भारत की भूमि वीरपुत्रों, स्वतंत्रता सेनानियों एवं कई ऐसे राजनेताओं से सुसज्जित है जिन्होंने अपना पूरा जीवन केवल देश की सेवा के लिए न्यौछावर कर दिया है। इन्हीं में से एक देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी भी है। जिन्हें ना केवल देश के प्रथम राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त है बल्कि उनकी सादगी और दूरदर्शी विचार की आज तक हर कोई प्रशंसा करता है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के एकमात्र ऐसे राष्‍ट्रपति रहे, जिन्‍होंने पद से हटने के बाद बंगले को छोड़ कुटिया जैसे मकान को अपना आशियाना बनाया था। अपने आखिरी दिनों में उन्होंने बिहार की भूमि पर ही विराम किया। यहीं उनका जन्म हुआ था और यहीं पर 28 फरवरी 1963 के दिन उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी। देश के इस सुपुत्र को कभी भूलाया नहीं जा सकता। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलू।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) 12 साल तक भारत के राष्ट्रपति रहे, इतने साल राष्ट्रपति रहने के बाद भी उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सादगी पूर्ण बिताया। वो गांव के एक गरीब को भी गले लगा लिया करते थे। वो चाहते तो अपनी बिगड़ती सेहत का इलाज विदेशों में करा सकते थे लेकिन उन्होंने इस सुविधा का उपयोग करना सही नहीं समझा। सादगी की मिसाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। उनके पिता संस्कृत एवं फारसी के एक बड़े विद्वान थे जबकि उनकी माता धार्मिक महिला थीं। राजेंद्र प्रसाद 5 बड़े भाई बहनों में सबसे छोटे थे। वो कायस्थ समुदाय से संबंधित थे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का का बचपन बिहार में ही बिता। राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा छपरा (बिहार) के जिला स्कूल से हुई। उन्होंने 18 साल की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की। विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी। साल 1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की। साथ ही उन्होंने कानून में ही डाक्टरेट भी किया। राजेंद्र प्रसाद पढ़ाई में शुरू से ही अच्छे थे, उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था। उनकी एग्जाम शीट को देखकर एक एग्जामिनर ने कहा था कि ‘The Examinee is better than Examiner।  यानी की परीक्षा देने वाला परीक्षा चैक करने वाले से भी बेहतर है।

उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की जिसके बाद पटना में जब उच्‍च न्‍यायालय बना, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद 1916 में यहां आ गए। इसके बाद महात्मा गांधी की प्रेरणा से वकालत छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। डॉक्‍टर राजेंद्र प्रसाद राष्‍ट्रपिता गांधी से बेहद प्रभावित थे, राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के 'नमक सत्याग्रह' और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में डाल दिया था।इसी दौरान 1921 से 1946 तक वे बिहार विद्यापीठ परिसर स्थित एक खपरैल मकान में रहे। इस परिसर की भूमि स्‍वतंत्रता सेनानी मौलाना मजहरूल हक की थी, जिसे उन्होंने कांग्रेस  को दान में दी थी।

पूर्वी चंपारण में उन्होंने 1934-1935 में भूकंप पीड़ितों की सेवा करने का प्रण लिया था। उन्होंने गांधी जी का संदेश बिहार की जनता के समक्ष इस तरह से प्रस्तुत किया कि वहां की जनता उन्हें ‘बिहार का गांधी’ ही कहने लगी थी। साल 1947 के 15 अगस्‍त को देश स्‍वतंत्र हुआ। आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। साल 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए। राजेंद्र प्रसाद एकमात्र नेता रहे, जिन्हें 2 बार राष्ट्रपति के लिए चुना गया। 12 साल तक पद पर बने रहने के बाद वे 1962 में राष्ट्रपति पद से हटे। राष्ट्रपति होने के अलावा उन्होंने भारत के पहले मंत्रीमंडल 1946 एवं 1947 में कृषी और खाद्य मंत्री पद भी संभाला। राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी का निधन 25 जनवरी 1950 को हो गया था। जबकि अगले दिन यानी 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने जा रहा था। ऐसे में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गए।

साल 1962 में राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया था। बतौर राष्‍ट्रपति दिल्‍ली के रायसीना हिल स्थित विशाल राष्‍ट्रपति भवन (President House) में 12 साल रहने के बाद वे फिर 14 मई 1962 को पटना आकर उसी खपरैल मकान में ठहरे। लेकिन वे वहां अधिक दिनों तक नहीं रह सके। दमे के मरीज डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बीमारी बढ़ती गई। अगले साल 28 फरवरी की रात वे चिर निद्रा में लीन हो गए।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जिस छवि को लोग याद करते हैं वह बेहद साफ-सुथरी और एक आदर्श नेता की है। एक ऐसे नेता की जिसने देश के सर्वोच्च पद पर जाने के बाद भी सभी सरकारी सुविधाओं को ना कहा डॉ. राजेंन्द्र प्रसाद एक ऐसे नेता जिन्हें लोग देश के राष्टपिता महात्मा गांधी के बराबर का दर्जा देते हैं। एक आदर्श नेता क्या होता है इसकी अनूठी मिसाल डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी थे। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन।