इंसान अपनी मेहनत से अपनी किस्मत को भी बदल कर रख देता है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं सागर रत्ना रेस्टोरेंट के मालिक जयराम बानन। जो कभी मात्र 18 रूपये महीने की नौकरी किया करते थे। वह एक ढाबे में बर्तन धोने का काम करते थे।

पिता की पिटाई के डर से उन्होंने घर तक छोड़ दिया था। लेकिन हार मानने की बजाय उन्होंने अपनी मेहनत पर भरोसा किया और आज वह करोड़ों रूपये की फूड चैन खोल चुके हैं। उनके रेस्टोरेंट की खासियत यह है कि यह एक शाकाहारी रेस्टोरेंट है। लकिन इसके वाबजूद यहां केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी मेहमान भी बड़े शौक से आते हैं और खाने का लुत्फ उठाते हैं।

आज यह देश और विदेशों में 60 से ज्यादा रेस्टोरेंट के मालिक हैं और हर साल करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। कठिनाइयों से हार न मानते हुए और अपने दम पर कुछ कर दिखाने की चाह ने जयराम बानन को एक बड़ी और फेमस रेस्‍टोरेंट चेन का मालिक बना दिया। लेकिन उनकी यह राह आसान नहीं थी।

आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरक सफर के बारे में।

पिता की पिटाई के डर से छोड़ा घर

मंगलौर (कर्नाटक) के पास स्थित 'उडुपी' के एक सामान्य परिवार में जन्मे जयराम बानन के पिता ड्राइवर थे। लेकिन उनके पिता का स्वभाव गुस्सैल था। जयराम बचपन से ही अपने पिता से बहुत डरते थे। जब जयराम बानन स्‍कूल एग्जाम में फेल हो गए तो उन्हें लगा कि उनके पिता उनकी बहुत पिटाई करेंगे। पिता की पिटाई के डर से केवल 13 साल की उम्र में ही वह घर छोड़ कर भाग गए। घर से भागने से पहले उन्होंने अपने पिता की पॉकेट से कुछ पैसे निकाले और मंगलौर से मुंबई जाने वाली बस में सवार हो गए। बानन 1967 में मुंबई आ गए।

ढाबे में 18 रुपए में बर्तन धोने का किया काम

मुंबई आने के बाद जयराम के पास कोई काम नहीं था। पेट पालने के लिए काम करना ज़रूरी था इसलिए उन्होंने जूते पॉलिश करने का काम किया। लेकिन इससे उनका गुज़ारा नहीं हो रहा था। उन्होंने एक कैंटीन में बर्तन धोने की नौकरी पकड़ ली। उन्हें 18 रूपये महीने में बर्तन धोने का काम मिला। जयराम बानन ने प्‍लेट धोने और टेबल साफ करने का काम छह साल तक किया। प्‍लेट धोने के लिए सोडा का इस्‍तेमाल होता था, जिससे इनका हाथ बुरी तरह से खराब हो गया था। इसके बावजूद बानन अपने काम में डटे रहे।

ऐसे आया अपना काम करने का आइडिया

बर्तन धोने का काम छोड़कर जयराम वेटर की नौकरी करने लगे। और उसके बाद वह मैनेजर पोस्ट तक भी पहुंच गए लेकिन उनके मन में हमेशा अपने भविष्य को लेकर सवाल रहते थे। जब जयराम बानन को कुछ अनुभव हुआ और पैसे एकत्रित हो गए तो उन्होंने खुद का कुछ छोटा-मोटा काम करने की सोची। इसी बीच उन्हें पता लगा कि मुंबई में साउथ-इंडियन खाने के बहुत सारे रेस्टोरेंट ओपन हो रहे हैं लेकिन उनके पास ना इतने पैसे थे और ना ही वे इस भीड़ का हिस्सा बनना चाहते थे। इसलिए जयराम ने दिल्ली जाने का निर्णय लिया। लेकिन यहाँ भी उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा क्योंकि दिल्ली के ज्यादतर लोग नॉन-वेज खाने के शौकीन थे। जयराम एक शुद्ध शाकाहारी खाने का रेस्टोरेंट खोलना चाहते थे जो दिल्ली में शुरू करना काफी कठिन था।

ऐसे शुरू किया अपना काम

उडुपी समुदाय से ताल्‍लुक रखने वाले जयराम अपना काम शुरू करने की चाह में 1973 में दिल्ली में एक उडुपी रेस्‍टोरेंट में काम करने वाले भाई के पास आ गए। उस समय दिल्ली में साउथ-इंडियन रेस्टोरेंट भी कम मात्रा में थे और उनके रेट्स भी हाई थे। इसी बात को आधार बनाते हुए जयराम ने कम कीमत में बेहतर क्वालिटी का डोसा बेचने का सोचा, जिसके बाद उन्होंने 1974 सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्‍स की कैंटीन का टेंडर लिया। जयराम बानन ने 1986 में 5 हजार रुपए की सेविंग की और दोस्‍तों-रिश्तेदारों से लोन लेकर डिफेंस कॉलोनी में सागर नाम से पहला रेस्टोरेंट खोला। यहां एक सप्‍ताह का किराया 3,250 रुपए था। इसमें 40 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। जिसमें पहले दिन 500 रुपए की कमाई हुई थी। शुरुआती दिन काफी कठिनाई भरे रहे। उसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने खाने की कीमत एक हलवाई की दुकान के बराबर रखी।

ऐसे हुई सागर रत्ना ब्रांड की शुरूआत

धीरे-धीरे जयराम बानन की मेहनत रंग लाने लगी। उनके साउथ-इंडियन डिश का स्वाद लोगों के मुँह पर लगने लगा और उसके बाद तो उनके रेस्टोरेंट पर भीड़ लगने लगी। जल्द ही उन्होंने दिल्ली के लोधी मार्किट में भी एक शॉप ओपन की और अपनी उसी क्वालिटी के फ़ूड को 20 फीसदी ज्यादा कीमत में देना शुरू किया। इसी तरह से उन्होंने अपने स्टार्टअप “सागर-रत्न” की शुरुआत की। आज दिल्‍ली में ही इसके 30 से अधिक रेस्टोरेंट हैं। उत्‍तर भारत में इसकी संख्या 60 से अधिक पहुंच चुकी है। कनाडा, सिंगापुर, बैंकॉक जैसे देशों में भी इनके आउटलेट्स हैं। इन सब से उनका सालाना टर्न ओवर 300 करोड़ के ऊपर पहुंच चुका है।

जयराम बानन ने आज अपनी मेहनत से सफलता की प्रेरक कहानी लिखी है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर आपको खुद पर भरोसा हो और मेहनत करने का ज़ज्बा हो तो आपके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। आज वह लाखों लोगों के प्रेरणास्त्रोत हैं।