क्या आप जानते हैं भारत का पहला मोटिवेशनल लेक्चर द्वापर युग में कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया था। उस समय अर्जुन के पास स्किल भी थी और लड़ने का कारण भी, लेकिन उसके बावजूद वे अपने आपको इस काम के लिए तैयार नहीं कर पा रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान देकर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उनका मार्गदर्शन किया।

श्रीमद्भागवत गीता में लिखे श्लोकों को सही प्रकार से समझकर कोई भी बिज़नेसमैन सफल हो सकता है –

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। 2.47 ।।

जब भी कोई व्यक्ति नया बिज़नेस शुरू करता है, तो पहले ही दिन से उसका ध्यान बिज़नेस के परिणाम पर मतलब लाभ पर या बिज़नेस की सफलता पर रहता है। लेकिन श्रीमद्भागवत गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें कभी भी परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए, उसकी जगह हमें परिणाम तक पहुँचने की प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए और ध्यान देकर उसके लिए अपना काम करते रहना चाहिए। कई सारे सफल व्यवसायी भी यही कहते हैं कि हमें अपने बिज़नेस को सफल बनाने के लिए सही प्लानिंग के साथ कड़ी मेहनत करनी चाहिए। सफलता अपने आप मिलती जायेगी।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय

नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-

न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। 2.22 ।।

जब कोई अपना बिज़नेस शुरू करता है, तब वह बिज़नेस ग्रोथ के लिए एक प्लान तैयार करता है। लेकिन मार्केट और अन्य परिस्थितियों को देखते हुए इस प्लान को समय-समय पर अपडेट करना ज़रूरी है। इस श्लोक को यदि देखा जाए तो इसका अर्थ यही निकलता है कि हमें सदैव सतर्क रहकर हमेशा नए-नए अवसरों की तलाश कर अपने बिज़नेस को बेहतर बनाते रहना चाहिए।

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। 2.63 ।।

इस श्लोक के अनुसार गुस्से का परिणाम बुद्धि के नाश के रूप में होता है। जब मनुष्य गुस्सा करता है, तब वह अपने सोचने समझने की शक्ति खो देता है। बिज़नेसमैन को कदम-कदम पर कई ज़रूरी फैसले लेने पड़ते हैं, ऐसे में बिज़नेसमैन को हर कदम पर सचेत रहकर विवेकशील रहना होता है। यदि वह गुस्सा करके अपना विवेक खो देता है, तो उसे और उसके बिज़नेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचर।

असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष:।। 3.19 ।।

श्रीमद्भागवत गीता के तीसरे अध्याय का 19वां श्लोक अटैचमेन्ट के बारे में बताता है। सभी को अपने जीवन में कभी भी किसी व्यक्ति या वस्तु से ज्यादा अटैच नहीं होना चाहिए। कोई भी बिज़नेस किसी विशेष आईडिया के साथ शुरू होता है। यदि वह आईडिया काम नहीं कर रहा है या उसमें बदलाव की ज़रूरत है, ऐसे में यदि उस आईडिया के प्रति अटैचमेन्ट होगा, तो हम उसे बदल नहीं पाएंगे और नुकसान उठा सकते हैं।

धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।

यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।। 3.38 ।।

यह श्लोक हमें अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने की सीख देता है। इस श्लोक के अनुसार जैसे धुआं आग को और धूल आईने को ढक लेता है, उसी प्रकार कई इच्छाएं हमारे विवेक को ढक लेती है। जब मनुष्य इच्छाओं के जाल में फंसता है, तो वह अपने ज्ञान का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाता। एक बिज़नेसमैन के लिए यह ज़रूरी है कि वह विवेकपूर्ण रहकर सभी निर्णय ले।

श्रीमद्भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे हम जिस रूप में समझना चाहते हैं, उसी रूप में हमें उसके परिणाम प्राप्त होते हैं। यदि श्रीमद्भागवतगीता को हम बिज़नेस या स्टार्टअप को ध्यान में रखकर समझें और उस पर अमल करें तो हम अपने बिज़नेस में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

पूरी श्रीमद्भागवत गीता को बिज़नेस और स्टार्टअप के लाभ के लिए समझने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल पर "Gita In Action" को ज़रूर देखें :

https://youtu.be/msMosIHO4ZA


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