के स्लम एरिया में शिफ्ट हुआ। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, तब अपनी फीस भरने के लिए उम्मुल ने 7वीं कक्षा में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।
आगे था और भी संघर्ष:
जब उम्मुल नौवीं कक्षा में थी, तब उनकी माँ का देहांत हो गया। कुछ समय बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की, लेकिन उम्मुल की सौतेली माँ को उम्मुल का स्कूल जाना पसंद नहीं था और उन्होंने उम्मुल पर स्कूल छोड़ने का दबाव बनाया। ऐसी स्थिति में उम्मुल ने अपना घर छोड़ दिया और खुद झुग्गी झोपड़ी में रहने लगी।
कठिन परिस्थितियों के बावजूद उम्मुल ने अपनी लगन और कड़ी मेहनत से अकेले रहकर अपनी पढ़ाई की और दसवीं में 91 प्रतिशत और 12वीं में 90 प्रतिशत अंकों के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की। उसके बाद उन्होंने दिल्ली के गार्गी कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक किया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ से एमए और एमफिल किया। एमफिल करने के बाद उम्मुल ने 2013 में जेआरएफ क्वालीफाई किया, जिसके कारण उन्हें हर महीने 25 हजार रुपये की स्कॉलरशिप मिलने लगी।
बीमारी भी नहीं तोड़ पाई उनका हौसला:
उम्मुल बचपन से ही बोन फ्रेजाइल डिसऑर्डर नामक बीमारी से जूझ रही थी। इस बीमारी में इंसान की हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं। बीमारी के कारण उम्मुल के 16 फ्रैक्चर हो चुके हैं, साथ ही उनकी 8 सर्जरियां भी हो चुकी हैं। इन सबके बावजूद उम्मुल का हौसला कम नहीं हुआ। अपनी पीएचडी के साथ ही उम्मुल ने UPSC की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिए और 2016 में 420वीं रैंक के साथ उम्मुल ने अपने पहले ही प्रयास में UPSC की परीक्षा पास कर ली।
आज वे लोग जो अपने जीवन की थोड़ी सी परेशानियों से हारकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं, उन्हें उम्मुल से प्रेरणा लेनी चाहिए। घर की माली हालत, कम उम्र में माँ का देहांत और अपनी बीमारी के बावजूद उम्मुल ने अपनी पढ़ाई पूरी की और UPSC के अपने सपने को पूरा कर आज वे कई लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।