आशाराम चौधरी success story : जानें कैसे कचरा बीननेवाले का बेटा AIIMS के Entrance Exam में हुआ सफल
Success Story of Asharam Choudhary :सुविधाओं और संसाधनों के बगैर सफलता के शिखर तक पहुंचना और काबिलियत की दम पर गरीबी को पछाड़ अपनी मंजिल को पाना आसान नहीं होता। ऐसे में इसके जीवंत मिसाल हैं मध्यप्रदेश के आशाराम चौधरी।
आशाराम चौधरी (Asharam Choudhary) का जन्म मध्यप्रदेश के देवास जिले में हुआ था और उनके पिता कचरा बीनने का काम करते थे। उनके पिता की घास-फूस की एक झोपड़ी हुआ करती थी, जिसमें न तो शौचालय था और न ही बिजली का कनेक्शन। ऐसे में उनके घर में कमाई का श्रोत सिर्फ आशाराम के पिता थे। आशाराम के पिता पन्नियां, खाली बोतलें उठाकर और दूसरों के खेतों में काम कर अपने परिवार का खर्च चलाया करते थे। ऐसी परिस्थिति में दो वक़्त की रोटी भी बहुत मुश्किल से नसीब होती थी। आशाराम चौधरी (Asharam Choudhary Story) बचपन से ही डॉक्टर बनाना चाहते थे। लेकिन डॉक्टर की तैयारी करने के लिये उनके पास कोई साधन नहीं था, ऐसे में बिना मजबूत संसाधनों के भी आसाराम आगे बढ़ते रहे।
परिवार की आर्थिक तंगी की वजह से आशाराम ने 5 वीं तक की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल में की। पढ़ाई करने के साथ ही आशाराम अपने पिता के साथ खेतों में उनकी मदद भी करते थे। इसके बाद उनके पिता को गांव के एक मास्टर ने नवोदय विद्यालय में भेजने की सलाह दी, क्योंकि उस स्कूल में बच्चों की पढ़ाई से लेकर खाने तक सभी सुविधायें मुफ़्त में दी जाती हैं।
ऐसे में बिना देर किये आशाराम नवोदय की तैयारी में जुट गये और उन्होंने उसमें सफलता हासिल कर ली। नवोदय में पढ़ाई करने के साथ ही आशाराम दक्षिणा फाउंडेशन पुणे के Entrance Exam में जुट गये, वो दिन - रात जागकर Entrance Exam की तैयारी करते, ताकि अपने परिवार को अच्छी ज़िन्दगी दें सकें। कड़ी मेहनत और गरीबी और कठोर परिश्रम से जूझने के बाद उनका दाखिला दक्षिणा फाउंडेशन पुणे में हो गया।
बचपन से ही अपने पिता को मज़दूरी करता देख उन्हें काफी तकलीफ होती थी और वो अपने परिवार को एक सम्मानजनक जीवन देना चाहते थे। AIIMS की तैयारी के दौरान भी आशाराम को कई रूकावट और तकलीफ का सामना करना पड़ा था। Medical Entrance Exams की तैयारी के दौरान उनके पास किताबें खरीदने के लिये पैसे नहीं थे और ना ही इंटरनेट की सुविधा थी। मगर इन सब के बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे की तरफ बढ़ते चले गये।
आशाराम ने पहले ही प्रयास में AIIMS जैसे प्रतिष्ठित और मुश्किल AIPMT Exam को Clear किया और अभावों के बीच कड़ी मेहनत और लगन से सफलता के उस शिखर को छुआ जहां तक पहुंचना काफी मुश्किल था। अच्छे रैंक लाने की वजह से जोधपुर के मेडिकल कॉलेज को उनका चयन हो गया, लेकिन एक बार फिर उनके सपने के बीच गरीबी ने दस्तक दी। जोधपुर जाने के लिए भी आशाराम के पास पैसे नहीं थे, तब देवास के कलेक्टर ने उनकी मदद की, तब जाकर उनका एमबीबीएस में एडमिशन हुआ। बचपन से डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने की दिशा में अपने कदम को आगे बढ़ाते चले गये। ‘एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए AIIMS में चयनित होने के बाद वो इतने ज्यादा खुश थे कि अपनी खुशी को शब्दों में प्रकट भी नहीं कर पा रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब परिवार के आशाराम को इस सफलता के लिए बधाई दी और पीएम मोदी ने कहा युवाओं को आशाराम से प्रेरणा लेना चाहिए। ऐसे में कह सकते है कि गरीबी का कुछ इस कदर सामना करते हुए आशाराम की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जिन्होंने ज़िन्दगी में कभी Give Up नहीं किया और अपने कठोर परिश्रम से ज़िन्दगी में अपने मुकाम को हासिल किया।