अगर आप शेयर मार्केट में स्टॉक ट्रेडिंग और बिजनेस करने की इच्छा रखते हैं, तो उससे जुड़े कुछ जरूरी टर्म्स और नियमों को जान लेना आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

इन्हीं में से एक जरूरी टर्म है फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट (Financial Instrument)। चलिए समझते हैं कि ये क्या है और किस तरह से काम करता है।

फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट (Financial Instrument) क्या है?

फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट वो डॉक्यूमेंट्स या कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जो प्रॉपर्टी और इन्वेस्टमेंट को दर्शाते हैं।

Financial Instrument meaning in Hindi - वित्तीय साधन

ये एक तरह का लीगल डॉक्यूमेंट होता है, जिसमें दो पक्षों के बीच होने वाले पैसे के लेन-देन को लिखा जाता है।

फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट को कुछ मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  1. इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स (Equity Instruments):

    ये वो डॉक्यूमेंट्स होते हैं जो किसी भी कंपनी में आपकी ओनरशिप को दिखाते हैं। जैसे शेयर्स एक इक्विटी इंस्ट्रूमेंट होते हैं। जब आप किसी कंपनी के शेयर्स को खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के एक छोटे हिस्से के मालिक बन जाते हैं।

  2. डेट इंस्ट्रूमेंट्स (Debt Instruments):

    डेट इंस्ट्रूमेंट्स वो डॉक्यूमेंट होते हैं जो क़र्ज़ (Debt) को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, बॉन्ड और डिबेंचर डेट इंस्ट्रूमेंट होते हैं। जब कोई व्यक्ति या संस्था इस बॉन्ड को खरीदता है, तो वह उस कंपनी या संस्था को कर्ज़ दे रहा होता है और बदले में ब्याज प्राप्त करता है।

  3. डेरेवेटिव्स (Derivatives):

    डेरिवेटिव्स भी एक प्रकार का फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट ही होता है जिनकी कीमत को किसी भी दूसरी मूल संपत्ति की कीमत के हिसाब से तय की जाती है। ये कीमत स्टॉक्स, सोना और चांदी, करंसी, इंट्रेस्ट रेट और मार्केट इंडेक्स के आधार पर तय की जाती है। डेरिवेटिव्स के कई अन्य प्रकार भी होते हैं।

  4. फॉरवर्ड्स (Forwards):

    फॉरवर्ड्स एक ऐसा कस्टमाइज़्ड कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमें दो पक्ष भविष्य में आने वाली एक तारीख पर एक तय मूल्य पर किसी प्रॉपर्टी की खरीद और बिक्री पर सहमति जताते हैं। यह आमतौर पर ओवर-द-काउंटर (OTC) मार्केट में होता है, जहां पर्सनल लेवल पर इस काम को किया जाता है।

  5. फ्यूचर्स (Futures):

    फ्यूचर्स भी फॉरवर्ड्स जैसा ही होता है, लेकिन यह एक स्टैंडर्डाइज़्ड कॉन्ट्रैक्ट होता है और इसे एक्सचेंज (Exchange) पर ट्रेड किया जाता है। इसमें जोखिम कम करने के लिए क्लियरिंग हाउस द्वारा गारंटी दी जाती है।

  6. ऑप्शंस (Options):

    ऑप्शंस एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट है, जो धारक को अधिकार देता है कि वह एक तय तारीख पर या उससे पहले तय किए गए मूल्य पर संपत्ति को खरीद या बेच सकता है। इसे "कॉल ऑप्शन" (खरीदने का अधिकार) और "पुट ऑप्शन" (बेचने का अधिकार) में बांटा जाता है।

  7. स्वैप्स (Swaps):

    स्वैप्स एक वित्तीय अनुबंध होते हैं, जिसमें दो पक्ष आपस में भविष्य में होने वाले कैश फ्लो को बदलते हैं। सबसे सामान्य प्रकार का स्वैप "इंटरेस्ट रेट स्वैप" होता है, जिसमें दो पार्टियां अलग-अलग ब्याज दरों पर अपने कैश फ्लो का आदान-प्रदान करती हैं।

LFP Plus by Dr Vivek Bindra

फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स आपके निवेश को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं। इनकी गहरी समझ से आप मार्केट में सही निर्णय ले सकते हैं। आपको ये जानकारी कैसी लगी? हमें कॉमेंट्स में बताएं।