New Business Ideas: गाय के गोबर से पेंट और डिस्टैंपर बनाकर कमाएं लाखों रुपये, ऐसे करें अष्टगुणी पेंट बनाने की शुरुआत
Khadi Prakritik Paint: कुछ साल पहले तक गोबर का उपयोग महज ईंधन और खाद के रूप में किया जाता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गाय के गोबर से तमाम उपयोगी वस्तुओं के निर्माण होने लगे हैं. हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गाय के गोबर से निर्मित खादी प्राकृतिक पेंट लांच किया है. खादी एवं ग्रामोद्योग ने इस प्राकृतिक पेंट के संदर्भ में दावा किया है कि यह पेंट नॉन टॉक्सिक होने के साथ-साथ एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल भी है. प्राप्त सूचना के अनुसार देश के कई हिस्सों में इस खादी प्राकृतिक पेंट की फैक्ट्री शुरु करने की योजना सरकार बना रही है. लेकिन अगर आप चाहें तो छोटे स्तर पर खुद पेंट बनाकर एक बड़ा उद्योग स्थापित कर सकते हैं. बाजार से आधी कीमत और अष्ठ गुणों से युक्त होने के कारण उम्मीद की जा रही है कि यह देशी पेंट विदेशी पेंट कंपनियों को उखाड़ फेंकेगा. आइये जानें गाय के गोबर से तैयार होने वाले पेंट के संदर्भ में महत्वपूर्ण बातें! Successful Business Ideas: सिलाई-कढ़ाई से जुड़े 5 बिजनेस आपको बना देंगे मालामाल
गांवों के लिए वरदान कैसे साबित होगा?
भारत कृषि प्रधान देश है. गांव का 69 प्रतिशत आबादी गावों में बसती है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में गोबर की उपलब्धता प्रतिवर्ष लगभग 1446 टन है. इससे पूर्व गांवों में गोबर का इस्तेमाल महज ईंधन अथवा खाद तक ही सीमित होता था. अगर प्राकृतिक पेंट की उपयोगिता बढ़ी तो, किसानों को गोबर से तो कमाई होगी ही, अगर वे चाहेंगे तो स्वयं गोबर से पेंट बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकते हैं. यद्यपि सरकारी स्तर पर प्राकृतिक पेंट की फैक्टरी खुलने पर गांव वालों को रोजगार के अवसर मिलेंगे. इस वजह से ग्रामीण क्षेत्र के लोग शहरों की ओर पलायन बंद कर देंगे. नुकसान रहित, गंध रहित एवं सस्ता होने के कारण प्राकृतिक पेंट को बाजार में ज्यादा चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. सूत्रों के अनुसार प्राकृतिक पेंट की इस श्रृंखला में डिस्टेंपर की कीमत जहां 120 रुपये प्रति लीटर होगी, वहीं इमल्सन पेंट भी महज 225 रुपये लीटर की दर से प्राप्त होगा. खबर है कि इस प्राकृतिक पेंट का निर्माण और बिक्री सरकार द्वारा प्रोफेशनल तरीके से बड़े स्तर पर शुरु करने की योजना है.
कैसे बनेगा गोबर से पेंट?
प्रशिक्षण लेने के बाद कोई भी इसे आसानी से बना सकता है. इसके लिए किसी टेक्निकल शिक्षा की जरूरत नहीं है. सर्वप्रथम समान मात्रा में गाढ़ा गोबर और पानी मिलाकर टीडीआर मशीन में डाला जाता है. इस मशीन में गोबर को फाइन किया जाता है. फाइंड होने के बाद गोबर को सफेद करने के लिए उसे ब्लीच किया जाता है. ब्लिचिंग में सोडियम हाइड्रॉक्साइड और हाइड्रोजन पैराक्साइड डाला जाता है. इससे ब्लीच के साथ वह सीएमसी अर्थात कार्बोऑक्सी मिथाइल सेलुलोज में परिवर्तित हो जायेगा. किसी भी पेंट बनाने वाली कंपनी के लिए सीएमसी रीढ़ की हड्डी मानी जाती है. बाद में इसमें ठंडा चूना डाला जाता है. इसकी सफेदी की मात्रा बढ़ाने के लिए टाइटेनियम टाईऑक्साइड मिलाया जाता है. इन सबको आपस में बांधे रखने के लिए बाइंडर का उपयोग किया जाता है. इस तरह से बेसिक सफेद डिस्टैंपर पेंट तैयार हो जाता है. प्लास्टिक इमल्शन पेंट में इन सभी घटकों के साथ लिंसिड ऑयल यानी अलसी का तेल डाला जाता है. इसे व्हाइटनर के साथ पतला किया जाता है. इसे डिस्टैंपर में मिलाने से यह प्लास्टिक इमल्शन पेंट बनकर तैयार हो जाता है. इसमें बहुत चमक होती है. इस पेंट बनाने की विधि में प्लास्टिक इमल्शन पेंट के लिए 20 प्रतिशत गोबर और डिस्टैंपर पेंट के लिए 30 प्रतिशत गोबर की जरूरत पड़ती है. इसका मतलब अगर 100 लीटर प्लास्टिक इमल्शन पेंट बनाना हो तो उसमें 20 किलो गोबर और अगर डिस्टैंपर पेंट बनाना हो तो उसमें 30 किलो गोबर की जरूरत होती है.
क्यों कहते हैं इसे अष्टगुणी पेंट?
1- जीवाणुरोधक (जीवाणुओं को रोकने की शक्ति होती है.
2- एंट फंगल (फंगस को रोकने में समर्थ है)
3- पर्यावरण पूरक (मुख्य घटक गोबर जो नैसर्गिक रूप में होता है)
4- उष्णतारोधक (बाहरी गर्मी को रोकने की क्षमता रखता है)
5- किफायती (120 से 225 रूपये प्रति लीटर)
6- गंधरहित (किसी भी प्रकार की गंध नहीं होती)
7- विषरहित (किसी भी विषैले पदार्थ का समावेश नहीं)
8- भारी धातुओं से मुक्त (निर्माण में किसी भी भारी धातु का प्रयोग नहीं)
प्राकृतिक पेंट की खासियत
इस पेंट में शीशा, पारा, क्रोमियम, आर्सेनिक, कैडमियम जैसी अन्य कोई भी भारी धातु नहीं है. ये स्थानीय स्तर पर निर्माण को बढ़ावा देगा और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से स्थायी स्थानीय रोजगार सृजित करने में मदद करेगा. इस तकनीक से पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में गोबर की खपत बढ़ेगी और किसानों तथा गौशालाओं के लिए अतिरिक्त राजस्व के अवसर बढ़ेंगे. गाय के गोबर के उपयोग से पर्यावरण स्वच्छ होगा और नालियों के अवरुद्ध होने जैसी समस्या भी खत्म होगी. खादी प्राकृतिक डिस्टेंपर और इमल्शन पेंट का परीक्षण देश की तीन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रयोगशालाओ में किया गया है.