अगर आप एंटरप्रेन्योर हैं और स्टार्टअप चला रहे है या सेल्स का काम कर रहे हैं तो मार्केट में अपने प्रोडक्ट को कैसे पोजीशन करना है, उसकी तैयारी अवश्य पहले से करनी चाहिए. आज हम चार ऐसे फॉर्मूलों के बारे में बताएंगे, जो आपके व्यवसाय के लिए काफी लाभकारी साबित हो सकते हैं. इसके तहत हमने एक तरफ प्राइस रखा है और दूसरी तरफ क्वालिटी है. इन चार फॉर्मूलों के जरिये बतायेंगे कि आपको अपने प्रोडक्ट को मार्केट तक कैसे पहुंचाना है, किस प्रोडक्ट को कहां ले जाना है और कैसे बेचना हैं. यहां सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि आप अपना परफेक्ट कस्टमर सेलेक्ट करें. क्योंकि हर कस्टमर को आप अपने प्रोडक्ट के लिए परफेक्ट कस्टमर नहीं कह सकते, आप हर जगह अलग-अलग प्राइस पर माल नहीं बेच सकते. इसलिए सर्वप्रथम राइट कस्टमर डिफाइन करें. Digital Marketing Tips: अपने बिजनेस को ऑनलाइन बढ़ाने की कर रहे हैं प्लानिंग? फॉलो करें ये 4 बजट फ्रेंडली टिप्स

वैल्यू फॉर मनी मार्केट

यहां हम प्राइस और क्वालिटी को फोकस करते हुए बात आगे बढ़ायेंगे. कुछ कंपनी हैं, जिनकी क्वालिटी तो बहुत अच्छी है मगर प्राइस बहुत कम है. यानी वे अच्छा माल कम कीमत में बेच रहे हैं इसे कहते हैं वैल्यू फॉर मनी मार्केट (Value for Money Market). उदाहरण के लिए मारुति सुजुकी, सभी जानते हैं, कि यह गाड़ी महंगी नहीं है, इसलिए उसकी सेल वैल्यू अच्छी है और गाड़ी चलती भी अच्छी है. ऐसा ही एक उदाहरण रिलैक्सो फुटवियर का है. इस कंपनी की चप्पलें सौ-दो रूपये में उपलब्ध हो जाती हैं. जिसकी क्वालिटी भी अच्छी होती है.

अवसरवादी बाजार (Opportunistic Market)

इसके तहत प्रोडक्ट की कीमत बहुत ज्यादा है, जबकि क्वालिटी बहुत खास नहीं है. क्वालिटी पर भी फोकस नहीं है, लेकिन कीमत बहुत ज्यादा है. अवसरवादी मार्केट में ग्राहक विशेष ध्यान नहीं देता, क्योंकि वहां कस्टमर कभी-कभी आता है, और मजबूरीवश प्रोडक्ट लेता है. कंपनी एक ही बार में अधिकतम मुनाफा कमाने की कोशिश करती है. ऐसे मार्केट अमूमन रेलवे स्टेशन, हाइवे, सिनेमा हाल इत्यादि हैं, जहां कस्टमर बार-बार नहीं जाता. हर बार एक नया कस्टमर आता है, जिसका पूरा फायदा कंपनी उठाती है. वे कस्टमर को सही कहे तो ठग लेते हैं. उदाहरणस्वरूप आगरा जहां ताजमहल का दीदार करने रोज नये टूरिस्ट आते हैं. ऐसे टूरिस्टों को वहां घूम रहे चतुर लोग घेरकर अपना माल बेचने में सफल हो जाते हैं. इसे अवसरवादी मार्केट कहा जाता है. लेकिन यहां एक बात ध्यान देने की यह है कि अगर एक डिफाइंड टेरिटरी के अंदर आप कम वैल्यू वाले प्रोडक्ट के लिए ज्यादा कीमत ले रहे हैं, तो आपका धंधा खत्म हो जायेगा. अवसरवादी मार्केट कुछ खास जगहों पर ही चल सकता है.

चायनीज गुड्स मार्केट यानी कम कीमत कमतर क्वालिटी

आपको अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए उसे पोजीशन करना आना चाहिए. कम कीमत में कम क्वालिटी वाली वस्तुएं उपलब्ध होंगी, इसे कहते हैं चाइनीज गुड मार्केट. यानी हल्का माल, सस्ता माल. यहां लक्ष्य गरीब या कम चतुर कस्टमर को फोकस किया गया है. चायनीज खिलौने सस्ते होते हैं, कमजोर क्वालिटी होने से दो दिन में टूट जाते हैं. चायनीज गुड्स में क्वालिटी की परवाह नहीं की जाती, लेकिन प्राइस सेंसेटिव मार्केट में जरूरत से ज्यादा सस्ता बेचने की पॉलिसी पर काम किया जाता है. जहां पर फाइनेंसियल वैल्यू ही आपका प्रीपोजिशन बन जाता है.

प्रीमियम मार्केट

इसी में एक है प्रीमियम मार्केट, जहां प्राइस भी ज्यादा है और क्वालिटी भी अच्छी है. एक अच्छे प्रोडक्ट को ध्यानपूर्वक ब्रांडिंग और पोजिशनिंग ऐसे किया जाये कि इसे ज्यादा कीमत पर बेचा जाये. ऐसे उत्पादों के उदहारण है- Versace, Louis Vuitton, Gucci इत्यादि. ये प्रीमियर सामान बैग्स, पर्स, शूज जैसे कई एसेसरीज बेच रहे हैं. अच्छी क्वालिटी का पर्स जिसकी वैल्यू 3 से 5 हजार ही है, लेकिन उसे 70 से 80 हजार रुपये में बेचा जा रहा है, यानी प्रीमियम कीमत पर बेच रहे हैं. अपने ब्रांड को उन्होंने पोजीशन ही ऐसा किया है कि उन्हें ज्यादा माल बेचने की चिंता नहीं है. लेकिन लिमिटेड मार्केट के अंदर बड़े ग्रॉस मार्जिन के साथ प्रीमियम पर अपना माल बेचकर खुश हैं. आज आपको अपने प्रोडक्ट को कहां पोजीशन करना है, अगर आपने स्टार्टअप में नया व्यापार शुरु किया है, तो आपको देखना पड़ेगा कि आपका एक्चुअल टारगेट खरीददार कौन अथवा मार्केट क्या है. टारगेट मार्केट से निकलकर हर बार नई जगह जाने का प्रयास ना करें. लेकिन कई ऑर्गेनाइजेशन हैं, जो अपने कुछ ब्रांड को अवसरवादी मार्केट में तो कुछ को प्रीमियम मार्केट में लेकर जाते रहते है. यह ब्रांड की पोजिशनिंग को ही अलग कर देती है.