चंद्रशेखर आजाद पुण्यतिथिः इस क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के आगे कभी नहीं झुकाया अपना सिर, खुद को गोली मारकर भारत मां के चरणों में हो गए थे शहीद

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का का नाम सुनते ही अपनी मूंछों को ताव देता वह नौजवान अपने आप आंखों के सामने आ जाता है जिसे पूरी दुनिया 'आजाद' के नाम से जानती है। चंद्रशेखर आजाद भारत माता के वो वीर सुपुत्र है जिन्होंने ना केवल भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई बल्कि अंग्रेजी हुकुमत के छक्के भी छुड़ा दिए थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि चंद्रशेखर आजाद का असली नाम  चंद्रशेखर तिवारी था लेकिन इन्होंने खुद को आजाद घोषित कर दिया था और कभी अंग्रेजों के हाथो ना मरने की कसम खाई थी। जिसके कारण इन्हें चंद्रशेखर आजाद कहा जाता है। चंद्रशेखर आजाद ने 27 फ़रवरी, 1931 को अंग्रेजी हुकुमत को पछाड़ते हुए हंसते-हंसते अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी। चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें।

23 जुलाई 1906 को 1906 को उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बदरका नामक गाँव में ही चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी ने उनका नाम चंद्रशेखर तिवारी रखा था। लेकिन उनका परिवार मध्यप्रदेश के भाबरा गांव आ गया था। यहीं उनका पूरा बचपन बिता था। चंद्रशेखर की बचपन से ही देशभक्ति में रुचि थी। चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष के थे तो वो बनारस चले गए। उन्होंने वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। यहीं पर वो 1920-21 में गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े थे। इस आंदोलन में वो गिरफ्तार भी हुए थे और जज के सामने भी गए। यहीं से उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को अपना निवास बताया। इसके बाद उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई थी। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गाँधी की जय’ का स्वर बुलन्द किया। इसके बाद वे हर जगह आजाद के नाम से जाने जाने लगे।

चंद्रशेखर आजाद पहले गांधी जी का अनुसरण करते थे। उन्होंने सन् 1922 में गांधीजी द्वारा चलाए असहयोग आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। लेकिन इस आंदोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया था। इसके बाद वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गए और कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए। इस संस्था के जरिए उन्होंने 9 अगस्त, 1925 को काकोरी कांड किया और फरार हो गये। इसके बाद बाद में एक–एक करके सभी क्रान्तिकारी पकड़े गए लेकिन चन्द्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ में नहीं आए।

 

इस कांड के बाद 27 फ़रवरी, 1931 को वो दिन आया जब भारत मां का यह लाल शहीद हुआ। इस दिन चन्द्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे कि तभी वहां अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। चन्द्रशेखर आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया पर खुद अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे। आखिर में जब अंग्रेजों की एक गोली उनकी जांघ में लगी तो अपनी बंदूक में बची एक गोली को उन्होंने खुद ही मार ली और अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद ही आत्महत्या कर ली। कहा जाता है कि मौत के बाद अंग्रेजी अफसर और पुलिसवाले चन्द्रशेखर आजाद की लाश के पास जाने से भी डर रहे थे। भारत मां का यह वीर पुत्र शहीद होने के बाद भी अपना खौफ जमाए हुए था।

 

चंद्रशेखर आजाद के कुछ अनमोल वचन

  • मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो समानता और भाईचारा सिखाता है।
  • मैं अपने संपूर्ण जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा।
  • मातृभूमि की इस वर्तमान दुर्दशा को देखकर अभी तक यदि आपका रक्त क्रोध से नहीं भर उठता है, तो यह आपकी रगों में बहता खून नहीं है, पानी है।
  • आज़ाद की कलाई में हथकड़ी लगाना तो असंभव है। एक बार सरकार यह लगा चुकी है, अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे, लेकिन मेरे जीवित रहते मुझे पुलिस बंदी नहीं बना सकती।
  • सच्‍चा धर्म वही है जो स्‍वतंत्रता को परम मूल्‍य की तरह स्‍थापित करे।
  • यदि अभी तक आपका खून खौल नहीं उठता है, तो क्‍या आपकी नसों में यह पानी बहता है? इस जवानी का क्या फायदा है यदि यह मातृभूमि की सेवा में काम ना आ पाई। यदि कोई युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ है।
  • भले ही मेरा आरंभिक जीवन एक आदिवासी इलाके में व्‍यतीत हुआ, लेकिन मेरे हदय में मातृभूमि ही बसा करती है।
  • दुश्मन की गोलियों का हम डटकर सामना करेंगे,आजाद रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।
  • जब तक यह बमतुल बुखारा (आजाद की पिस्तौल का नाम) मेरे पास है, किसने अपनी मां का दूध पिया है, जो मुझे जीवित पकड़ सके।

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